त्रयोदश परिच्छेद


त्रयोदश परिच्छेद
                यह हरिशंकर की पराजय है ? पराजय क्या इस तरह आती है ? आती है साधारण तरीके से आकाश पवन, पृथ्वी, सूर्य-चन्द्र, आंधी-तूफान, झड़ते हुए पत्ते, कली से फूटते हुए फूल, रेडियो में बजते हुए गीत, दौड़ते-भागते बच्चों के साथ बहुत साधारण आदमी की तरह। आती है और हाथ मिलाती है, कुशल मंगल पूछती है। सोया हुआ हरिशंकर पांवों को थोड़ा सिकुड़ लेता है। खाट के एक कोने में बैठी हुई है पराजय। खांसती है। अपनी धोती के एक किनारे हाथ की मुट्ठी में पकड़कर अपने चेहरे का पसीना पोंछते हुए इस तरह से देखता है जैसे एक पानी गिलास पीने से कृतार्थ हो जाएगा।
                हरिशंकर ने जब सुनी उसके हारने की खबर। उस समय रस्सी वाले खाट पर सोते हुए पेपर पढ़ रहा था। वास्तव में वह पढ़ नहीं रहा था, केवल आंखों के सामने खोलकर रखा था उसने अखबार। किंतु मन में घूम रही थी स्ट्राइक, ध्रुव खटुआ, पारबाहार कोलियरी के श्रमिक और कर्मचारी, जी.एम., मि. देशमुख के चेहरे। उस समय अगणी आया साइकिल पर। एक पैर पैडल के ऊपर, दूसरा जमीन पर रखते हुए कहने लगा, अभी की खबर सुनी है, नेताजी ? देशमुख और ध्रुव खटुआ के बीच राजीनामा हो गया है। आज मैं सैकंड-शिफ्ट में  पन्द्रह आदमी को खदान में नीचे भेजकर आया हूं। साले देशमुख साहेब ने अगर एक दिन इंतजार किया होता तो पूरी स्ट्राइक टूट जाती।
                स्ट्राइक काल्ड ऑफ कर दी है ध्रुव खटुआ ने, विजयी होकर ? हरिशंकर तोड़ नहीं पाया था उस स्ट्राइक को ? उससे ज्यादा बड़ी असफलता और उसके लिए क्या हो सकती थी ?
                देशमुख साहब को दोषी नहीं ठहरा सकता था हरिशंकर। क्योंकि उन्होंने यथेष्ट समय दिया था। तीन दिन। तीन दिन के अंदर हरिशंकर को अपनी क्षमता दिखला देनी चाहिए थी।
                लगता है, हरिशंकर आजकल आउट-डेटेड हो गया है। परित्यक्त । शायद आज-कल के जमाने के साथ वह हाथ मिलाकर नहीं चल सकता, बूढ़ा अथर्व। उसके लिए दुबारा यूनियन राजनीति में घुसना क्या जरुरी था ? देशमुख कुछ भी नहीं है, कभी भी कुछ नहीं था। शायद वह हेमबाबू के लिए वह था प्रतिपत्तीशाली। ऐसे तो ध्रुव खटुआ भी कुछ नहीं है। हेमबाबू ही उसकी ताकत है, जिसकी वजह से आज उसकी जय हुई। ऐसे तो हेमबाबू भी कुछ नहीं है, उनके पीछे है उनका मंत्रीपद की क्षमता-शक्ति ही सब-कुछ है। हरिशंकर पहले ही समझ गया था कि क्षमता की रस्सी बहुत लंबी और प्रभावशाली होती है। अनेक लोग उसको उकसा रहे हैं हेमबाबू के विरुद्ध में विद्रोह करने के लिए। उनका दल छोड़कर दूसरे दल में लाने के लिए। मगर कभी भी हरिशंकर ने ऐसा पदक्षेप नहीं लिया था। यदि जी.एम. मि. मिरचंदानी ने उसको अभय प्रश्रय नहीं दिया होता तो वह एक और यूनियन बनाने की कोशिश नहीं करता। फिर कभी शायद वह ध्रुव खटुआ के खिलाफ और एक यूनियन खडी नहीं करता, मगर वह जी.एम. को दोष नहीं देगा। उन्होंने काफी सहयोग किया था। शायद ऐसा प्रतीत होता है, हरिशंकर में कोई क्षमता नहीं थी, जनता के ऊपर उसका कोई प्रभाव नहीं था।
                तब क्या हरिशंकर ने समझ लिया था, मैनेजमेंट की दया के सिवाय यूनियन नहीं बनाया जा सकता था ? हाँ, वह जानता था। मैनेजमेंट की दया के बिना कोई भी यूनियन मजबूती से खड़ा नहीं हुआ है इस गणतांत्रिक देश में ? क्या ऐसा ही होना था ? ऐसा होना उचित था ? जिस ट्रेड यूनियन का जन्म श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए हुआ हो, वह यूनियन का अपना दायित्व छोड़कर मैनेजमेंट पर आश्रित रहेगा ? क्यों ? क्या यह बड़ा विश्वास घात नहीं है ?
