षोडश परिच्छेद
षोडश परिच्छेद कहां चले गए सब ? आंखें खोलकर हरिशंकर ने चारों तरफ देखा। सुबह हो गई थी। सूर्य उदय हो गया था। सुबह-सुबह पाव - रोटी वाले , दूध वाले , अखबार बेचने वाले इधर-उधर आ-जा रहे थे। बच्चों को लेकर स्कूल बस चली गई थी। घास-फूस से लदी एक बैलगाड़ी मंथर गति से जा रही थी अनशन मंडप के सामने से। दो - तीन साइकिल वाले भी वहाँ से चले गए। एक आदमी ने साइकिल से उतरकर नमस्कार किया हरिशंकर को , आज अनशन का चौथा दिन है , मगर अगणी और उसके आदमी चले गए। वे और नहीं लौटेंगे , कल ही हरिशंकर समझ गया था उनकी बातचीत से। कितना जल्दी सब - कुछ बदल जाता है। कुछ दिन पहले ही अगणी आया था नया यूनियन बनाने के लिए। हरिशंकर को अपना नेता मान लिया था। सभा-समितियों में हरिशंकर की तारीफ किया करता था वह। हरिशंकर की अगर कोई निंदा करता था , वह गुस्सा हो जाता था। जिस अगणी ने उसे जोर-जबरदस्ती कर अनशन पर बैठाया था , वहीं अगणी उसे छोड़कर भाग गया अ...