ग्यारह परिच्छेद


ग्यारह परिच्छेद
                क्या कभी ऐसी कल्पना भी की थी देशमुख ने ?  क्या-क्या होना था तो ? राज्य-प्राप्ति के समय कहाँ से बज उठनी थी भेरी ? तुरही नाद बजने जैसे लग रहा था इस छोटी कोयला खदान में ? पेड़-पौधे, प्रजा-मंडल, कोयला ढोने वाले टब, यांत्रिक गति से दौड़ने वाले कन्वेयर सुबह-सुबह आठ बजे सायरन की आवाज, आधी रात को पहरेदारों की व्हिसिल, ये सब बज उठने की बातें ? राशि-फल में क्या लिखा हुआ था राज्य-प्राप्ति की खबर ?
                मगर कुछ नहीं हुआ था। दिन के दस बजे खबर मिल गई थी देशमुख को। फैक्स-मैसेज कहीं से आया था जी.एम॰ ऑफिस को। फोन भी किया था, मगर लाइन नहीं मिल रही थी। जीप खोजी थी जी.एम. ऑफिस जाने के लिए। गाड़ी में डीजल हीं था। डीजल मिला तो ड्राइवर न था। ड्राइवर आया तो बैटरी खराब हो गई थी। देशमुख ने और कुछ भी नहीं किया। तैयार भी नहीं हुआ बिलकुल। ऑफिस में बैठकर इधर-उधर किताबें, टेक्नीकल मैगज़ीन, स्कैच-पत्रिका, खदान सुरक्षा की नियमावली सब कुछ पढ़ चुका था वह। नहीं, उसने अपने टाइपिस्ट को डिस्टर्ब नहीं किया था। अनीता को फोन भी नहीं किया। ड्राइवर से भी गाली-गलौच नहीं किया था। ऑटो-सेक्शन के फोरमेन या इंजीनियर से किसी गाड़ी भेजने की फरमाइश भी नहीं की। वह चुपचाप बैठा रहा।
                ऑफिस से लंच-ब्रेक के समय घर में अनीता ने बात उठाई थी। पूछने लगी थी, “आपका प्रमोशन होगा या और कोई आएगा आपकी जगह पर।
                “पता नहीं। निस्पृहता से कहा था देशमुख ने।
                “आपने जी.एम. से नहीं पूछा ? पर्सनल मैनेजर से ? हेडक्वार्टर को फैक्स मैसेज नहीं भेजा ? हेड क्वार्टर में आपके जानने वाले हैं देवतले साहब ? क्या पता ?
                “क्या पता,कसम से ? हमेशा से तुम दब्बू आदमी हो। सब-कुछ पेट में रखोगे, पत्नी के सामने कुछ नहीं बताते। इधर आपकी कोलियरी के अमुक साहब को देखकर उनके सभी सबोर्डिनेट में से कौन छुट्टी लेगा, कौन ओवर-टाइम करेगा, कौन किसकी चापलूसी कर रहा है- सब बातें आकर अपनी पत्नियों को बताते हैं। आप अकेले पुरुषत्व दिखाते हो अपनी पत्नी के पास, कुछ होने पर भी केवल खास-खास बातें ही कहते हो।
                ये सारी डाइनिंग टेबल की बातें थी। सोते समय उस दिन बहुत ही गंभीर था देशमुख।
                गंभीर होने की कोई वजह नहीं थी। इन सारी बातों को विस्तार से बताने का सोचकर थकान अनुभव कर रहा था वह। उस समय बल्कि सोचा जा सकता है आने वाले समय की सारी संभावनाओं को। कुछ कल्पना की जा सकती है। उसे मथा जा सकता है। थोड़ा-बहुत अपने आप को भूला जा सकता है।
                देशमुख का गंभीर चेहरा देखकर अनीता ने और कुछ कहा। देशमुख ने सबसे पहले फोन करके बता दिया था अनीता को, चार बजे लंच-ब्रेक के बाद ऑफिस आने पर मालूम हुआ देशमुख को, ऑफिस के सभी लोगों को यह खबर मालूम हो गई थी।  ऑफिस सुपरिटेंडेंट ने आकर बधाई दी थी। कभी भी खातिर नहीं करने वाले डिप्टी सी.एम.ई॰ के दरबान ने एक लम्बा सलाम किया। इज्जत नहीं देने वाले क्लर्क भी डर गए थे।
                जी.एम. ऑफिस जाने के लिए गाड़ी तैयार हो गई थी। डीजल भरकर ड्राइवर इंतजार कर रहा था। फोन की लाइन ठीक हो गई थी। सब-कुछ ठीक इस तरह हो गया था, जैसे सारे ग्रह दशा टल गए हो। अप्रत्याशित रूप से नहीं होने पर भी वह आकांक्षित अनुमान सच साबित हुआ। तब मि. मिश्रा उनके ऑफिस में नहीं थे। देशमुख उनके ऑफिस में गया। दरबान ने सिंहद्वार खोला दिया। डिप्टी सी.एम.ई. के ऑफिस में कीमती गलीचा बिछा हुआ था। एअर-कूलर हल्की-हल्की आवाज में ठंडी हवा दे रहा था। दीवारों पर कीमती डिस्टेम्पर का रंग रोशनी में चमक कर रहा था। रूम-फ्रेशनर की हल्की सुगंध कमरे के भीतर। डिप्टी सी.एम.ई. की कुर्सी उसका इंतजार कर रही थी।
                इतनी जल्दी यह जीत ? मगर बहुत ठंडी, उत्तापहीन और निर्जीव। इतनी आकांक्षित वह चेयर, मगर कितनी मामूली, कितनी क्षुद्र और कितनी पार्थिव। वह लौटकर आ गया अपने पुराने चेंबर में और अनीता को फोन किया। फोन करते समय उसकी आवाज बहुत शांत थी। मानो कुछ भी नहीं हुआ हो। जैसे उसके बगीचे का क्रॉटन का पौधा मुरझा गया हो और अनीता के उद्वेग का ख्याल किए बिना कह रहा हो कि नर्सरी से दूसरा क्रॉटन लाकर दे दूँगा। जैसे कि दूध वाला अनीता से दूध में पानी मिलाने का अभियोग सुनकर अन्यमनस्क होकर देशमुख से कह रहा हो, तो फिर कोई और दूध वाला देख लो। ठीक उसी तरह से कहा था उसने, “अनीता, मि. मिश्रा का ट्रांसफर हो गया। मैं उनकी जगह में उनका काम देखूंगा।
                “और प्रमोशन ?” खुशी से पूछा था अनीता ने।
                उसकी खुशी कि ओर ध्यान दिए बिना क्रेडल पर फोन रखा दिया था देशमुख ने और फिर एक बार अपने चैंबर की ओर देखने लगा। चमक रहित। अभिजात्य-हीन। बिलकुल साधारण एक ऑफिस। एक टेबल, तीन कुर्सियां, एक स्टील अलमारी और एक फोन, टेबल पर कुछ फाइलें और पेपरवेट, बस। ऐसे ऑफिस के प्रति क्या मोह हो सकता है ? फिर भी एक प्रकार ममता चिहंक उठी थी, थर्राते हुए उसकी निरासक्त अति-आदतन अनुभूति-बोध के दीमक का घर। छि: सारे इमप्रेक्टिकल सेन्टीमेंट !
