पंचम परिच्छेद
पंचम परिच्छेद
बहुत
दिनों के बाद जी.एम. ऑफिस आया था हरिशंकर। एटेण्डेन्स रजिस्टर में एक साथ चौदह दिन
के साइन कर दिए उसने। यह हरिशंकर यूनियन सक्रेटरी था, महीने-महीने
भर ऑफिस की ओर नहीं आता था। बिल-क्लर्क
बिना एटेण्डेन्स के बिल बना दिया करता था, इसलिए
महीने में एक बार आना पड़ता है उसको।
हरिशंकर
उस समय सेक्रेटरी था, कोई
उसकी शिकायत नहीं करता था। अब एक असंतोष-सा बना रहता है ऑफिस के अंदर उसके एबसेंट
रहने के संदर्भ में, इस
चीज का हरिशंकर को अनुमान हो गया था। ऐसे जी.एम.ऑफिस में थोड़ा-बहुत सभी फांकी
मारते हैं। देर से आना, जल्दी चले जाना या ड्यूटी टाइम के बीच खिसक जाने की
बात तो साधारण थी। मगर हरिशंकर सबसे ज्यादा फांकी मारा करता था। महीने-महीने भर तक
ऑफिस नहीं आता था। उसका इमीडिएट बॉस फाइनेन्स मैनेजर कुछ भी नहीं कहता था। एबोव ऑल
जी.एम.ऑफिस में इन सारी डिप्लोमेटिक सिचुएशन को डील करना पड़ता था और उन्हें पता
था कि यूनियन के सेक्रेटरी को हाथ में रखना कितना जरुरी होता है।
सेक्रेटरीशिप
चली जाने के बाद हरिशंकर महत्त्वहीन हो गया था, वह
अनुभव कर पा रहा था। पहले, केवल कोलियरी के
मजदूर ही नहीं, बल्कि
जी.एम.ऑफिस के स्टॉफ लोग भी उसके सामने फरियाद करते थे। किसी का लोन सेंक्शन नहीं
हो रहा था, किसी
का प्रमोशन ड्यू हो गया था, किसी को दो इन्क्रीमेंट अभी तक नहीं मिले थे, तो
किसी को अभी तक क्वार्टर नहीं मिला था। हरिशंकर जानता था कि वह किसी की भी इस
संदर्भ में मदद नहीं कर सकता ता। जबकि सभी लोगों की धारणा थी, कि
हरिशंकर जो चाहेगा, वह हो
जाएगा। अब, सेक्रेटरीशिप
जाने के बाद कोई भी उसके पास अपनी समस्याओं के बारे में फरियाद नहीं करता था।
हरिशंकर को इस चीज का अनुभव हो गया था कि वह अचानक से सभी के सामने एक साधारण
मनुष्य बन गया है। सभी की उसके प्रति निरूत्ताप अनाग्रह क्रमशः हरिशंकर को एक
निर्जनता के भीतर धकेल रहा था। उसके हाथ में और कोई काम नहीं बचा था। किसी का
डिसमिस ऑर्डर केंसिल करवाना नहीं, किसी के भाई अथवा बेटे को नौकरी जुगाड़ करवाना नहीं
या एक लोडर दिन में दो गाड़ी लोड़ करेगा या चार गाड़ी-इन सारे विषयों पर डिप्टी
सी.एम.ई॰ या जनरल मैनेजर के साथ किसी भी प्रकार की गुरुत्वपूर्ण बातचीत भी नहीं।
एटेण्डेन्स
रजिस्टर में साइन करने के बाद हरिशंकर फाइनेन्स मैनेजर के चैम्बर में चला गया। वह
अभी तक नहीं आया था। केवल दो-तीन क्लर्क लोग आए हुए थे भीतर में। अब तक दिन के
ग्यारह बज गए थे। बहुत दिन हो गए थे हरिशंकर को ऑफिस आए हुए। इसलिए ऑफिस का अलिखित
टाइम-टेबल उसे पता नहीं था।
सेकेण्ड
ग्रेड के एकाउण्ट क्लर्क घोष बाबू कहने लगेः- क्या नेताजी, आज