                हरिशंकर जिस समय पहली बार यूनियन में घुसा अपने जवानी के समय, उस समय हेमबाबू भी इतने महत्त्वाकांक्षी नहीं थे। हरिशंकर हर समय सोचता आ रहा था यूनियन मैनेजमेंट का श्रेणी-शत्रु है। मगर उसी दौरान सब कुछ बदल गया। वे  सपनें, वे आशाएं, वही भावुकता सब-कुछ बदल गया था. सब कैसे बदल गया ? हरिशंकर ने खुद ही मान लिया था मैनेजमेंट के आशीर्वाद को। शायद हरिशंकर भी इतना महत्त्वाकांक्षी नहीं था। शायद यूनियन के बहाने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को बढ़ाना चाहा नहीं था कभी भी उसने। फिर उसका यूनियन को प्रतिष्ठित कराने के पीछे क्या उद्देश्य था ? वह क्या निस्वार्थ रहित था थोड़ी-सी चाह उसके मन में नहीं थी यूनियन के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए। यूनियन के द्वारा श्रमिकों को शोषण-मुक्त करने के बारे में कभी भी उसने चाहा था ? चाहने पर भी कर पाया था क्या ?
                अगणी ने कहा, “अब हमें स्थिति बचाए रखने के लिए नई रणनीति का सहारा लेना पड़ेगा, नेताजी।उसके बाद, मैनेजमेंट और नहीं पूछेगा। ध्रुव खटुआ हमारे नाम का दुष्प्रचार करेगा। मजदूर लोग भी हमें विश्वास की आंखों से नहीं देखेंगे। इन सारी बातों का मुकाबला करने के लिए हमें जबरदस्त संघर्ष करना पड़ेगा। इन सारी बातों की समालोचना करने के लिए हमें एक्जिक्यूटिव बॉर्ड की मीटिंग बुलानी पड़ेगी, नेताजी?”
                उठकर बैठ गया हरिशंकर। समाचार-पत्र खोलकर रखा। कहने लगा, “तुम जो करना चाहोकरो, अगणी। मुझे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।
                अगणी साइकिल से उतर गया। उसके बाद पाकेट से एक रूमाल निकालकर पसीना पोंछने लगा। हरिशंकर के पास खाट पर बैठकर कहने लगा, “देखो नेताजी, हमारा यूनियन अभी भी शिशु अवस्था में है। उसकी मौलिक आवश्यकताएं भी अभी तक पूरी नहीं हुई है। हमारे यूनियन में  विधिवत तरीके से सदस्यता-संग्रह भी नहीं हुआ है। यूनियन का फंड  जैसा भी कुछ नहीं है। फिर यूनियन के निर्माण के समय जो सारी समस्याएं आती है, उन सभी का समाधान होने के बाद ही यूनियन की स्थिति मजबूत होती है। अभी हमारे पास ध्रुव खटुआ की स्ट्राइक तोड़ना बड़ी समस्या नहीं हैबड़ी समस्या है,  देशमुख ने ध्रुव खटुआ के साथ मीटिंग क्यों की?  हमारे सामने भविष्य में जो दिक्कत आएगी वह है ध्रुव खटुआ के साथ देशमुख का राजीनामा।  मुझे जो खबर मिली है, राजीनामा इस शर्त पर हुआ है कि कंपनी हमारे यूनियन के साथ और कोई संबंध नहीं रखेगी, किसी भी पॉलिसी डिसीजन में ध्रुव खटुआ को छोड़कर और किसी भी यूनियन के साथ बातचीत तक नहीं करेंगी एवं हमें यूनियन की सदस्यता शुल्क-संग्रह करने के लिए कोई भी सुविधा नहीं देगी। अगर वह शर्तें लागू होती है, तो हमारे यूनियन के लिए गला दबाकर हत्या करने जैसा होगा। मैं सोच रहा हूँ, आज ही हमें एक्जिक्यूटिव बॉडी मीटिंग बुलाना ठीक रहेगा। इससे पहले देशमुख साहब के साथ थोड़ी बातचीत कर लेना ठीक रहता।”
                “क्या-क्या बात करने की सोच रहे हो तुम ?” हरिशंकर ने पूछा आगामी कार्यक्रमों के बारे में।
                “मेरे मन में एक आइडिया आया है। हम लोग अगर अनशन पर बैठे तो कैसा रहता ?”
                “अनशन ? आजकल अनशन तो एक फार्श है।
                हेमबाबू के यूनियन के समय में बहुत बार इस तरह के अनशन वाले नाटक कर चुका था हरिशंकर, बहुत बार हेमबाबू के इशारों पर। कुछ भी नहीं होता है। रात के अंधेरे में ठंडे बासी बरा सिंघाडा खाकर रात के अंधेरे में निवृत्त होकर आकर फिर से अनशन में बैठने जैसा धप्पेबाजी का आयोजन भी हरिशंकर खुद कर चुका है। अनशन करने से पहले ही उसको समाप्त करने का प्लान बनाया जाता था। कौन कब फल-रस पिएगा, कौन घोषणाएं करेगा, प्रोसेशन में कौन-कौन रहेंगे और कौन-कौन से नारे लगाए जाएंगे अथवा मीटिंग कहां और कैसे होगी-इन सबकी तैयारियां भी कर ली जाती है। कभी गांधीजी ने अनशन को एक अस्त्र के रूप में व्यवहार किया था, मगर अब अनशन केवल लोगों को प्रभावित करने तथा अपने आप को विज्ञापित करने का कौशल है। एक-एक फार्श।
                “फार्श ? आप अनशन को फार्श कहते हो ?” - अगणी ने पूछा। विरक्त होकर हरिशंकर कहने लगा, “तुम तो जानकार आदमी हो, अगणी। इतने दिनों से यूनियन चला रहे हो। इसके अलावा, मैं तो तुमको प्रेक्टिकल आदमी समझता था। आजकल अनशन में क्या होता है ? क्या तुम नहीं जानते हो कि अनशन एक धप्पेबाजी के सिवाय कुछ नहीं है।
                अगणी देखने लगा हरिशंकर की ओर। मैं प्रेक्टिकल आदमी हूं, नेताजी। प्रेक्टिकल बातें ठीक समझ में आती है। देखिए, हमारे हाथों में अनशन के सिवाए कोई चारा नहीं है। मैं मानता हूँ, अनशन का और कोई खास महत्त्व नहीं रहा। मगर यह बात भी एकदम सही है, कि अगर हमारा नैतिक मनोबल दृढ़ हो, तो अनशन द्वारा बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। अगर हम सीरियसली अनशन करेंगे, तो क्या आप सोचते हैं हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगे ? पंजाब या आंध्रप्रदेश के गठन के बारे में सोचो। कैसे संभव हो गया वह सब ? आप इतिहास पर दृष्टि डालकर देखिए। कहा जाता है, इतिहास अपने को दोहराता है बारम्बार। फिर, जिस अनशन को आप फार्श या धुप्पलबाजी समझते हो, उस पर भरोसा रखकर क्यों नहीं हम अपने यूनियन को बचा सकते हैं ?