                ये सब तीन दिन पहले की बात थी। उसके बाद जिस दिन देशमुख ने कुर्सी संभाली, उस सुबह का भी कोई वैशिष्ट्य था ? उसे गुड मार्निंग कहने वाला स्टेनो, उसके पास फाइलें लाने वाला बड़ा बाबू, उसके पास सैलेरी-एडवांस मांगने आने वाले लोग, माइन्स की रेंजिग रिपोर्ट देने वाला आदमी, सिविल कामों का कांट्रेक्टर बिल साइन करने वाला ओवरसियर, स्कूल-संचालन समिति की अगली बैठक बुलाने वाला हेड-मास्टर, स्टोर में खत्म होने वाले सारे आइटमों का लोकल परचेज हो गया सेन्ट्रल स्टोर को रिक्विजीसन भेजने की अनुमति मांगने आया स्टोर-कीपर, कुछ गाड़ियों को सर्विसिंग में रखने के बारे में बताने आया इंजीनियर- सभी इस तरह आए थे जैसे वे देशमुख को इस चेयर में देखते आ रहे हैं युग-युग से,  अनादि काल से। जैसे यह कुछ नया नहीं हो, कुछ भी बदला नहीं हो। जैसे चेयर लेकर जन्म लिया हो देशमुख ने, माँ के पेट से।
                जैसे ही फेयरवेल मीटिंग से बाहर निकला था देशमुख, मि. मिश्रा ने हाथ मिलाया था। उस समय देशमुख का सारा कांपलेक्स खत्म हो गया था। दृढ़ता के साथ हाथ मिलाया था उसने। सीना फुलाकर मुस्कराते हुए कहा था उसने विश यू गुड लक।इस तरह कहा था जैसे वह नेपोलियन बोनापार्ट हो, और मि. मिश्रा उसके सामने एक हारा हुआ राजा हो। बहुत दया करके उसे क्षमा कर रहा हो वह।
                अगर वह चाहता तो उनके फेयरवेल भाषण में उसके ऊपर चढ़ जाता। मगर कुछ भी नहीं कहा उसने। उसके बाद भी उसने इंकार नहीं किया था मि. मिश्रा को, बदली के बाद के आनुषंगिक कार्यों के लिए। सामान पैक करने के लिए- लकड़ी और बढ़ई की जरूरत थी। बिना कुछ कहे व्यवस्था कर दी थी देशमुख ने। ट्रक चाहिए था सामान शिफ्ट करने के लिए, हाँ कर दिया। आदमी चाहिए थे, सामान लोड-अनलोड करने के लिए। कुछ आदमी शिफ्ट से निकाल कर व्यवस्था कर दी थी उसने।
                अब देशमुख बैठा हुआ था अपने नूतन आकांक्षित सिंहासन पर। जबकि कुछ भी अनुभव नहीं कर पा रहा था वह नवीनता का। उसका जीवन बदला गया ? कब ? किस तरह ? कैसे ? मगर देशमुख के इतने दिनों का कांपलेक्स, इतने दिनों की यंत्रणा, इतने दिनों का संघर्ष। ये सब क्या झूठे थे ? झूठ तो नहीं था। मगर याद पड़ रही थी वही पुरानी कुर्सी, पुराना चेंबर, वही दायित्वमुक्त जीवन उसका। अच्छा था, उस चेंबर में बैठे-बैठे किताबें पढ़ते बोर होना। अच्छा था, सबसे महत्त्वहीन आदमी की तरह हजारों अफसरों के बीच अपना अस्तित्व बचाए रखने का।
                देशमुख बाहर आकर खड़ा हो गया। उसके चैंबर के सामने बैठा पियोन हड़बड़ाकर ख़ड़ा हो गया। जीप से दूर खड़ा गप मारता हुआ ड्राइवर दौड़कर आया जीप के पास। गेट के पास दरबान अटेंशन की मुद्रा में खड़े हो गए।
                आज पेमेंट का दिन था। आज ऑफिस का मेन गेट बंद था। चारों तरफ हलचल, लोगों का मेला उमड़ पड़ा था। पहले डिप्टी सी.एम.ई. इस दिन ऑफिस नहीं आते थे। आज के दिन किसी भी वर्कर का पीने के बाद साहस बढ़ जाता था और मैनेजर को देखते ही हल्ला-गुल्ला, गाली-गलौच करके अपनी बहादुरी दिखाना अच्छा लगता है। किसी भी झमेले में या लोक-हंसी का शिकार नहीं बन जाए, सोचकर कोई भी डिप्टी सी.एम.ई.इस कारण से ऑफिस नहीं आते थे।