सूरज किस दिशा में उगा है? आप पधारें हैं, इसलिए।
बातों
में एक व्यंग्य छुपा हुआ था जैसे। नेताजी के उच्चारण पर घोष बाबू ने ज्यादा जोर
दिया था क्या? हरिशंकर
के हाथ से यूनियन की सेक्रेटरीशिप चली गई थी, घोष
की प्रसन्नता का यही राज था क्या? हरिशंकर ने उत्तर नहीं दिया उसकी बातों का। यह वही
घोष है बेचारा, जो
थर्ड ग्रेड से सेकेण्ड ग्रेड में प्रमोशन के लिए हरिशंकर को उन दिनों में कितना
तेल लगाया करता था। आज किस तरह मजाक उड़ा रहा है आंखें तरेरते, अभद्र
तरीके से हंसते हुए।
फाइनेन्स
सेक्शन से बाहर आ गया हरिशंकर। कोरीडोर के एक कोने में पार्टीशन दिया हुआ था। वह
था टी-स्टॉल। गेस्ट इण्टरटेनमेन्ट के लिए दो हजार हर महीने सेंक्शन होता था।
उन्हीं पैसों से यहां टी-स्टॉल खुला हुआ था। जी.एम.ऑफिस के ऑफिसर से लेकर चपरासी
तक, जिस
को जब भी दरकार होती अथवा यार-दोस्त पहुंचने पर मुफ्त में चाय मिल जाती है।
सेक्रेटरी
बनने के बाद एक बार आपत्ति उठाई थी हरिशंकर ने इस टी-स्टॉल के लिए। उस समय पर्सनल
ऑफिसर ने कहा था- कितने लोग खा जाते हैं सरकारी धन को, हरिशंकर
बाबू। प्रोजेक्ट के नाम से लाखों रुपए डिप्टी सी.एम.ई॰, मैनेजर
और प्रोजेक्ट-ऑफिसर खा रहे हैं। जी.एम.ऑफिस के स्टॉफ की मिलीभगत से, नहीं
होने पर, दो
हजार की चाय पी जाते हैं। इतनी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से चलेगा?
बाद
में सोचा था हरिशंकर ने। पर्सनल ऑफिसर की बात ही ठीक है। आज से बीस पच्चीस साल
पहले यूनियन राजनीति की तरफ आकर्षित हुए हरिशंकर के मन के अंदर एक आदर्शबोध था।
श्रेणी-संघर्ष, मालिकों
का अत्याचार, निरीह
श्रमिकों को शोषण से मुक्त करने के लिए रोमांटिक सपना देखा था उसने। अब इतने दिनों
के अनुभव के बाद पता चला उसे- ये सारे आंकलन कितने अयुक्तिकर है। ट्रेड यूनियन भी
एक तह का बिजनेस है। आपको हर समय दोहरा जीवन जीना पड़ेगा। श्रमिकों के आगे आपको
श्रमिकों की तरफदारी करना पड़ेगी, मालिकों के नाम पर कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना
पड़ेगा। किन्तु मैनेजमेंट के सामने आपको विचलित होना पड़ेगा। उनकी कृपा-दृष्टि
नहीं मिलने पर जैसे तुम्हारी स्थिति समाप्त हो जाएगी-इस प्रकार का दिखावा करना
पड़ेगा।
हरिशंकर
को पता है, मैनेजमेंट
का आशीर्वाद पाए बिना कोई भी आदमी यूनियन की राजनीति नहीं कर पाएगा। मैनेजमेंट के
साथ लड़ाई कर अपनी संग्रामी मनोवृत्ति का परिचय देकर और यूनियन की राजनीति हीं
चलाई जा सकती है। लेबर लोग चाहेंगे कि उनकी तत्कालीन कमियों और असुविधाओं का
समाधान किया जाए।किसी को चोरी के अभियोग में कंपनी डिसमिस कर रही है, किसी
को सस्पेण्ड या ट्रांसफर कर रही है अनऑथराइज्ड एबसेण्ट के नाम पर, किसी