                इतनी बातें अगणी कहां से जानता है ? हरिशंकर आश्चर्य चकित हो गया। अगणी को अब तक वह कूजी नेता सोचता आ रहा था। उसमें इतना सूक्ष्म-विचार दर्शन और इतनी गहरी प्राज्ञ- चेतना भी है? हरिशंकर सुनकर अभिभूत हो गया।
                अगणी कहने लगा, “इससे पहले चलिए देशमुख साहब से बातचीत कर लेंगे। अगर वह हमारे पक्ष में होंगे, तो शायद इस रास्ते की ओर जाना नहीं पड़ेगा।
                हरिशंकर की उठने की इच्छा नहीं हो रही थी। सारा शरीर दर्द कर रहा था। मगर अगणी जाने के मूड़ में उठकर खड़ा हो गया, “चलें नेताजी।
                हरिशंकर को उठना पड़ा। उठकर जम्हाई लेने लगा। आलस तोड़कर चप्पल पहनकर जाते समय कहने लगा, “कहाँ जाएंगे ? देशमुख साहब से बातचीत करने पर कुछ लाभ होगा ?”
                अगणी ने इस बात का उत्तर नहीं दिया। साइकिल ठेलते-ठेलते आगे चलने लगा। पीछे-पीछे हरिशंकर।
                देशमुख के ऑफिस के सामने साइकिल रख कर अगणी पूछने लगा, “साहब हैं ?”
                दरबान बैठे-बैठे रजिस्टर में कुछ लिख रहा था। कहने लगा, “यहाँ नाम लिख दीजिए, रजिस्टर में।
                रजिस्टर में नाम लिखकर भीतर जाने का नियम पहले कभी नहीं था पारबाहार कोलियरी में। यह लगता है, देशमुख साहब का नया प्रयोग है। रजिस्टर में नाम लिख दिया अगणी ने। भीतर जाने का उद्देश्य कलम दिखाते हुए दरबान पूछने लगा, “साहब अभी जरूरी मीटिंग में बैठे हुए हैं। मिलने में टाइम लगेगा।
                “भीतर कौन-कौन हैं ?”
                दरबान कहने की मुद्रा में नहीं था, फिर भी कहने लगा,
                “यूनियन वाले।
                “ध्रुव खटुआ ?”
                “हाँ सिर हिलाते हुए कहा दरबान ने।
                ध्रुव खटुआ ? थप्पड़ की तरह लगा हरिशंकर को। बात कुछ भी नहीं थी। देशमुख साहब ध्रुव खटुआ के साथ मीटिंग क्यों नहीं करेंगे, उसका कोई यथार्थ कारण नहीं था। फिर भी, ध्रुव खटुआ भीतर देशमुख के साथ मीटिंग करेगा, जरूरी मीटिंग और हरिशंकर बाहर खड़े होकर रहेगा- यह घटना उसे अपमानजनक लगने लगी।
                अगणी कहने लगा, “साहब को फोन करके पूछ क्यों नहीं लेते कि हम लोग आए हुए हैं।
                “कुछ फायदा नहीं है, महाशय। साहब ने खुद मना किया है किसी को भी नहीं छोड़ने के लिए।
                “आप फोन करके तो देखो। देशमुख साहब क्या कहते हैं, पता चल जाएगा।
                दरबान अगणी के चेहरे की ओर देखने लगा। फोन करते हुए कहने लगा , “सर, हरिशंकर बाबू और अगणी होता आपको मिलना चाहते हैंकहने के बाद कुछ समय फोन कान के पास रखने के बाद क्रेडल के ऊपर रखते हुए विरक्त भाव से कहने लगा वह देखा तो, साहब बिगड़ गए बिना मतलब। आप लोगों ने मुझे बिना मतलब गाली सुनवा दी।
                दरबान के सामने अपने आप को अपमानित अनुभव करने लगा हरिशंकर। अगणी हँसने लगा, अपमान भरी हंसी। दोनों जाकर सोफे के ऊपर बैठ गए। हरिशंकर की कनपटी गरम हो गई थी, इतनी छोटी-छोटी बातों से इस तरह अपमानित होना उचित है क्या उसका ? उसे प्रेक्टिकल होना नितांत आवश्यक है।
                हरिशंकर को को अचानक याद आ गया, उसका समय खत्म हो गया है, वह बूढ़ा हो गया है। ऐसे समय में अपने आपको बदलना तो बिलकुल असंभव है। या नया कुछ कहना भी असंभव है। नए यूनियन का निर्माण करने के लिए जिस इच्छाशक्ति की आवश्यकता होनी चाहिए सब वह खो चुकी है उसकी। क्यों हरिशंकर ने यह उद्यम शुरू किया, इस बुढ़ापे में ? क्यों ? उसे तो शुरू करना चाहिए था उस समय, जब वह पहली बार कोयले की खदान में भर्ती हुआ था।
