अष्टम परिच्छेद


अष्टम परिच्छेद
                सारी रात हरिशंकर को नींद नहीं आई। सुबह होते ही पिट हेड पर यूनियन की मीटिंग। वह मीटिंग होते ही नए यूनियन की घोषणा करेंगे हरिशंकर। इस कोलियरी के प्रोजेक्ट ऑफिसर सब डिप्टी सी.एम.ई मिश्रा साहब ने पहले इस मीटिंग के लिए परमीशन नहीं दी थी। पहले तो उन्होंने यह कह दिया था, हमारे यहां एक ही रिकोगनाइज् यूनियन है। दूसरे यूनियन को हम और प्रश्रय नहीं दे पाएंगे। हरिशंकर ने जी.एम. मिरचंदानी से परमीशन ले ली थी।
                वही थी उसकी बहादुरी और कइयों ने उसे हरिशंकर की पहली जीत बताया था। हरिशंकर ने अवश्य ही किसी को नहीं कहा था, कि यूनियन के पीछे जी.एम. मिरचंदानी का हाथ था, उनकी सहानुभूति और प्रच्छन्न सहयोग था। लेबर लोगों से कुछ कुछ चीजें छुपाकर रखनी होती है। जैसे कि मैनेजमेंट के प्रच्छन्न समर्थन की बात। हरिशंकर की यह पहली मीटिंग नहीं थी। हेमबाबू के यूनियन में जनरल सेक्रेटरी के तौर पर उसने बहुत सारी पीट हेड मीटिंगों का आयोजन किया था। मगर अपने यूनियन की यह पहली मीटिंग थी, इसलिए वह बहुत व्यस्त अनुभव कर रहा था। यूनियन ऑफिस का माइकसेट ध्रुव खटिया ने अख्तियार लिया था। बाजार से एक माइक सेट किराये पर लाया था हरिशंकर। मीटिंग से पहले सुबह शिफ्ट के लोगों तांता लगा था, नाइट शिफ्ट के थके हारे घर जाने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कुछ कैसेट जरूरी थी। मगर देशभक्ति के गीत आजकल मार्केट में नहीं मिलते हैं। सब जगह सिनेमा के गीत केवल। अगणी होता ने कहा, फिल्मी गीत भी चलेंगे। लोगों को आकर्षित करने की तो बात है ? फिल्मी गीतों से ज्यादा आकर्षित होते हैं लोग।  मगर हरिशंकर का मन नहीं माना बहुत सारे क्लबों में खोजने पर देशभक्ति फिल्मी गीत आखिरकार मिल गए। मगर महात्मा गांधी की प्रिय धुन रामभजन नहीं मिली। मार्केट में औरुस भजन की डिमांड नहीं थी।
                अफसोस रह गया हरिशंकर के मन में। पुराने यूनियन में अभी भी ईश्वर अल्लाह तेरे नामकी रिकार्डिंग है। ध्रुव खटुआ अब वह रिकार्डिंग नहीं बजाता है। उसकी मीटिंग में भी आजकल चालू फिल्मी गीत  बजते हैं। मगर हरिशंकर के समय में ऐसा नहीं होता था। ज्यादा से ज्यादा लता मंगेशकर का जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी, हे मेरे वतन के लोगों जरा आँखों में भर लो पानीगीत ही बजता था उनकी रिकर्डिंग में। बिना रामधुन के कोई भी मीटिंग हरिशंकर को पूर्ण नहीं लगती थी।
                मीटिंग के लिए सारी तैयारी हो चुकी थी। एजेंडा भी तैयार कर लिया गया था। थाने से भी परमीशन मिल गई थी। यथासंभव प्रचार भी कर दिया गया था। चारों तरफ कोयला खदान में नए यूनियन के गठन की चर्चा जोरों पर थी। बहुत दिनों के बाद हरिशंकर का ध्यान गया, कि वह लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बन गया है। लोग उसकी तरफ ध्यान दे रहे हैं, शायद भय या भक्ति भाव से नमस्कार कर रहे  हैं, नहीं तो पीठ घुमाकर जा रहे हैं। उसका अस्तित्व इतने दिनों के बाद इस कोयलांचल में महत्त्वपूर्ण हो गया है।