को लोन नहीं मिल रहा है, किसी के लड़के को नौकरी में घुसाना-ये सारे काम आपको
हासिल कर दिखलाना पड़ेगा-तभी तो आप कहलाएंगे नेताजी। इसलिए इन सारे कामों के लिए मैनेजमेंट
का आशीर्वाद और सहयोग जरूरी है। केवल लड़ाई करके लेबर कमीशन कोर्ट में केस लड़कर
ये सारी चीजें हासिल नहीं की जा सकती।
हरिशंकर
ने जी.एम.ऑफिस के टी-स्टॉल के विषय में और किसी भी प्रकार का प्रतिवाद नहीं किया
था पर्सनल ऑफिसर की बात सुनने के बाद। वह जान गया था, किसी
भी प्रकार की अच्छी-बुरी चीजों को बदलने का साहस उसके जैसे यूनियन लीडर के हाथों
में न तो कभी था और न ही आज है। हरिशंकर टी-स्टॉल की तरफ आगे बढ़ा और चाय बनाने के
चार्ज में रहे रामदयाल चपरासी को कहा, एक कप
चाय के लिए। रामदयाल ने पास बैठी हुई जानकी को कहा, “दे
बाबू को एक कप चाय दे।”
रामदयाल
उठा तक नहीं अपनी जगह से। जानकी भी खम्भे को पकड़कर जमीन पर बैठी हुई थी। वह
हरिशंकर को देख कर भी बिलकुल नहीं हिली, सम्मान-सूचक नमस्कार भी नहीं किया उसने। रामदयाल को
कहने लगी- तुम दो ना।
हरिशंकर
के पास क्या यूनियन सेक्रेटरी पदवी के सिवाय कुछ भी न था? व्यक्तित्व, व्यक्तिगत
गरिमा, अपनी
नौकरी की पद-मर्यादा व्यक्तिगत संबंधों की चेतना-ये सब कुछ भी नहीं था? इसी
जानकी का पति ओवरमेन था, खान-दुर्घटना में मरने के बाद उसकी बकाया राशि से
लेकर असहाय जानकी को नौकरी दिलवाने तक, जनरल मजदूर के रुप में डिजिगनेशन तक लाने और
जी.एम.ऑफिस में पोस्टिंग करवाने तक-सारे कामों को करने में हरिशंकर ने कम दौड़-भाग
नहीं की थी? उस
समय हरिशंकर को देख कर विनय से विचलित हो जाने वाली जानकी बारम्बार अपनी असहायता
की दुहाई देने तथा करुणा की भीख मांगने वाली जानकी केवल हरिशंकर के पीछे लगी हुई
यूनियन सेक्रेटरी की पदवी का ही सम्मान करती थी, व्यक्ति
हरिशंकर उसके पास मूल्यहीन हो गया था? अन्यथा, ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि हरिशंकर को देख कर अवज्ञा
से रामदयाल और जानकी बैठे हुए रहते। दूसरे दिन होते तो वे उठकर आते और अपने दुखों
को बताने लगते और हरिशंकर के विनयपूर्वक आत्मीय भाव से द्रवीभूत हो जाते।
हरिशंकर
का मन उदास हो गया। अचानक उसके मन में आया कि वह ऐसा आदमी नहीं है। हरिशंकर ऐसा
आदमी नहीं था। कभी भी हरिशंकर व्यस्त नहीं था। उसका अस्तित्व नहीं होने की बात
सुनकर दीर्घ-श्वास बाहर निकल आई। दीनदयाल उठकर चाय डालने लगा कप में। और चाय पीने
की इच्छा नहीं थी हरिशंकर की। वह पर्सनल ऑफिस के पास पहुंचा ही होगा कि जी.एम. के
चपरासी बालमुकुंद ने आकर कहा, साहब, आपको तीन दिन से खोज रहे हैं। अभी ऑफिस में बैठे हुए
हैं। थोड़ा मिल लीजिए।
जी.एम.