                बहुत ज्यादा गरम होता है, ऐस्बेस्टास की छत वाला यह घर। हरिशंकर ने पॉकेट में हाथ डाला, मगर रूमाल नहीं मिला। धोती के किनारे से अपना पसीना पोंछ लिया। रास्ते के सामने एक जीप खड़ी हुई थी। दो तीन साइकिलें। पारबाहार कोलियरी धीरे-धीरे बदलती जा रही थी। अब ऑफिसों में कम्प्यूटर लगाने का प्रस्ताव पास हुआ है। कोलियरी के चेहरे से मिटने लगे हैं मैले दाग। सब-कुछ बदलता जा रहा है।
                हरिशंकर पहली बार जब कोयला खदान में नौकरी करने आया था, उस समय शोषण का जो रूप था, आजकल तो उसका किंचित मात्र भी नहीं है। आजकल तो लोडर लोगों को भी तीन हजार रुपए मिलते हैं। उससे किसी क्लर्क या केटेगरी-वन या मिसलेनियस मजदूर बेसिक सेलेरी आर्थिक स्तर पर बहुत कम व शोषित है। अगणी कहने लगा, “आज जैसे भी हो, देशमुख को मिलकर जाएंगे, नेताजी। मैंने आपसे नहीं कहा था, यह हमारे लिए समस्या हो जाएगी ? देशमुख ने अभी से हमारी अवमानना करना शुरू कर दिया है। नेताजी, इस समय में हमें और कठोर होना पड़ेगा। अगर हम लोग नरम पड़ जाएंगे तो ये लोग हमें कहीं न कहीं फेंक देंगे। हमारी स्थिति की रक्षा करने के लिए हमें दृढ़ होकर खड़ा रहना पड़ेगा।
                कैसे किया जाए संघर्ष ? कैसे शुरू की जाए भाषण की भाषा में लड़ाई, युद्ध, द्वंद्व ! अगणी कहता है, यह लड़ाई का समय है। मगर हरिशंकर निरुत्साहित था। टेंशन सामान्य-सा था जरूर। ऐसे कोई लड़ाई होती है। हरिशंकर ने शायद खो दिया है अपना सारा अनुभूतिबोध। निर्लिप्त निर्विकार भाव से वह अगणी के पीछे-पीछे चल रहा है।
                अचानक ऑफिस की तरफ से किवाड़ ठेलते हुए ध्रुव खटुआ और उसके साथी चले आ रहे थे। अगणी और हरिशंकर को देख थमकर खड़ा हो गया ध्रुव। आंखों में थी उसके व्यंग की हंसी। पास के किसी आदमी को धकेलते हुए कहने लगा, “बड़ा नेता बनता है साला। स्ट्राइक करेगा, नहीं ?”
                उस आदमी ने हरिशंकर की ओर देखकर ध्रुव खटुआ के मजाक का जवाब देते हुए कहने लगा, “मैं साला एक नंबर चमचा हूं मैनेजमेंट का। भीतर-भीतर मैनेजमेंट को तेल लगाता हूँ और बाहर श्रमिकों के प्रति हमदर्दी का प्रचार करता हूँ।
                “श्रमिक हमदर्दी। साला, एक भी श्रमिक का समर्थन नहीं है। इधर कहता है क्या श्रमिक हमदर्दी।औैर दूसरे आदमी ने कहा।
                हाथ की मुट्ठियां भींचकर रह गया था हरिशंकर। नहीं, उसे गुस्सा दबाकर रखना होगा। थोड़ी-थोड़ी बातों में उत्तेजित होने से अनर्थ हो सकता है, मगर अगणी तुरंत आग बबूला हो गया। मुड़कर देखने लगा, तन कर खड़े ध्रुव खटुआ की ओर, फिर तेज आवाज में चिल्लाने लगा, “ध्रुव खटुआ, अगर तुम्हारी वास्तव में औकात है, तो आमने-सामने बात कर। गांव की औरतों की तरह दूसरों का सहारा लेकर क्या बात करता है।
                ध्रुव खटुआ इस अप्रत्याशित आक्रमण के लिए तैयार नहीं था। उसके दल का एक आदमी आगे बढ़कर चिल्लाने लगा, “हरामजादे, पहले अपनी शक्ति दिखाना, फिर टक्कर देने की बात करना।
                अगणी ने दौड़कर उस आदमी को कॉलर से पकड़कर खींचते हुए लाया, “क्या सोचता है ? साले, तू समझता है अपने आपको ? मादरचोद। सोचते है कि गुंडागर्दी करेंगे, अकेले में पाकर ओमप्रकाश और प्रद्युम्न को पीट क्या दिया सभी के साथ वैसा करेगा ? याद रख, किसमें कितनी ताकत है ?