                देशमुख ने जब पहली बार कोयला खदान ज्वाइन की थी, उसने देखा था एक अद्भुत असामाजिक समाज को। जिस समाज का कोई भी संबंध नहीं था महाराष्ट्र के छोटे सिविल टाऊन जालनाके समाज के साथ। मूल्य-बोध, संस्कृति, चेतना में सारी कोलरियां एक समान थी,मगर  जालना जैसे सारे सिविल टाउन से एकदम भिन्न। यहाँ शराब पीना जितनी साधारण बात है, उससे ज्यादा साधारण है सैक्स-स्केंडल। अवश्य ही, देशमुख  कई सालों से देखता आ रहा था कोलियरी के बदलते चरित्र को। शराब पीने वालों में कमी आई थी। शराब पीने के बाद भी लोग पहले की तरह रास्ते में मारपीट नहीं कर रहे थे। पहले, सैलेरी पेमेंट के दिन कोलयरियों में बहुत रात तक श्रमिक बस्ती से सुनाई पड़ती थीं, झगड़े, मारपीट और रोने-धोने की आवाजें। कुछ दिनों से देख रहा था देशमुख, और झगड़े-मारपीट के बदले लोगों के घरों से सुनाई पड़ता था स्पीकरों पर बज रहा उत्कट हिन्दी फिल्मों का सस्ता संगीत। अब टी.वी. घर-घर होने के बाद, सुनाई नहीं पड़ते हैं माइकों पर उत्कट गीत या झगडे-मारपीट की आवाजें। आजकल शाम होते-होते श्रमिक बस्ती के सारे घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं।
                कोलियरी के साधारण लोग थोड़े सिनेमा के शौकीन थे। जीवन को सिनेमा के ढंग से सोचना उन्हें  अच्छा लगता था। यद्यपि सिनेमा ही जीवन नहीं है। अगर होता तो देशमुख की कहानी यहां खत्म हो जाती। उसके एक सफल सिनेमा के हीरो की तरह देशमुख यहां खड़ा होकर फ्रिज हो जाता। नहीं तो हुआ। देशमुख ने देखा, गेट ठेलते हुए घुसता आ रहा है ध्रुव खटुआ। उत्तेजना-वश चेहरा कांप रहा है उसका। गेट के पास दरबान ने उसे रोका नहीं, वरन नमस्कार किया उसे।
                ध्रुव खटुआ पर देशमुख की कभी भी अच्छी धारणा नहीं रही। अपसंस्कृति का प्रॉडक्ट हो जैसे, मि. मिश्रा के समय खटुआ ने कभी उसे घास नहीं डाली थी। देशमुख के प्रमोशन की खबर पाकर दौड़ा आया बधाई देने के लिए। विचलित होने का अभिनय कर रहा था वह। कहने लगा वह हम लोग हमेशा से मैनेजमेंट के आदमी हैं। आपको हम बाहर में गाली देंगे। उन गालियों की खबर आपके पास पहुँचने पर आप बुरा मत मानना। मास-सेंटीमेंट की बात तो आप जानते हैं, मैनेजमेंट को गाली दिए बगैर लोगों को काबू में  नहीं रखा जा सकता है। आप तो जानते होंगे ये सारी बातें। मगर मेरे रहते आपको कभी हैरान नहीं होना पड़ेगा।”
                मनुष्य किस हद तक धूर्त हो सकता है और अपने झूठे उद्देश्य को किस तरह हंसते हुए निर्लज्जतापूर्वक कह पाता है देशमुख ने देखा था उस दिन। देखकर उसे आश्चर्य हो रहा था, घृणा से सिहरन उठ रही थी उसमें। किन्तु फिर भी उसने हाथ मिलाया था उससे, मधुर मुस्कान बिखेरते हुए। चाय मंगाकर पिलाई थी उसे। माइन्स की समस्याओं के बारे में भी विचार-विमर्श किया था उससे।
                ध्रुव खटुआ ने आकर नमस्कार किया था देशमुख को। उसको देखने से ही खटुआ के चेहरे का क्रोध  जैसे खत्म हो गया था। हँसते-हँसते गुदगुदाते हुए कहा था उसने, “आपके साथ बातचीत करनी थी, सर! जरुरी बातचीत।
                “आइए !कहते हुए देशमुख चैंबर के अंदर चला गया। पीछे-पीछे ध्रुव खटुआ भी। अपनी कुर्सी में बैठा देशमुख ने, पीछे की ओर सहारा लेते हुए। बेल बजाकर पियोन को बुलाया और दो कप चाय का आर्डर दिया। रिवोल्विंग चेयर में थोड़ा आराम करने के बाद दाएं-बाएं घुमाते हुए पूछने लगा, “क्या बात कहना चाहते थे ?”
                खटुआ फिर फॉर्म में आ गया अपनी। चेहरे पर क्रोध झलकने लगा। पूछने लगा वह, “आपने हरिशंकर को यूनियन को चंदा इकट्ठा करने के लिए इजाजत दी है ?
                देशमुख जानता था, यह बात निश्चय उठेगी। हरिशंकर को चंदा वसूलने की अनुमति देना उसका इस चेयर में बैठने से पहले का सबसे महत्त्वपूर्ण फैसला था। उससे पहले उसने सोच लिया था, ध्रुव खटुआ के आदमी चार्ज करने पर वह कैसे मुकाबला करेगा। वह सामान्य हँसी हँसते हुए कहने लगा, “पहले चाय पीओ। फिर बातचीत।
                ध्रुव खटुआ ने चाय का कप उठा लिया था। फिर पता नहीं क्या सोचकर फिर कप रख दिया था। कहने लगा, “नहीं, पहले मुझे उत्तर चाहिए। आपने दिया था चंदा वसूलने का आर्डर ?”