तीन दिनों से खोज रहे हैं? थोड़ा विकृत हो गया था हरिशंकर। अब आ गए हैं उसके दुर्दिन। उसके
ऑफिस नहीं आने के कारण मिरचलानि साहब विरक्त हो गए हैं क्या? मिरचलानि
के जी.एम. होकर आने के बाद ही हरिशंकर की सेक्रेटरीशिप चली गई। बहुत कम
मेल-मुलाकात होती थी उसकी उनसे। आज कल मीटिंगों में नहीं बुलाया जाता है हरिशंकर
को। उसके अलावा अपनी ओर से खुद का परिचय देने में भी संकोच होता है हरिशंकर को।
जबकि वह जानता है, राजनीति
में किसी भी प्रकार का संकोच करना कोई अच्छी बात नहीं है। कोई आपकी बात माने या न
माने, आपको
हर समय दिखाना पड़ेगा कि आप किसी की भी केयर नहीं करते हैं। आपकी बातचीत में आपकी
प्रतिश्रृति, शक्ति
और शौर्य झलकना नितांत आवश्यक है। पॉलिटिक्स में अपनी विजय होने की बात करने पर
लोग आपको बिलकुल घास नहीं डालेंगे।
हरिशंकर
जानता है, यही
है उसका दोष। वह कभी बहादुरी नहीं मार सकता है बातचीत में ऐसा कहने से उसे टाउटर किस्म का काम मन में आता है। हर समय विनम्र स्वभाव का
अभ्यास है उसका। हेम बाबू की सेक्रेटरीशिप में, नेशनलाइज
होने से पूर्व, एक
बार परवाहार कोलियरी में स्ट्राइक होने पर लॉक-आउट तक की नौबत आ गई थी। उस समय भी
यूनियन की एग्जीक्यूटिव बॉडी मेम्बर हरिशंकर जहां कही भी साहब लोगों को देखता था, विनम्र
भाव से नमस्कार करता था। जी.एम.चेम्बर में घुसने से पहले ही अटक गया हरिशंकर।
जी.एम. क्या खूब गुस्से में हैं? तब तो मिरचलानि साहब के साथ अधीनस्थ-उपरिस्थ का संबंध
है। क्या वह मिरचलानि के पर्सनल एसिटेंट महापात्र के साथ भेंट कर उसे थोड़ा-बहुत
समझा दें? एक
असमंजस की अवस्था में आ गया हरीशंकर। स्लीप देने
के लिए पिओन बालमुकुंद भी नजर नहीं आ रहा था। अंत में किवाड़ धकेलते हुए वह भीतर
घुस गया। “मैं
आई कम इन सर? जी.एम.
ने चेहरा ऊपर उठाकर देखा। अरे, हरिशंकर बाबू? आइए।
बहुत खोज रहा था आपको।” हरिशंकर निश्चिन्त हो गया। नहीं, जी.एम.
गुस्मे में नहीं हैं, वह
आगे बढ़ा। पांवों के नीचे बिछी हुई थी नरम कारपेट। ऑफिस भीतर में ठंडा। बड़े
सेक्रेटरी टेबल के पीछे बैठे हुए थे मिरचलानि साहब, ई-8 ग्रेड
के। बहुत ही जल्दी ई-9 होने
वाले है और सुनने में आ रहा है आने वाले समय में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी यही
बनेंगे। वह चेयर में बैठ गया।
जी.एम.
के पीछे दीवार पर लगे हुए थे तरह-तरह के ग्राफ, उत्पादन के संदर्भ में। बांई ओर एअर-कूलर से बहुत
अस्पष्ट ध्वनि निकल रही थी। हरिशंकर को थोड़ा अच्छा लगने लगा। बहुत दिन हो गए थे, जी.एम.
जैसे उच्च पदाधिकारियों के साथ उसका एपाइन्टमेंट नहीं हुआ था।
जी.एम.
ने कालिंग-बेल बजाकर बालमुकुंद को बुलाया और दो कप चाय दे जाने के लिए कहा। फिर वह
हरिशंकर से पूछने लगे, “और
कहिए, कैसी
चल रही है आपकी पॉलिटिक्स?”
“क्या
आपको मालूम नहीं है साहब, हेम बाबू ने मुझे यूनियन से बाहर निकाल दिया है।”
“आप
जितना भी खराब सोचो”,जी.एम.