                वह आदमी अचानक हुए आक्रमण से हतप्रभ रह गया। अगणी ने उस आदमी को कॉलर पकड़कर दीवार से सटाकर कनपटी पर दे मारा। वह आदमी सिर पकड़कर नीचे बैठते समय पीठ पर दो-चार लातें और जड़ दी।
                अचानक इन घटनाओं के लिए तैयार नहीं था हरिशंकर। हरिशंकर को क्या करना चाहिए अब ? क्या वह अगणी को जाकर छुडाएगा ? ध्रुव खटुआ के दल का कोई आदमी अगर आक्रमण करेगा तो वह उसके लिए तैयार रहेगा ? या वह अगणी की तरफ से मोर्चा संभालेगा ? वह कुछ नहीं कर पाया, वह कुछ सोच नहीं पाया। जैसे कि वह इस दुनिया में नहीं हो वरन उसके सामने घटने वाले सारे दृश्य केवल टी.वी. या फिल्मों के दृश्य हो और उसका उनसे कोई  संबंध नहीं हो या वह इन सारी बातों को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है।
                शोरगुल की आवाज सुनकर सारे लोग बाहर दौड़कर आ गए। सिक्यूरिटी गार्ड ने खींचकर अगणी को दूर हटाया था। मार खाने वाला आदमी सिर नीचे कर चुपचाप जमीन पर बैठ गया था। ध्रुव खटुआ दल से दो तीन आदमियों ने अगणी के ऊपर चढ़ाव करने के लिए दौड़कर आए या स्वांग भरने का प्रयास किया- जिनको और तीन-चार सिक्युरिटी लोगों ने मिलकर संभाल लिया था। गेट के पास रेजिस्टर देखने वाले गार्ड ने लोगों को वहां जमा होते देखकर कहा, “अगर मारपीट करना चाहते हो तो बाहर जाकर करो, ऑफिस के भीतर क्यों कर रहे हो ? रामधन चलो तो, पुलिस को जाकर खबर कर देते हैं।” कहते हुए कभी चिल्ला रहा था रामधन तो कभी ध्रुव या अगणी के पास आकर मारपीट बंद करने का निवेदन कर रहा था। एक बार तो हरिशंकर के पास आकर कहा, “देख रहे हो, नेताजी ! आज जरूर साहब मुझे गाली देंगे। आप इंतजार क्यों कर रहे थे ?”
                ध्रुव खटुआ के आदमियों को पकड़कर किसी को जबरदस्ती, तो किसी को बहला-फुसला कर सिक्यूरिटी वाले बाहर ले गए। वे लोग भी समझ गए थे, ऐसे झगड़ों से कोई घटना नहीं घटेगी। इसलिए वे लोग चिल्ला-चिल्लाकर अगणी और हरिशंकर को गाली देते हुए चले गए।
                वेटिंग-रुम में रुके अगणी का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था। उसके चारों तरफ जमे हुए दर्शकों के सामने अपना नायकोचित व्यवहार दिखाना वह नहीं भूला था। दरबान को देशमुख साहब को, मैनेजमेंट को गाली देते हुए और परमीशन का इंतजार नहीं किया उसने। इस बार हरिशंकर को हाथ पकड़कर खींचते हुए ले गया और  वेटिंगरूम का गेट खोलकर ऑफिस के अंदर घुस गया। कोरीडोर में लोगों की हलचल। सभी लोग कौतूहल पूर्वक देख रहे थे- क्या होगा देखने के लिए। हरिशंकर को हाथ पकड़कर ले गया अगणी देशमुख साहब के चैंबर में। चैंबर के सामने खड़ा दरबान उन्हें रोकने का साहस नहीं कर पाया या फिर रोकने से पहले ही वे लोग दरवाजा ठेलकर भीतर घुस गए थे। तब तक हरिशंकर का हाथ जोर से पकड़ रखा था अगणी ने। दरवाजा खोलते ही उसके सामने दिखाई पड़े देशमुख साहब, सेक्रेटरी टेबल के उस तरफ। हठात् उन्हें देखकर वे दोनों रुक गए थे। हाथ से ढीला पड़ गया दरवाजे का हैंडिल। वाज के साथ दरवाजा बंद हो गया। देशमुख साहब हंसने लगे शांत-भाव से। मानो कुछ भी नहीं हुआ हो। जैसे बाहर में हुई मारपीट से वह बिलकुल अनजान हो। हँसकर कहने लगे, “गुड मार्निंग। आइए, आइए। बैठिए।
                देशमुख साहब के चेंबर में धीमी-गति से कूलर चल रहा था। एक कीमती कूलर। रूम फ्रेशनर से महक रहा था सारा रुम। पांवों के नीचे बिछा हुआ था गलीचा। दीवारों पर महंगा डिसटेंपर किया हुआ था। टेबल के पास फाइलें और किताबं की रैक। दीवार पर तरह-तरह के ग्राफ। हरिशंकर और अगणी चेयर में बैठ गए। देशमुख साहब हंसने लगे, कृतार्थ होने जैसी हंसी। नहीं कहने पर भी उनका, पिओन दो कप चाय रखकर चला गया था।
                हरिशंकर भूल गया था अकस्मात, क्या करने आया था वह ? उसे तो कोई विशेष बात नहीं करनी थी देशमुख से ? क्या वह बात हरिशंकर को इतनी ठंडी हवा की सुगंध में नींद आने लगी थी। बहुत कष्ट से नींद रोकने के बाद देशमुख साहब के कुछ कहने से पहले चाय कप को उठाकर होठों से लगा लिया।
                अगणी ने पहले बात शुरू की, “आप हमें, एवाइड करना चाहते हैं, सर ?”