                सारी रात छटपटा रहा हरिशंकर। आधी नींद में केवल मीटिंग के सपने देख रहा था वह और भोर होते ही वह घर से बाहर निकल गया था। पास में चाय की दुकान के नौकरों की नींद भी तब तक पूरी नहीं हुई थी। कोयले के चूल्हे में आँच भी नहीं लगाई ली और न ही मालिक अपने घर से वहां पहुंचा था। हरिशंकर को एक कप चाय की आवश्यकता था। घर में तो एक कप चाय मिलना मुश्किल था। इतनी सुबह सुबह कौन चाय पिलाता ? अगणी होता के क्वार्टर जाकर उसे उठाकर लाया था वह। नींद भरी आंखों को मलते हुए,लूंगी और गंजी के ऊपर टॉवेल डालकर पांवों में चप्पल पहन कर अगणी होता आकर बैठ गया था चाय की दुकान पर। कहने लगा- आपका भाषण पटनायक बाबू बहुत जोरदार होना चाहिए। लोगों को खूब उत्तेजित करना होगा, खटुआ के भाषण की तुलना में जरा ज्यादा गर्मी होनी चाहिए।
                हरिशंकर ने मन ही मन तय कर लिया था कि उसके भाषण का स्वरूप कैसा होना चाहिए। राष्ट्रीयकृत प्रतिष्ठान में ट्रेड यूनियन की भूमिका के बारे में उसे क्या क्या कहना चाहिए। आज की इस मीटिंग को नहीं करने के लिए प्रोजेक्ट ऑफिसर की दूरदर्शिता ने किस तरह राष्ट्रीयकृत प्रतिष्ठान के ब्यूरोक्रेट लोगों को षड़यंत्र के रूप में दर्शाया है, वह यह बात मीटिंग में कहेगा।
                अगणी होता ने कहा- केवल प्रोजेक्ट ऑफिसर को गाली देने से क्या होगा ? हमारा यूनियन पूरे मैनेजमेंट का विरोधी है, यही बात वहाँ पर कहनी होगी। देशमुख और जी.म. के विरोध में कड़वी भाषा के शब्दों को अलग से छांटकर रखिएगा।
                कुछ भी नहीं कहा था हरिशंकर ने अगणी की बात सुकर। उसे याद आ गई थी, कल उसकी देशमुख के घर जाने की बात। देशमुख को जितना निरीह समझा था हरिशंकर ने, पास से देखने के बाद पता चला कि वह वास्तव में इतना निरीह नहीं था। तब भी हरिशंकर के काम में आएगा। अब बहुत प्रेशर में है प्रोजेक्ट ऑफिसर के ऊपर। इस तरह से बातचीत कर रहा था जैसे वही ही लिफ्ट दे रहा है हरिशंकर को। इसलिए हरिशंकर ने जान बूझकर चेता दिया था कि जी.एम. के परामर्श के अनुसार ही हरिशंकर आया है देशमुख को लिफ्ट देने के लिए। लिफ्ट लेने के लिए नहीं।
                हरिशंकर और अगणी चाय की दुकान से लौटने के बाद, अपने घर में परिचय करवा दिया था भतीजे के साथ। कहने लगा वह - यह मेरे गांव का संबंधी, भतीजा। प्रद्युम्न। यहाँ अभी बदली लोडर में भर्ती करवा दिया हूँ।
                “इसपर्सनेशन केस ? डराते हुए अगणी को कहने लगा तुम्हें पता है अगणी, इमपर्सनेशन केस क्या होता है ?तुमने अपने भतीजे को इस तरह भर्ती करवाने की रिस्क क्यों ली ?”
                “नौकरी की बात तो जानते हो, नेताजी।अगणी ने बेचैन होकर कहा, “भतीजा इतना दूर से आया है। हेम बाबू की बात तो जानते हो कोई फायदा नहीं। आज के जमाने में कोलियरी में नौकरी पाना संभव है ? इसके अलावा कोई डिप्लोमा सर्टीफिकेट भी नहीं। उस दिन देखा ना, क्लर्क लोगों के इंटरव्यू के लिए भी झमेला। इसलिए इंटरव्यू भी नहीं हो पाया। आजकल के जमाने में केवल पैसे चाहिए। मान-सम्मान का कोई महत्त्व नहीं। एम.ए. पढ़ने के बाद प्राइवेट कॉलेज में पाँच-छः हजार वाली लेक्चर की नौकरी को कौन-सी अच्छी दृष्टि से देखा जाता है ? उससे तो बेहतर है कुली का काम करके दो-ढाई हजार रुपए कमाना
                “मैं पैसों की बात नहीं कर रहा हूँ अगणी। इमपर्सनेशन केस एक ठगी का मामला है। एक चप्पलबाजी है। कभी भी उससे नौकरी जा सकती है। उसके अलावा, हर समय ब्लैकमेलिंग का खतरा झेलना पडेगा।कहने लगा अगणी- आजकल कोलियरी में ये सब कौन देखता है, कहो तो ? मेहताब ने एक बार कहा था न, भ्रष्टाचार को अगर कानूनन स्वीकृति दी जाए तो भ्रष्टाचार अपने आप खत्म हो जाएगा। यहां तो सभी जानते हैं, ऐसे इमपर्सनेशन केस में नौकरी पाना संभव है।प्रद्युम्न ने पूछा- मेरा क्या होगा, सर ? मेरी नौकरी ? भविष्य ? मेरा अपना नाम ?”