कहने लगा,“हेम बाबू अच्छा आदमी नहीं है। बहुत ही स्वार्थी है।
देखिए, मुझसे
कितने काम निकाल लिए उसने, जबकि मेरा एक छोटा-सा पर्सनल काम था, भुवनेश्वर
जाकर उनको मिला भी था। वे मन्त्री हैं, चाहने से फोन उठाते ही काम हो जाता, मगर
वह काम भी उन्होंने नहीं किया। जबकि हेम बाबू ने कई लोगों के काम मुझसे करवाए हैं।”
हरिशंकर
ने चेहरा नीचे कर लिया। हेम बाबू को उनसे ज्यादा और कौन जान सकता है? मगर
फिर भी हेम बाबू के बारे में दो शब्द सुनने पर, स्वयं
को खराब लगने लगता है। यही है क्या इतने दिनों की भक्ति के संस्कार?
जी.एम.ने
आगे कहा सुनने में आया है कि हेम बाबू से सेक्ड होने के बाद आपने पॉलिटिक्स छोड़
दी है? यह
गलती क्यों कर रहे हैं आप? पॉलिटिक्स में कोई किसी को लिफ्ट नहीं देता है, जबरदस्ती
उठना पड़ता है।
हरिशंकर
ने एक गहरी लंबी सांस छोड़ते हुए कहा :- “मैंने
बहुत दावेदार लोगों को देखा है, साहेब। यूनियन की राजनीति, मेरे
जैसे आदमी के लिए बिना किसी गॉड फादर के चलाना मुश्किल है। मेरे पीछे न तो
मैनेजमेंट का आशीर्वाद है और न ही हेम बाबू के मन्त्री पद का पॉवर। मैं उठकर कैसे
खड़ा हो पाऊंगा? किस
भरोसे पर मैं मैनेजमेंट को, पुलिस को, विरोधी गोष्ठी के लेबर लोगों के साथ मुकाबला कर
पाऊंगा। तनख्वाह के समय पर चंदा संग्रह के लिए मेरे वोलेन्टियर लोगों को पर्याप्त
प्रोटेक्शन देने के लिए पुलिस या मैनेजमेंट आगे आएगा? बिना
किसी चंदा, बिना
लोकल मैनेजमेंट के समर्थन के मैं कैसे राजनीति कर पाऊंगा?” “मिरचलानि
साहब हंसने लगे, इसलिए
तो मैंने आपको बुलाया है। आप पारवाहार
कोलियरी को संभालिए। क्या नाम है उस शराबी आदमी का, ध्रुव, वही
जिसे हेम बाबू ने सेक्रेटरी बनाया है? मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है, पता
नहीं क्यों, हमारे
प्रोजेक्ट ऑफिसर मि.मिश्रा ने ध्रुव बाबू को इतना सिर पर चढ़ा रखा है। एक यूनियन
का सेक्रेटरी है वह आदमी, फिर भी चौबीसों घंटे पियेगा। केवल लेबर लोगों से
जबरदस्ती पैसे वसूलेगा और बेकार खर्च करेगा। आपको मैं विश्वास दिलाता हूँ कि
मैनेजमेंट की ओर से आपको भरपूर सहयोग मिलेगा। उसके अलावा SDPO के साथ मेरी दो दिन के बाद मुलाकात होगी, बातों-बातों में, मैं कह दूंगा आपके बारे में, वे सर्किल इंस्पेक्टर को कह देंगे कि पुलिस आपको हैरान नहीं करेगी।”
टेबल
के नीचे अपने पांव दिखाई दे हे थे। चप्पल की स्ट्रिप टूट गई थी। पहनी हुई धोती भी
मैली। अपने कपड़ों की तरफ कभी ध्यान हीं दिया था हरिशंकर ने। हर समय ऐसे ही। वह
कभी सोचा करता था, ऊपरी
दिखावटी चेहरे की तुलना में भीतरी कर्मशक्ति ही सही मायने में इमेज बनाती है। मगर
अब वह देख रहा है, आजकल