                “एवाइड ?” आश्चर्य होने का अभिनय कर रहा था क्या देशमुख ? कहने लगे, “आप तो मेरे अपने आदमी हैं। आपको क्यों एवाइड करेगा कोई ?”
                थोड़े समय पहले ही आपने फोन पर दरबान को गाली दी।
                “गाली दी ? दरबान झूठ कह रहा है। दरबान को बुलाकर पूछें।
                “देखिए सर। दरबान को बुलाने या उसको धमकाने की जरूरत नहीं है। आपने जब उसे फोन पर गाली दी, उसी समय हम समझ गए थे।
                इतना आत्म-विश्वास अगणी में आया कहाँ से ? वह तो एक सामान्य मजदूर था। -4 / -5 रेंक के सामने कुर्सी पर बैठकर इस तरह तर्क-वितर्क करने का साहस उसमें आया कहां से ? हरिशंकर कभी भी  इतना साहस नहीं जुटा सका था। इतना साहस नहीं कर पाया इसलिए तो आउटडेटेड। मगर उसके लिए क्या उचित नहीं था, सीना चौड़ाकर सिर उठाकर गर्व से बैठने के लिए ? वह कैसे झुककर बैठा है, देखो तो। चेहरा नीचे मेरुदंड झुका हुआ। सीधे बैठने की कोशिश करने लगा हरिशंकर अगणी की तरह। टेबल पर कोहनी टिकाकर देशमुख की ओर देखने लगा।
                देशमुख सीधा अगणी की ओर देखकर गंभीरता से कहने लगा, “उस समय हमारी यूनियन के साथ मीटिंग चल रही थी।
                “यूनियन ? कैसा यूनियन ? ध्रुव खटुआ का ?”
                “वही तो सही मायने में हमारा अधिकृत यूनियन है।
                आपका अधिकृत यूनियन के कागज-पत्रों में कहीं लिखा हुआ है ? जिस यूनियन में गत तीन वर्षों से इलेक्शन नहीं हो रहे हो, जिसके पीछे जन समर्थन नहीं, वहीं आपका अधिकृत यूनियन ?  अगणी ने सीधे बैठकर गला खखारते हुए कहा।
                “देखिएदेशमुख साहब कहने लगे, “यूनियन का निर्वाचन हुआ या नहीं, या कितना चंदा इकट्ठा हुआ या नहीं- ये सारी बातें हमें देखने की जरूरत नहीं है। और रही जन समर्थन की बात तो गत स्ट्राइक के समय ही पता चल गया था कि किसके पास कितना जन-समर्थन है ? मैंने आपको तीन दिन का समय दिया था। क्या आप लोग तोड़ पाए उस स्ट्राइक को ?”
                अगणी थोड़ा बैचेन हो गया। फिर अपने को संभालते हुए कहने लगा, “इससे क्या प्रमाणित हो  गया, किसके पास कितना जन-समर्थन है ? गुंडागर्दी, दादागिरी से लोगों को डरा-धमकाकर उन्होंने लोगों को रोक दिया था। आप क्या चाहते हैं, हम लोग भी गुंडागर्दी करेंगे ? आप क्या चाहते हैं, हम लोग भी एक स्ट्राइक करें अपना जन-समर्थन दिखाने के लिए ?”
                देशमुख विरक्त होकर कहने लगा, “आप लोग समझ क्यों नहीं रहे हो ? जब तक आप लोग शक्तिशाली नहीं बनोगे, हम लोग आपको मान्यता नहीं दे पाएंगे।
                “मगर आपने जो राजीनामा किया है ध्रुव खटुआ के साथ, यह कर आपने हमें जड़ से खत्म करने का प्लान किया है। आपने ना तो हमें चंदा-संग्रह की अनुमति दी है, और नहीं यूनियन के साथ बातचीत करने की। कहिए, ऐसे हम कैसे बच पाएंगे।
                इस बार हंसने लगे देशमुख साहब- देट इज द पाइंट। आप लोग यूनियन बनाने के लिए आए हैं ? हमारे सहयोग से ही जिंदा रहेगा यूनियन ? आप सोचते क्या हैं, आपके यूनियन को जिंदा रखने के लिए हम अपनी गर्दन काटकर दे देंगे ? अगर आप हमारी गर्दन काटना चाहते हैं- तब भी आपको अपनी सहायता से ही हमारी गर्दन तक उठना होगा- बाई द वे, तुम्हारा नाम क्या है ? किस पिट में काम करते हो ? किस इन्कलाइन में ?”