                देशमुख ने कल सारी रात बहुत सोच विचार कर देखा था। हरिशंकर पटनायक के यूनियन के प्रति उसका जैसा सॉफ्ट-कार्नर है, ऐसी बात नहीं है। मगर यह बात अस्वीकार भी नहीं की जा सकती है, कि उसके राज-लाभ के प्रति हरिशंकर की यूनियन कुछ भी भूमिका नहीं रही है। देशमुख जानता है, कोई भी यूनियन श्रमिकों का भला नहीं करेगी। सभी अपने-अपने स्वार्थ में लगे हुए हैं। हरिशंकर हो या ध्रुव खटुआ- सभी एक ही थाली के सट्टे-बट्टे हैं। श्रमिक लोग भी जानते हैं, उनके अपने स्वार्थ की लीला यूनियन-फूनियन सारे झूठे और धप्पल-बाज हैं।
                उसके अलावा, वह कैसे भूल जाएगा मि. मिश्रा के समय में ध्रुव खटुआ के लोगों की उसके प्रति दर्शाइ गई अवहेलना और उपेक्षा को। किस प्रकार श्रद्धा कर सकता है उनके प्रति। अवश्य, देशमुख ने बहुत सोचा था। भाव-प्रवणता उसके व्यक्तित्व में अब शोभा नहीं देती है। उसका कोई भी एक गलत फैसला उसके लिए घातक-क्षति आमंत्रित कर सकती है, मि. मिश्रा की तरह।
                ध्रुव खटुआ का जैसे कुछ जन-समर्थन है, हरिशंकर का भी होगा निश्चय। नहीं तो, उस दिन हरिशंकर की पिट-हेड मीटिंग में इतने लोग कहां से जुटते। इसलिए देशमुख को दोनों को ही समान भाव से देखना होगा। कोई भी ऐसा नहीं समझेगा कि देशमुख उनका आदमी नहीं है। देशमुख ने हँसते हुए कहा, “उनको तो केवल चंदा इकट्ठा करने के लिए कहा है। मैंने उन्हें पॉलिसी के बारे में बातचीत करने के लिए नहीं  बुलाया, ध्रुव बाबू। उसके अलावा, वे लोग पेमेंट-काउंटर से सौ गज की दूरी पर रहेंगे। आप लोग रहोगे काउंटर के पास में। अगर आपके पास जन-समर्थन है तो डरने की क्या बात है ? आपके पास से हटकर अगर लोग उन्हें चंदा देंगे तो यह आपकी अक्षमता ही मालूम पड़ेगी। मेरा विश्वास है, अभी भी पारबाहार कोलियरी के श्रमिकों का समर्थन है आपके पीछे। आपके चंदा-संग्रह में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए।
                ध्रुव खटुआ चेयर को पीछे धकेलते हुए खड़ा होकर कहने लगा, “आपने हरिशंकर को चंदा-संग्रह का आदेश देकर अच्छा नहीं किया, सर। और रही श्रमिकों के समर्थन की बात तो ? आप जल्दी ही जान जाओगे हमारे पीछे जन-समर्थन है या नहीं। आज ही हम आपको बता देंगे। मगर उसके नतीजे का जिम्मेवार आप रहेंगे।
                “आप क्या मुझे धमकी दे रहे हो ?” चेयर छोड़कर जा रहा ध्रुव खटुआ फिर लौटकर आया। वह कहने लगा, हम राजनीति करते हैं, सर। राजनीति में धमकी नहीं दी जाती है। वहाँ केवल एक्शन दिखाया जाता है। अभी भी कह रहा हूँ, आप नया नोटिस निकाल दीजिए। आपकी कोलियरी में अधिकृत यूनियन के सिवाय और कोई चंदा इकट्ठा नहीं कर पायेगा। आपके नोटिस निकलने के बाद आप देखिएगा, हम उन्हें कैसे मजा चखाते हैं। देखिए, आपकी चेयर ही ऐसी है, जहाँ बैठने वाले आदमी को चारों तरफ देखकर पदक्षेप लेना पड़ता है।
                “मुझे मेरा कर्तव्य-अकर्तव्य मत सिखाइए। मुझे मालूम है, मुझे क्या करना है।
                “तो आप नया नोटिस नहीं निकालेंगे ?”
                “नहीं।
                “ठीक है। इसके बाद अब आप मुझे दोष नहीं देंगे।
                ध्रुव खटुआ बाहर निकल गया। जाते समय दरवाजे को जोर से धक्का देते हुए बंद कर दिया। जैसे एक थप्पड़ मारकर गया हो। देशमुख को बहुत अपमान लगा यह। ध्रुव खटुआ बाहर खड़ा होकर देशमुख के नाम पर गाली देने लगा, सुनने में आया देशमुख को। उसके इतने दिनों का कोलियरी के अनुभव से वह जानता है, इस तरह हल्ला-गुल्ला करा, गाली-गलौच करना कुछ बड़ी बात नहीं है।
                पहले-पहले वह सोचता था, ये सारी बातें शायद श्रेणी चेतना और श्रेणी-संघर्ष से जुड़ी हुई है। अब वह समझ गया है- नहीं, ये सब फार्श है। ये सब पॉलिटिक्स का एक एक दांव-पेंच है। ऐसे हल्ले-गुल्ले की तरफ ध्यान नहीं देता था देशमुख। फिर भी उसका मन खराब हो गया था। खटुआ ने जाते समय इतनी जोर से दरवाजा पीटा था, पियोन क्या सोच रहा होगा ? उसने पियोन को घंटी बजाकर बुलाया और कहने लगा, “दरबान को कहो कि वह खटुआ बाबू को गेट से बाहर निकाल दे।
                पियोन की नर्वसनेस देखकर समझ गया देशमुख, हुक्म को तामिल करने की ताकत नहीं थी पियोन में। बिना कुछ कहे नर्वस होकर पियोन चला गया। देशमुख की कनपटी गरम लगने लगी थी। पांव थोड़े-थोड़े कांपने लगे थे। सीने की धड़कन ? देशमुख ने पानी पिया। ध्रुव खटुआ की गालियों पर वह ध्यान नहीं देता है, ध्रुव खटुआ की धमकी की भी वह खातिर नहीं करता था, परंतु ध्रुव खटुआ ने जाते समय इतनी जोर से दरवाजा क्यों पीटा ? क्या सोचता होगा पियोन ?