जन्म से ही लोग जैसे कि ध्रुव खटुआ, जो कि उससे दस-पन्द्रह साल जूनियर है, भी
ऊपरी दिखावे को ज्यादा महत्त्व देते हैं, भीतरी कर्म शक्ति के प्रति उनका कोई ध्यान नहीं।
जी.एम.का
भाषण सुनकर अन्यमनस्क हो जा रहा था हरिशंकर। वह न तो राशिफल में विश्वास करता था
और न ही अविश्वास। तब क्या उसके ग्रह, नक्षत्र, राशि में कहां से परिवर्तन हो रहा है? कुछ
ही दिन हुए है, विभिन्न
लोग, विभिन्न
उद्देश्य से उसे यूनियन में आने के लिए कह रहे हैं। तब विश्वनियंता की जैसी इच्छा।
“अन्यथा, आप एक
राइवल यूनियन बना दो। जी.एम.कहने लगे।” या फिर आप सेन्ट्रल कमेटी को लिखिए कि आप ही असली
यूनियन है। पहले-पहल लोकल मैनेजमेंट के खिलाफ स्वर उठाओ। हमारे प्रोजेक्ट ऑफिसर, डिप्टी
सी.एम.ई. मिश्रा के भ्रष्टाचार के खिलाफ सभा-समिति बनाकर आवाज उठाओ। अगर होता है
तो एक दिन, दो दिन, के
लिए पारवाहार कोयले की खदान को बंद कर दो। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सात दिन
वेतन काटने का सर्कुलर, मैं उस स्ट्राइक के लिए लागू नहीं करुंगा।”
आश्चर्य
चकित हो गया था हरिशंकर। यह क्या कह रहे हैं मिरचलानि साहब? उसे
राजनीति करने के दिन से आज तक किसी जी.एम. अथवा किसी सब एरिया मैनेजर ने इस तरह
स्ट्राइक करने के लिए नहीं उकसाया था। जबकि खुद मिरचलानि साहब, ई-8 ग्रेड़
के जी.एम., जो कि
कुछ दिनों के बाद एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बनेंगे, वह
ऐसा कह रहे हैं?
मिरचलानि
हंसने लगे, “मेरी
बात सुनकर आपको आश्चर्य हो रहा है, है न ? सोच रहे हो, ये सब मैं क्या कह रहा हूं? देखिए, हरिशंकर
बाबू, केवल
आप लोगों को ही राजनीति नहीं करनी पड़ती है, प्रत्येक
क्षण हम लोगों को भी राजनीति करनी पड़ती है। मि.मिश्रा, हमारा
डिप्टी सी.एम.ई., मेरे
एडमिनिस्ट्रेशन में एक सर दर्द है। आप चाहते हो ध्रुव बाबू को हटाना, और
मैं चाहता हूँ मि.मिश्रा बाबू को हटाना। आइए, हम
दोनों मिल कर एक साथ काम शुरू करें। देशमुख आपके मैनेजर को डिप्टी सी.एम.ई. बहुत
हैरान कर रहा है। उसको अपना आदमी समझिए। जब भी आपको किसी सहायता की जरूरत होगी, कहिएगा।
फिर भी, मैं
चाहता हूँ मि.मिश्रा के विरुद्ध में एक आंदोलन, एक
तीव्र प्रतिक्रिया।”
हरिशंकर
समझ गया मिरचलानि साहब द्वारा उसको बुलाने का उद्देश्य। जी.एम. असंतुष्ट है
मि.मिश्रा के ऊपर। वह हरिशंकर को माध्यम बनाना चाहते हैं। कुछ समय के लिए उसने
अपनी आंखें बन्द कर ली। प्रस्ताव स्वीकार किया जाए? स्वीकार
करने में क्षति ही क्या है? और एक बार फिर यूनियन के झमेले-झंझटों का टेंशन सिर
पर लेना पड़ेगा? यूनियन
से बाहर आकर कौन से टेंशन से मुक्ति है? यही तो सुयोग है, जी.एम.