                अगणी थोड़ा मर्माहत-सा हो गया। जानबूझकर देशमुख साहब पर वार करते हुए कहने लगा, “देखिए, हमें अपना काम अच्छी तरह मालूम है। हम जानते हैं, कहां और कैसे खड़ा होना है ? जिस दिन हम खड़े हो जाएंगे, उसी दिन आपका यह भ्रष्ट आसन गिर जाएगा। क्या सोचते हैं आप, अपने आप को ? इन्द्र-चन्द्र क्या और कुछ ? हम यूनियन वाले हैं। इसी जगह है, इसी जगह पर रहेंगे। आपके जैसे हजारों-हजारों साहब आते हैं और चुटकी बजाने मात्र से भाग जाते हैं।
                देशमुख का चेहरा तन गया। हरिशंकर की ओर देखते हुए कहने लगा, “देखिए, पटनायक बाबू, आपके साथ मेरी दोस्ती हो सकती है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपके साथ कोई भी थर्ड क्लास आदमी भीतर आकर कुर्सी पर बैठकर बदतमीज़ी दिखाएगा।”
                अगणी चिल्लाते हुए उठ गया- मैं थर्ड क्लास आदमी नहीं हूं, मि. देशमुख. मैं अपने यूनियन का प्रेसीडेंट हूँ। मेरा यथेष्ट अधिकार बनता है आपके सामने बैठकर बात करने का।
                “अपने आपको यूनियन का प्रेसीडेंट बता रहे हो, इसी से पता चल जा रहा है तुम्हारे यूनियन की औकात। कौन-सा यूनियन है, बताओ ?”
                खड़ा हो गया था अगणी। गुस्से से कांप रहा था। कहने लगा, “आप देखना चाहते हैं, कौनसा यूनियन ? देखोगे तो ? ठीक है। इस कोयला खदान में आप रहोगे या नहीं रहोगे, मगर हमारा यूनियन रहेगा। बहुत ही जल्दी।बहुत जल्दी ही निर्णय हो जाएगा।
                अगणी क्रोध से चिल्लाते हुए बाहर निकल गया। मगर हरिशंकर चुपचाप बैठा रहा। गंभीरता पूर्वक देशमुख के सामने। बेचैन मुद्रा में। उसका उठ जाना क्या उचित होगा ? उठकर वहां से चले जाना उचित रहेगा ? नहीं, देशमुख साहब के सामने उसकी तरफ से क्षमा मांग लेना उचित होगा। अगणी के व्यवहार के लिए ? या अगणी की ओर से युक्ति करना ठीक रहेगा ?
                हरिशंकर चुपचाप बैठा रहा। ऑफिस एकदम नीरव। एअर-कूलर, पता नहीं क्यों, बंद हो गया। उसकी आवाज और सुनाई नहीं दे रही थी। घड़ी की आवाज भले ही सुनाई पड़ रही हो टिक्-टिक् टिक्।
                देशमुख गंभीर। चुपचाप। हरिशंकर मुंह नीचे झुकाकर बैठा हुआ था। क्या करेगा वह ? उठ जाएगा बिना कुछ बोले ? क्या कहकर जाएगा फिर ? अगणी कहां गया होगा। बाहर में क्या इंतजार कर रहा होगा हरिशंकर का ? हरिशंकर ऐसे ही बैठे रह गया, अगणी के साथ उठकर नहीं गया तो वह क्या खराब सोच रहा होगा ? सोच रहा होगा कि वह देशमुख का चमचा है ? आया नहीं क्यों वहां से हरिशंकर ? क्या वह देशमुख के सामने विद्रोह नहीं करना चाहता ? देशमुख होता कौन है ? कल तक तो देशमुख को कोई पूछता नहीं था।
                फिर उठकर क्यों नहीं गया ?
                देशमुख साहब रूमाल निकालकर अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहने लगा- जाइए, पटनायक बाबू, बहुत काम बाकी है। प्लीज मुझे डिस्टर्ब नहीं करेंगे।
                देशमुख की बात सुनकर अपमानित अनुभव करने लगा हरिशंकर। वह बैठकर क्यों रहा ? आगे से तो उठकर चला जाता। वह उठकर बाहर आ गया। दरवाजा पार करने के बाद उसे याद आया कि वह नमस्कार करना भूल गया, हड़बड़ाने की वजह से। देशमुख साहब खराब सोचेंगे क्या।
                शाम के समय हरिशंकर के घर के सामने पहुंच गए तीस के आस-पास लोग। सभी उसके यूनियन के कार्यकर्ता। अगणी सभी को इकट्ठा करके लाया था. हरिशंकर इतने लोगों को बिठाए कहां पर ? छोटे लड़के ने घर-घर घूमकर तीन दरियां मांग कर लाई, तीस लोगों के बैठने के लिए।
                एक रस्सी की खाट पर बैठ गए हरिशंकर और अगणी। हरिशंकर समझ गया था, आज ध्रुव खटुआ और देशमुख साहब के साथ अगणी के झगड़े की खबरें कोलियरी के कोने-कोने में फैल गई थी। यहां किसी भी प्रकार का अखबार नहीं निकलता है। फिर भी बहुत ही कम समय में यहां खबर फैल जाती थी। इस कोलियरी की कॉलोनी के प्रत्येक घर की प्रत्येक दीवार को दीमक खा गया है। सभी के घर के अंदर का दृश्य सभी देख सकते थे। सारे ओपन सीक्रेट, पाप-पुण्य, लज्जा और महानुभवता को।
                हरिशंकर को पता है यूनियन के मारपीट की खबर यहां की जनता बड़े ही कौतूहल-भाव से चर्चा करेगी। मगर कोई भी सामने नहीं निकलेगा। हरिशंकर के पास दौड़कर आए थे तीस लोग ही उसका संबल है, उसका हथियार, उसकी जनता है।
                अगणी सभी को संबोधित करते हुए कहने लगा, “दोस्तों, अब और फॉर्मल मीटिंग नहीं होगी। हमारे हाथों में समय बहुत कम है। कल सुबह से हम लोग अनशन करेंगे। उसके लिए अभी से चामुंडिया (कनाथ), माइक, गद्दे, बिस्तर लाने पड़ेंगे। रातों-रात मंच बनाना पड़ेगा। इससे पहले आप अपनी-अपनी राय बताएं। आप लोग इस अनशन के लिए राजी हो या नहीं ?”