                “देशमुख ने फोन किया जी.एम. मिरचंदानि थे पास। सर, मैं देशमुख बोल रहा हूँ।
                “बोलो।
                “सर, अभी-अभी ध्रुव खटुआ ने आकर मुझे धमकी दी है।
                “ध्रुव खटुआ ? क्यों ?”
                “मैंने हरिशंकर पटनायक को पेमेंट-काउंटर से सौ गज की दूरी पर रहकर चंदा-संग्रह करने की अनुमति दी है इसलिए।
                “व्हाट ? तुमने हरिशंकर को परमीशन दी ? किसने कहा था तुम्हें परमीशन देने के लिए ?”
                देशमुख जैसे आकाश से गिरा हो। मि. मिरचंदानि ने तो उसे उकसाया था, हरिशंकर की मार्फत से मि. मिश्रा और ध्रुव खटुआ को पानी पिलाने के लिए। वह क्या भूल गए ये सब ? क्या कहेगा सोच नहीं पा रहा था देशमुख। उसने कहा, “सर, मैंने सोचा आपका समर्थन है हरिशंकर के प्रति।
                मि. मिरचंदानि गुस्से में कहने लगे, “क्या कह रहे हो तुम ? मैं इतना बड़ा एरिया संभाल रहा हूँ। मेरा क्या इंटरेस्ट है यूनियन पॉलिटिक्स में ? उसके अलावा, हू हरिशंकर पटनायक इज ? मैं क्यों उसे समर्थन करूंगा। देखो देशमुख,  तुम अपनी गलती को मेरे सिर पर थोंपने की चेष्टा मत करो।
                देशमुख को अंधेरा दिखने लगा। वह असहाय, इतना भयभीत और इतना कमजोर पहले कभी नहीं हुआ था। उसकी आवाज भी उसे अपरिचित लगने लगी थी। वह कहने लगा, “सॉरी सर, मुझसे गलती हो गई।
                “गलती ? केवल गलती ? तुम्हारी इस गलती का नतीजा क्या होगा, जानते हो ? यूनिट की कोई भी क्षति हुई अगर, तो तुम दायी होंगे। याद रखना।
                आश्चर्य का है यह सिंहासन। मि. मिश्रा को मि. मिरचंदानि इसलिए पसंद नहीं करते थे कि वह ध्रुव खटुआ को बहुत प्रश्रय दे रहा था। और अब देशमुख पर गुस्सा उतार रहे हैं कि देशमुख खटुआ को बिलकुल प्रश्रय नहीं दे रहा है, इसलिए। क्या चाहते हैं मि. मिरचंदानि ?
                जी.एम. कहने लगे, “आप जल्दी मेरे ऑफिस में आओ, इमीडिएट। यहां सब बातें डिटेल में करेंगे।देशमुख ने फोन रखकर कालिंग-बेल बजाते हुए पियोन को बुलाकर ड्राइवर को तैयार रहने के लिए कहा और बाथरुम चला गया। यह बाथरुम ही तो उसका अपना है। बाथरुम में सेनेटरी सेन्ट की खुशबू आ रही थी। एकदम साफ-सुथरा बाथरूम। नीचे कार्पेट बिछी हुई। एक तरफ लगा हुआ कमोड़। दूसरी ओर यूरिनल और बेसिन। बेसिन के ऊपर लगा हुआ है एक दर्पण। देशमुख ने पेशाब करने के बाद मुंह धोया। थोड़ा साबुन भी लगाया चेहरे पर। टॉवेल से चेहरा पोंछकर पाकेट से कंघी निकालकर बाल संवारे देशमुख ने। जितना स्वाभाविक दिख सकता था, उतना स्वाभाविक दिखने की कोशिश की उसने। उसके मन की अस्थिरता को बाहर प्रकट करना उचित नहीं था। यहीं तो व्यक्तित्व है। आप अपनी अनुभूतियों को जितना दबाकर रखोगे, अपने भीतर की बातों को जितना छुपाकर रखोगे, उतना ही सुदृढ़ व्यक्तित्व के इंसान कहे जाओगे।
                मि. मिरचंदानि उसे थोड़ा प्यार करते हैं निश्चय। नहीं तो, उसके इस नई चेयर पर बैठते समय एक बार बुलाकर अपने पाठ सिखाए थे, जिसे लेकर एक छोटी किताब लिखी जा सकती है, जिसका शीर्षक होगा, “दक्ष ऑफिसर कैसे बना जाए ?”