की लिफ्ट मिल रही है- देशमुख भी सहयोग करेगा। यही तो है सुयोग। ले लिया जाए? मान
लिया जाए यह प्रस्ताव? मान
लेने में खराबी क्या है? कहने लगा :- ठीक है साहब। आपका आशीर्वाद रहेगा तो सब
होगा। थाना सर्किल में एक नया इंस्पेक्टर आया है। मुझे नहीं पहचानता है। मैं अवश्य
उसके साथ संपर्क रखने की चेष्टा करूंगा, आप भी SDPO को थोड़ा कह देंगे।
उठ कर
आ गया हरिशंकर जी.एम. के पास से। नया यूनियन बनाना पड़ेगा। पुराने एग्जीक्यूटिव
बॉडी के अधिकांश सदस्य राजनीति छोड़ कर शांत शिष्ट बन अपनी ड्यूटी और घर-संसार
संभाल रहे थे। बाकी एक दो आदमी ध्रुव खटुआ के यूनियन में शामिल हो गए थे। हरिशंकर
ने मन ही मन एक लिस्ट तैयार कर ली-किस को रखा जाए और किस को नहीं रखा जाए। कौन काम
कर सकेगा, कौन
नाम लेने के लिए हाई-फाई, कौन पैसे मांगने में उस्ताद-सभी के चेहरे एक-एक कर
उसके ध्यान में आने लगे।
नई
रसीद बही छपवानी पड़ेगी। उनके पुराने यूनियन में सेंट्रल कमेटी के अब दो टुकड़े हो
जाएंगे। एक ग्रुप द्विवेदी जी का, तो एक ग्रुप तिवारी जी का। दोनों ही लोक सभा के सदस्य
हैं, फिर
एक ही राजनैतिक दल के भी। हरिशंकर के समय में ही सेण्ट्रेल कमेटी टूट कर दो टुकड़े
हो गई थी। हेम बाबू उस समय चौबे जी के साथ रहना चाहते थे। तिवारी जी धनबाद से आकर
कुछ दिन से दौड़ भाग कर रहे हैं, मगर यहाँ उनकी मेहनत काम नहीं आई। हेम बाबू और चौबे
जी के भीतर अच्छा राजनैतिक संबंध है।
हरिशंकर
ने तिवारी जी को चिट्ठी लिखी उसके यूनियन के लिए सेण्ट्रल कमेटी के तिवारी ग्रुप
का अनुमोदन लाएंगे क्या? तिवारी के पास इस समय घुटने मोड़ कर खड़े रहना क्या
उसे अच्छा लगेगा या नहीं, हरिशंकर ने और इस विषय पर सोचना छोड़ दिया । यही है
राजनीति। उसे किसी का सहारा लेकर उठना पड़ेगा।
बहुत
काम करना पड़ेगा इसी दौरान। देशमुख के साथ मुलाकात करनी पड़ेगी। स्ट्रेटेजी तैयार
करनी पड़ेगी। मीटिंगों का आयोजन करना पड़ेगा। सण्ट्रेल कमेटी से अनुमोदन लाना
पड़ेगा। पुराने यूनियन का घर ध्रुव के कब्जे में। नए घर की जरूरत पड़ेगी। चंदा
आदाय करने के लिए जरुरत पड़ेगी, सांड मार्क और गुण्डे प्रकृति के लोगों की।
हरिशंकर
थक गया था। इतने काम करने पड़ेंगे सोचकर? बुढ़ापा भी छूने लगा है।पहले की तरह उत्साह नहीं रह
गया हैं। किस तरह की थकान और अवसाद लगने लगा है उसे। समय गुजरता जा रहा था। शाम
होने आई थी। हरिशंकर ने कभी भी ऐसा नहीं सोचा था। सेंटीमेंट, इमोशन
सभी को एक तरफ रख कर आया था वह। इसके लिए हेम बाबू हर समय उसे जोर देकर दूर रखने
के लिए कहते थे।
उसे
निश्चय ही जी.एम. द्वारा प्रदत्त सीढ़ी का उपयोग करना पड़ेगा। जी.एम. उसका प्रयोग
करे, उससे
पहले ही जी.एम. का उसे प्रयोग कर लेना चाहिए। ध्रुव खटुआ तो.... हरिशंकर की सीधी
लड़ाई मि.मिश्रा के साथ नहीं है, चौबे जी के साथ भी नहीं हैं, शोषण