                तीस आदमी हां-हां करते हुए उठ गए, “हम राजी हैं, हम राजी हैं।
                ओमप्रकाश के घुटने पर प्लास्टर लगा हुआ था। वह लाठी पकड़कर धीरे-धीरे आया और एक कोने में खड़ा हो गया। आगे बढ़कर कहने लगा, “भाइयों, हमारे प्रेसीडेंट होता बाबू जो भी प्रस्ताव देंगे, मैं उसका समर्थन करता हूँ। देशमुख साहब ने आज जिस तरह से हमारे यूनियन के प्रति व्यवहार किया, लोग अपने कुत्ते या बंदर के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे। भाइयों...अगणी ने उसकी बात को वही रोकते हुए कहा, “ओम प्रकाश अब भाषण देने का समय नहीं है। यहाँ आओ, काम बांट लेते हैं।
                ओमप्रकाश का भाषण अधूरा रह गया। हरिशंकर चुपचाप बैठा रहा। उसकी राय जानना किसी ने नहीं चाहा। व्यक्तिगत राय भी किसी ने नहीं पूछी उससे एक बार भी, मीटिंग में अनशन करना ठीक रहेगा या नहीं ? हरिशंकर चुपचाप बैठकर सुनता रहा, उनके अनशन की तैयारी के बारे में। दरी कहां से लाई जाएगी, बैनर कौन लिख देगा रातों-रात, बैनर के लिए कपड़ा किस दुकान से मिलेंगा, क्या-क्या लिखा जाएगा बैनर में ? गद्दियां कितनी लाई जाएंगी ?किस टेन्ट हाऊस से चामुंडिया, कनाथ लाया जाएगा ? पोस्टरों में क्या-क्या लिखा जाएगा और कौन-कौन लिखेंगे ? कहां से पुराने अखबार लाए जाएंगे, स्याही कौन देगा और किस घर में  मैदे का आटा चिपकाने के लिए तैयार किया जाएगा, कहां से माइक लाया जाएगा, टू-इन-वन रेडियो कहां से लाया जाएगा (नेताजी खबर सुनेंगे, कोई-कोई विविध भारती भी सुन पाएगा)। किसी ने कहा, “पोर्टेबल टी.वी. लाने से कैसा रहता ?” दूसरे आदमी ने उसे डांट दिया- अपनी औरत को साथ लेते आना।
                हरिशंकर ने एक शब्द भी नहीं बोला। लोगों के भीतर उत्साह घुमड़ रहा था, जैसे कल सुबह किसी पिकनिक का आयोजन होने जा रहा है और वे लोग उसकी तैयारी कर रहे हैं। अंत में, अगणी ने तालिका बनाने के बाद कहा, “चलिए, अब निर्णय लेते हैं, अनशन में कौन-कौन बैठेगा ?” ओमप्रकाश पहले आगे आकर कहने लगा, “मैं अनशन पर बैठूंगा।
                अगणी ने उसे धक्का देते हुए कहा, “चुप, आमरण अनशन का मतलब मालूम है ? तुम बीमार आदमी हो। तुम्हें कौन संभालेगा यहां। उसके अलावा, जो भी लोग अनशन में बैठेंगे, वे सब जरुरी लोग होंगे, उनकी सहायता करने वाले लोग भी कम दरकारी या महत्त्वपूर्ण नहीं है। पांच आदमी बैठेंगे अनशन पर। और पांच आदमी आठ घंटों के लिए उनके साथ में रिले के हिसाब से अनशन पर बैठेंगें। और पांच आदमी रहेंगे आठ घंटा, लाठी, चाकू पकड़कर, खासकर रात के समय। हो सकता है, ध्रुव खटुआ के गुंडे रात को आक्रमण कर दें, तो उससे बचाव के लिए।
                भीड़ के अंदर से किसी ने कहा, “आप ही होता बाबू नाम बता दीजिए। जिसको जो दायित्व दिया जाएगा वे उसका पालन करेंगे। क्या कहते हो ?”
                सभी लोगों ने एक साथ उत्तर दिया- बिलकुल ठीक. बिलकुल ठीक।
                अगणी खड़ा होकर कहने लगा, नेताजी मैं अपने भतीजे प्रद्युम्न, जो यहां समारु खडिया के नाम पर नौकरी करता है, प्रॉडक्शन के मित्रभानु और वर्करों की ओर से चंद्रशेखर का नाम प्रस्तावित करता हूं आमरण अनशन पर बैठने के लिए। क्या कहते हो, सभी लोग ? सभी लोगों ने फिर एक साथ उत्तर दिया, “हाँ, ठीक है, ठीक है।
                अगणी पूछने लगा, “क्या कहते हो, नेताजी ? आपकी राय क्या है ?”
                क्या कहेगा हरिशंकर ? आकाश की ओर देखने लगा, आकाश में दो तारे दिखने लगे। कुछ ही समय बाद रात हो जाएगी। यह रात बीतते ही फिर शुरू होगा निर्धारित आमरण अनशन।
 







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