                मि. मिरचंदानि ने उसको कहा था, “आप बाहर में जितना चिडेचिडे और गंभीर दिखोगे, उतनी ही तुम्हारी विश्वसनीयता बढ़ेगी। आप कभी भी किसी से खुश होने पर भी हंसमुख या मजाक करते हुए नहीं दिखोगे। और एक बात, आप कभी भी किसी को किसी विषय में हांनहीं कहोगे। कोई छुट्टी मांगेगा, कोई सैलेरी एडवांस मांगेगा, तो कोई जीप मांगने आएगा पहली बार में आप कभी हांनहीं करोगे। अगर आप पहली बार में हांकह दोगे तो वह आदमी कभी नहीं सोचेगा कि आपने उस पर उपकार किया है। बल्कि वह सोचेगा, उसे पाना उसका अधिकार है। आप उसे दो तीन बार दौड़ाने के बाद जब उसका काम करोगे तो वह आपके प्रति विश्वस्त और अनुगत होगा। उसके मन में एक धारणा बनेगी कि आप ऑफिसर के हिसाब से कितने भी दृढ़ क्यों न हो, उसके प्रति आपके मन में कोमल मनोभाव है।”
                देशमुख ने एक बार हैदराबाद में एक मैनेजमेंट की ट्रेनिंग की थी तीन दिनों के लिए। सारे कोयला खदानों के मैनजरों के लिए एक कंडेंस्ड ट्रेनिंग कोर्स था। वहां के एक इंस्ट्रक्टर ने कहा था, अभी भी देशमुख को याद है कि एक अच्छा मैनेजर कभी भी नहींनहीं कहेगा। क्योंकि मैनेजर का पहला काम होता है, उसका लोगों से काम निकलवाना। अगर एक अधीनस्थ कर्मचारी थोड़ी देरी से आया, या छुट्टी का आवेदन-पत्र दिया, एक हॉफ डयूटी नहीं आने की परमीशन मांगा तो उसे मना नहीं करना चाहिए। अगर आप उसे छुट्टी नहीं देते हो, वह बाध्य होकर कार्यस्थल पर उपस्थित रहेगा। मगर वह शायद काम नहीं कर पाएगा। उसके काम करने की गति कम हो जाएगी। किंतु अगर आप उसकी छुट्टी स्वीकार लेते इस शर्त पर कि तुम अपना बचा हुआ काम परवर्ती समय में बिना ओवर-टाइम लिए कर दोगे, तो आप उस आदमी से यथेष्ट काम निकाल पाओगे।
                देशमुख ने बताई थी जी.एम. को स ट्रेनिंग-इंसपेक्टर की बातें। मि. मिरचंदानि ने हंसकर उड़ा दिया था, ‘हां ये सारी केवल थ्योरी की बातें हैं। अगर आप किसी को कुछ स्कोप देते हो, तो वह कैसे और सुविधा पाएगा, उसी चक्कर में रहेगा वह। आप हमारी इंडियन मेंटलिटी के बारे में नहीं जानते हो। भारतीय मानसिकता ही है सुविधावादी, आलसी और स्वार्थान्वेषी-प्रवृति का समाहार। आप सोचते हो किसी आदमी को फुसलाकर कहोगे, उसका बाकी काम करने के लिए और क्या वह कर देगा ? कभी भी नहीं। जब तक उस डराया-धमकाया नहीं जाता है, वह आपको काम करके नहीं देगा। काम निकलवाने का एक ही तरीका है भारत में। आप अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से जितना दूरी रख सकते हो, उतना ही अच्छा है। आपके अधीनस्थ कर्मचारियों की कमजोरियों को खोजकर बाहर निकालो और उन कमजोरियों पर आघात करो। हर समय उनके काम की गलतियों को खोजो और उनके लिए उन्हें चार्ज करो। ऐसा एक परिवेश तैयार करो, जैसे आप काम के लिए उत्सर्गीकृत हो और काम के सिवाय दूसरी बातें कुछ भी नहीं जानते हो। देखोगे, सभी किस तरह पूंछ दबाकर आज्ञाकारी कर्मचारी की भांति काम करेंगे।
                देशमुख बाहर आ गया बाथरुम से। पियोन हड़बड़ा कर उठ गया। यह पियोन कभी भी इज्जत नहीं करता था उसकी, मि. मिश्रा के समय। मगर आज किस तरह सम्मोहित-सा खड़ा है। देशमुख जाकर जीप में बैठ गया।
                जी.एम. मिरचंदानि ने कहा था, कठोर बनो। और ज्यादा कठोर बनो। देशमुख क्या अभी तक इतना कठोर नहीं हो पाया था ? वह क्या अभी तक अपना आफिसरीय व्यक्तित्व जाहिर नहीं कर पाया ? या पहले की, उसकी उपेक्षित, क्षमताहीन, नाम-मात्र ऑफिसर की इमेज भूल नहीं पाए लोग अब तक ? आज ध्रुव खुटिआ का व्यवहार क्या पहले के देशमुख के व्यक्तित्व के प्रति एक चैलेंज है ?
                क्या करेगा अब देशमुख ? वह क्या ध्रुव खटिआ के विरुद्ध में खड़ा होगा ? शायद वह नहीं हो पायेगा। क्योंकि जी.एम. कभी भी नहीं चाहेंगे, श्रमिक अशांति को। उसके अलावा, हरिशंकर के प्रति इस तरह सहानुभूति दर्शाने का काई अर्थ है ? हरिशंकर कौन होता है? एक महत्वाकांक्षी श्रमिक नेता। ध्रुव खटुआ से उसका कोई पार्थक्य नहीं है। एक ही सिक्के दो पहलू। इसलिए हरिशंकर हों या ध्रुव खुटिआ, श्रमिकों के लिए क्या लाभ या क्या हानि ? जीप में संभलकर बैठ गया देशमुख। जी.एम. जरूर कोई अच्छा उपाय बताएंगे। अभी भी उनकी नजरों में देशमुख का स्थान है।
                शाम चार बजे खबर मिली देशमुख को, सेकेंड शिफ्ट के लोग काम पर नहीं जा रहे हैं। अचानक स्ट्राइक कर दी है उन्होंने। खबर मिलते ही फोन किया था,  मैनेजर के चार्ज में रहे सेफ्टी ऑफिसर मि. नायडू ने।
                “उनकी मांगें क्या है ?” पूछा था देशमुख ने।
                “कुछ भी मालूम नहीं चल रहा है, सर। आप आ जाते तो ठीक रहता।
                अनीता पास में थी उस समय। ठीक ऑफिस के लिए निकलने से पहले, दोपहर की नींद से उठा था देशमुख। अभी तक चाय भी नहीं पी थी उसने। अनीता चाय के कप में शुगर-क्यूब घोल रही थी। पूछने लगी, “किसका फोन है ? क्या हुआ ?”
                लेबर लोग काम पर नहीं जा रहे हैं। क्या हुआ है पता नहीं चल रहा है। मुझे जाना होगा।”
                “आप पेमेंट के दिन आज पिट पर जाओगे ? आज अधिकांश लोग पिये हुए होंगे। फिर श्रमिक अशांति की बात। कब क्या हो जाएगा ?
                “हमारा काम है, अनीता, श्रमिकों से। मेरा दायित्व है इस कोलियरी का। मेरे यूनिट में स्ट्राइक होगी, और मैं बैठा रहूंगा, यह क्या अच्छा लगेगा ?”