के विरोध में भी नहीं है, श्रमिक एकता के पक्ष या विपक्ष में भी नहीं, उसकी
लड़ाई है हेम बाबू के विरोध में, उसकी लड़ाई है अपमान के प्रतिशोध के लिए, उसकी
अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए।
मगर
कौन उसको सहयोग करेगा? पुराने
साथी और बाहर निकलेंगे? एक बार यूनियन का नशा उतर जाने पर लोग अपने घर
गृहस्थी के आँगन में चले गए, वशीभूत श्रमिक और कर्मचारी होने के बाद
और उत्तेजक दिनों की तरफ लौटना नहीं चाहेंगे। शायद अधिकांश लोग और आएगें भी नहीं।
मगर नए लोगों को और कौन खोज़ कर लाएगा, कौन
समझाएगा सभी को। सभी केवल हरिशंकर के पक्ष में तो संभव नहीं है। यह तो एक टीम वर्क
है। हरिशंकर के पास पांच-सात आदमी खड़ा होने से तो वह दिखा पाएगा यूनियन खड़ा करने
की क्षमता।
जी.एम.ऑफिस
के सामने चाय की दुकान पर बैठकर अख़बार पढ़ रहा था हरिशंकर। बिलकुल नहीं पढ़ रहा
था। जी.एम. ऑफिस से बाहर निकलने के बाद उसका मन स्थिर नहीं था। अख़बार खोल कर बैठा
जरूर था, मगर
एक भी अक्षर नहीं पढ़ पा रहा था। जैसे अख़बार शतरंज(चौसर) का एक बोर्ड है। जिस पर
वह सजा रहा है अपने सैनिक, सामंत, राजा, मन्त्री, हाथी व घोड़ा. अख़बार से आंखें ऊपर उठाते ही उसकी
नज़र पड़ी होटल के बाहर खड़े अगणी होता पर। पारवाहार
कोलियरी में इलेक्ट्रिशियन का काम कर रहा था अगणी। उत्साही आदमी। पुराने यूनियन
में बॉडी मेम्बर था वह। ध्रुव खटुआ ने उसे यूनियन से बाहर निकाल दिया था। फिर भी
यूनियन ऑफिस में जाता है, यह खबर हरिशंकर को पता है। अर्थात् अगणी का झुकाव है।
ध्रुव लिफ्ट नहीं दे रहा है। उसे अपनी तरफ लिया जा सकता है। पुराना आदमी, पुराना
अनुभव है उसे ट्रेड-यूनियन का। उसके अलावा, वह
मेहनती है। उसके यूनियन में एसिस्टेंट सेक्रेटरी का पद छांट कर रखा है उस
इलेक्ट्रिशियन के लिए, हरिशंकर
ने। होटल से बाहर आकर अगणी के कंधों पर हाथ रखा उसने। मुड़ कर पीछे की ओर देखते ही
अगणी ने हरिशंकर को खुशी से नमस्कार किया, “आपके
पास ही आया था नेता जी। दो-तीन दिन हो गए आपको खोजते हुए।”
“मैं
भी तुम्हें खोज रहा हूँ अगणी।”
“मेरा
एक पुतरा है नेता जी पुतरा, मतलब गांव का संबंधी, हमारे
गांव से आ कर रह रहा है हमारे घर में। बदली में भर्ती करवा दिया था, टब
चेकर में जा रहा था। अभी किसी ओवरमेन ने बदमाशी से उसे लोड़िंग में भेज दिया है।
यह बात नहीं समझेंगे, नेताजी?”
“होगा, होगा, होगा।” अगणी की पीठ पर हाथ लगाते हुए कहा हरिशंकर ने। उसके
स्वर में इतना आत्मविश्वास कहाँ से आ गया? इस
स्वर को तो दो वर्ष पहले ही उसने खो दिया था। अब जी.एम. के चेम्बर से बाहर निकलने
के बाद ही हरिशंकर में लौट आई थी उसकी पुरानी शक्ति, उसका
पुराना उत्साह. वह कहने लगा, “ये सारे छोटे काम तो हो जाएंगे अगणी। इससे भी बड़े
काम हमें करने पड़ेंगे। आओ, होटल के भीतर आओ। सब कुछ बता देता हूँ तुम्हें।”
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