                देशमुख उठकर खड़ा हो गया। जल्दी-जल्दी शर्ट-पेंट पहनकर, खड़े-खड़े ही चाय पी ली उसने। अनीता ने निकाले एम्बेसेडर जूतों को छोडकर सेन्टी जूते पहन लिए उसने व्यस्तता से, हो सकता है, अंडरग्राउंड जाना पड़ जाए और वह बाहर निकल गया।
                पिट के पास पहुंचते समय लोगों की भीड़ जमी हुई थी वहां। दो सिक्यूरिटी गार्ड दौड़कर आए, भीड़ में एस्कॉर्ट करने के लिए। इतनी ज्यादा भीड़ देखकर देशमुख पहले डर गया था। मगर बाहर पता चलने नहीं दिया उसने। लकड़ी उठाकर पास में खडे हुए गार्ड को इशारा करते हुए कहा, “सब ठीक है। घबराने की जरुरत नहीं है। दोनों गार्ड भीड़ के अंदर से उसे ले गए ऑफिस में।
                ऑफिस में मि. नायडू बहुत चिंतित मुद्रा में बैठे हुए थे। पास में थे दूसरे अंडर-मैनेजर, इंजीनियर। ओवरमेन, माइनिंग सरदार खड़े हुए थे, टेबल को चारों तरफ से घेरकर। देशमुख को देखकर अपनी कुर्सी छोड़कर दूसरी कुर्सी पर बैठते हुए मि. नायडू ने कहा, “आपको आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, सर!  आज पेमेंट-डे है तो। लोग इतना पी लेते हैं ! कब क्या हो जाएगा” देशमुख ने पूछा, “क्या हुआ है ? घटना क्या है ?”
                “ऐसा कुछ भी कारण नहीं है,सर। ध्रुव बाबू के आदमी किसी को भी भीतर नहीं जाने दे रहे हैं।”
                “क्यों नहीं जाने दे रहे हैं ? यहां क्या गुण्डाराज चल रहा है? श्रमिकों को काम पर जाने के लिए इस तरह डराने-धमकाने से वे लोग मान जाएंगे।
                डर के मारे कोई नीचे नहीं जा रहा है। आज फिर पेमेट का दिन। स्वाभाविक है, आज बसेंटिज्म ज्यादा होती है। लोगों का ऐसे भी मूड़ नहीं होता है काम करने के लिए। फिर इतने झमेले में कौन काम करने जाएगा।
                “आपने यूनियन वालों के साथ बातचीत की ?”
                “ध्रुव बाबू के आदमी तो कमरे में नहीं आए। अगणी होता के साथ बातचीत हुई थी। हरिशंकर पटनायक दल का अगणी होता। वे लोग भी इस अचानक स्ट्राइक का अर्थ नहीं समझ पाए।
                “इसका मतलब यह स्ट्राइक यूनियन वालों की ओर से नहीं बुलाई गई है।
                मि. नायडू ने कुछ समय के लिए चेहरा नीचे झुका दिया। उसके बाद कहने लगे, “सच कहूं तोध्रुव खटुआ दल के लोगों ने ही भीतर जाने से रोका है। वे अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।”
                “क्यों ?”
                एक माइनिंग सरदार इस बार आगे आया, “मैं एक बात कहूंगा, सर। आप लोग जिस बारे में नहीं जानते हो, उसकी बार-बार चर्चा करने से क्या होगा ? आप सभी जानते हैं, इस स्ट्राइक की जड़ है ध्रुव खटुआ। आपने हरिशंकर पटनायक के दल को चंदा इकट्ठा करने की परमीशन दी है, इसलिए उन्होंने स्ट्राइक बुलाई है।
                गंभीर होकर देखा देशमुख ने उस माइनिंग सरदार की तरफ। क्या यह आदमी ध्रुव खटुआ की तरफ का है ? क्या पता ? पूछने लगा-
                “क्या इस कारण से कोई स्ट्राइक की जाती है? वह भी बिना किसी पूर्व नोटिस के ? मांग-पत्र कहां है ? कहाँ है एक महीने पहले वाला नोटिस ?”
                “दावा पत्र की बात करेंगे सर, तो एक-हजार-एक दावा पत्र तैयार हो जाएंगे। और मासिक नोटिस की बात कर रहे हैं ? उसी की आड़ में तो ध्रुव खटुआ का दल सामने नहीं आ रहा है। इसका मतलब, उन्होंने कागज कलम में स्ट्राइक की घोषणा नहीं की है, बल्कि वे तो यह दिखाना चाहते हैं कि उनमें कितना दम है।”
                देशमुख को और माइनिंग सरदार के साथ बातचीत करने की इच्छा नहीं हुई। उसे हाथ हिलाकर चुप रहने को कहते ही ओवरमेन और दूसरे माइनिंग सरदारों ने उसे चुप करा दिया। कोई आदमी उसे खींचकर बाहर ले गया। देशमुख कहने लगा मि. नायडू से, “आप एक नोटिस टांग दो, कोल इंडिया के स्टैंडिंग आर्डर के अनुसार बिना किसी पूर्व नोटिस के स्ट्राइक करनेवाले लोगों की एक सप्ताह की तनख्वाह काट दी जाएगी।”
 मिस्टर नायडू कहने लगा, “मैं एक बात कहूंगा, सर ? मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, ऐसे नोटिस से अच्छा होने की जगह बुरा प्रभाव ज्यादा होता है। एंटी पार्टी के लोग अगर एक दिन लोगों को रोक सकते हैं, तो सात दिन तक स्ट्राइक सफल हो जाएगी। लेबर लोग सोचते हैं, काम करने पर भी सात दिन की तनख्वाह कटेगी, नहीं करने पर भी सात दिन की तनख्वाह कटेगी। फिर व्यर्थ में कौन सात दिन काम कर पैसा कटवाना कौन चाहेगा, सर ?
                तब क्या करेगा, देशमुख ? पुलिस को फोन करेगा ? हरिशंकर पटनायक को बुलाकर कहेगा स्ट्राइक से मुकाबला करने के लिए ? नहीं, ध्रुव खटुआ को बुलाकर कहा जाए, उसकी सारी शर्तें मान ली जाती है, कहकर। क्या करेगा देशमुख ?               
                अचानक उसे याद हो आई मि. मिरचंदानि की बात। उनको तो कहना ही भूल गया था देशमुख। जबकि एरिया का मालिक होने के कारण उन्हें तो पहले जानकारी दे देना चाहिए था देशमुख को। आज दोपहर में ही बुलाकर मि. मिरचंदानि ने उसे सतर्क कर दिया था, यह ध्रुव खटुआ आदमी बहुत ही खतरनाक है और किसी भी तरह उसे अपने हाथ में रखना जरूरी है। देशमुख जिस समय जी.एम. के चेम्बर में घुसा था, आशातीत भाव से मि. मिरचंदानि ठंडे थे। थोड़े ही समय पहले फोन पर हुई गरमा-गरमी का थोड़ा भी अंश उनकी आवाज या आँखों में दिखाई नहीं पड़ रहा था। ज्यादा समय तक देशमुख को बिठाकर रखा था अपने पास। देशमुख बैठे-बैठे चाय पी रहा था और वह फाइल पढ़ते-पढ़ते साइन कर रहे थे। अंत में चेहरा ऊपर उठाते हुए कहने लगे थे, “तो ध्रुव खटुआ के साथ तुम्हारी आज बहसा-बहसी हुई ?”
                आश्चर्य चकित हो गया था जी.एम॰ की बात सुनकर देशमुख। वह तो यह सोचकर आया था, जी.एम. के चेंबर में घुसते ही गरज उठेंगे मि. मिरचंदानि। डांट-फटकार करेंगे देशमुख को उस क्रियाकलाप  के लिए। उसके बदले इतनी ठंडी आवाज में पूछ रहे हैं, जी.एम. ऐसा सवाल ?      
                “मुझसे कुछ गलती हो गई, सर ?”
                “देखो, देशमुख। पारबाहार कोलियरी तुम्हारा अंचल है। तुम्हारे काम में मेरा घुसना ठीक नहीं है। जो भी हो, वह तुम्हारी जगह है। उसका अच्छा बुरा, वहाँ की स्थानीय पॉलिसी, डिसीजन इन सभी में केवल तुम्हारा फैसला ही लागू होगा। मैं इन सब में बिलकुल दखल नहीं दूंगा। मुझे केवल दो चीजें चाहिए- पहली, कोयले का उत्पादन और दूसरी, श्रमिकों की शांति। इन दोनों चीजों के बाद जो तुम करना चाहो, करो, नियम को ध्यान में रखते हुए। मगर तुम्हारे हित के लिए मैं कह देता हूँ- ध्रुव खटुआ बहुत खतरनाक आदमी है। खाली इतना मत सोचना कि मंत्री के लिए वह इतना ताकतवर है। उसका खुद का भी कुछ जोर है। उसके अलावा हरिशंकर पटनायक एक निर्जीव आदमी है। उसके भरोसे मैनेजमेंट चलाना मुश्किल। फिर हरिशंकर आदमी इतना खतरनाक नहीं है। अगर उसे लेकर तुम अपनी यूनिट चलाना चाहते हो, तो चलाओ। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”
                अब फिर जी.एम. की बात याद आ गई देशमुख को। उन्हें यह खबर देनी चाहिए। फोन उठाकर रिंग करने लगा। उधर से मि. मिरचलानि से उठाया फोन।
                “सर, मैं देशमुख कह रहा हूँ। हमारी कोलियरी में स्ट्राइक आरंभ हो गई है, सर। मजदूर लोग नीचे नहीं जा रहे हैं, सर !
                “खबर मिली है।मि. मिरचंदानि की आवाज पहले की तरह ठंडी, उत्तेजना-विहीन।
                “सात दिन तनख्वाह काटने का नोटिस देंगे, सर ?”
                “देखो, जो भी ठीक लगता हो।
                “क्या पुलिस को खबर देंगे?
                “देखो देशमुख, पहले ही मैंने कह दिया था, तुम्हारे जूरिडिक्शन में आने वाले विषयों पर मैं बिलकुल दखलंदाजी नहीं करूंगा। तुम्हें संभालना होगा अपना राज्य। पहले ही मैंने कह दिया, मुझे केवल दो चीजों की जरूरत है। पहला, उत्पादन और दूसरा शांति-शृंखला। इन दोनों चीजों के लिए तुम उत्तरदायी रहोगे। स्ट्राइक बंद करवाना तुम्हारा उत्तरदायित्व है। जैसे भी हो, जिस तरीके से भी हो, स्ट्राइक तुंडवाओ, बस। और मुझे तुमसे कुछ नहीं सुनना है। आशा करता हूँ, तुम्हारा दूसरा फोन मुझे शीघ्र मिलेगा- यह खबर देते हुए कि सब ठीक-ठाक है। इस जवाब के अलावा और मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहता।”
                मि. मिरचंदानि ने फोन रख दिया। उनका अंतिम वाक्य बहुत ही कर्कश और विरक्तिकर था। देशमुख फोन रखकर स्तब्ध होकर बैठा रहा। यह कैसा रूप है मि. मिरचंदानि का ? वह चाहते क्या हैं? आज दोपहर में तो बहुत शांत थे वह। उससे पहले फोन पर बहुत उत्तेजित हो गए थे। वह चाहते क्या हैं? वह क्या देशमुख के क्रिया-कलाप से खुश नहीं हैं? आज दोपहर में मुलाकात के समय तो ऐसा नहीं लग रहा था। मि. नायडू ने पूछा- जी.एम. क्या कह रहे थे, सर ?”
                देशमुख को बहुत असहाय लग रहा था। उसे लग रहा था, मानो वह युद्ध क्षेत्र में अकेले हो गए हो। चारों तरफ से शत्रुओं ने घेर लिया हो उसे। हाथ में है केवल एक हथियार। जबकि चारों तरफ से सभी लोग बंदूक तान कर आगे बढ़ रहे हो। बहुत ही असहाय भाव से वह चिल्ला रहा हो- हेल्प।
               





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