                हरिशंकर ने लड़के की तरफ देखा। उम्र कितनी होगी ? इक्कीस बाईस ? उसके बेटे की उम्र का लड़का, कैसे कह पाएगा वह इमपर्सनेशन केस में नौकरी करना खुद के प्रति किसी प्रताड़ना से कम नहीं है ? यह लड़का क्या करेगा अब ? जीवन भर दूसरे के नाम पर इस कोलियरी में नौकरी करेगा और दूसरे नाम से जीवित रहेगा ?क्या लड़के के नौकरी छोड़ने पर उसका प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी बिना किसी क्लैम के छोड़ देगा ? उसके लड़के क्या उसका पी.एफ. क्लैम कर सकते हैं ?
                हरिशंकर कहने लगा- देखो, क्या होगा नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि तुम्हारे इस केस को सुधारना एक दुष्कर काम है। फिर बी मैनेजमेंट चाहने से सबकुछ संभव है। मैनेजमेंट यदि चाहेगा तो तुम एफिडेविट बनाकर अपना नाम, पता बदल सकते हो। मगर सब कुछ निर्भर है मैनेजमेंट के ऊपर कि वह सहयोग करता है अथवा नहीं। करने के लिए रिक्स लेगा या नहीं, सबकुछ उनके ऊपर। फिर भी तुम्हें इंतजार करना चाहिए। हमारा यूनियन थोड़ा खड़ा हो जाए। इसके बाद हम कोशिश करेंगे।
                अगणी और हरिशंकर के साथ प्रद्युम्न भी आया पिट हेड पर। एकदम खाली था पिटहेड। अब तक भीतर से कोई भी बाहर नहीं आया था। कैंटीन में कोयले का चूल्हा जल रहा है, धुंआ निकल रहा है। एमटीके टेबल के ऊपर पांव रखकर सो रहे हैं। हरिशंकर को देखते ही किसी ने कहा- नेताजी, आज तो आपकी मीटिंग है।
                अगणी बाहर आकर खड़ा हो गया इंक्लाइन के सामने। पुराने परित्यक्त टब, लोहे की छड़ें, आबुरी-जाबुरी चीजों से भरा हुआ है पिट हेड़। आज से पैंतीस साल पहले इसी पारबाहार कोलियरी में आया था हरिशंकर। उस समय यह पिट हेड ही नहीं था। इस अंचल में थे घने जंगल। उस समय चौदह नंबर पिट चल रहा था। कोई भी इस तरफ भूल से भी नहीं जाता था। उस घने जंगल के भीतर सांपों का भय था।
                हरिशंकर को उस समय नौकरी पाने में बिलकुल कष्ट नहीं हुआ। खुद वह पिट हेड पर आया था, अठारह उन्नीस साल के नौजवान युवक को सब कुछ नया नया दिखाई दे रहा था। लोग-बाग, घर-द्वार, सामान सब कुछ अलग-अलग लग रहा था। जैसे किसी नई दुनिया में पांव रखे हो उसने।
                उस समय किसी ने बुलाया था हरिशंकर को अपने पास। हॉफ पैंट पहने हुए, सिर पर हेलमेट, एकदम एक गोरे आदमी ने। उस समय देश आजाद हो चुका था। गोरे साहेब छोड़ कर चले गए थे अपने देश। अचानक इस काले देश में एक गोरे आदमी को देखकर आश्चर्य हो रहा था हरिशंकर को। बाद में पता चला कि वह फर्गुसन साहब है, इस कोलियरी के मैनेजर,सबसे बड़ा ऑफिसर।
                उन फर्गुसन साहब, इतने बड़े ऑफिसर होने के बाद भी उनके मन में बिलकुल गर्व नहीं था। सभी कुली मजदूरों के साथ माइन्स में जाते थे वह। आठ घंटे काम करते थे। उस समय आजकल की तरह औरतों को भूमिगत खदानों में काम करने की मनाही नहीं थी। उन्हीं रेजा लोगों में से किसी एक से शादी की थी फर्गुसन साहब ने। हरिशंकर की नौकरी करने के एक-दो साल के बाद कंपनी के साथ झगड़ा हो जाने के कारण रिजाइन करके चले गए थे फर्गुसन अपने देश को। अपनी रेजा स्त्री और दो गोरे बेटे को छोड़कर। फर्गुसन के एक बेटे की बाजार में पान की दुकान है। दूसरा सट्टे के खेल में गेंबलर बन गया। कॉपी और पेंसिल पकड़कर हताशा से उसे इधर-उधर गलियों, उपगलियों में घूमते हुए अनेक बार देखा है हरिशंकर ने।
                उन फर्गुसन साहब ने बुलाया था हरिशंकर को, “तुम काम करोगे कोयले की खदान में ?” इतना जल्दी काम का ऑफर मिल जाएगा, हरिशंकर ने सपने में भी नहीं सोचा था। उससे छोटे और तीन भाई। गांव में टूटे घर पर छप्पर लगाने की क्षमता नहीं थी। धोती खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे उसकी विधवा मां के पास। और भूख। अविराम भूख। हर समय चार पेटों के अंदर हुतहुत जलती आग। हरिशंकर को घर छोड़ने के बाद बस में बैठते ही भारी मन संताप हो रहा था। क्या नौकरी कोई ऐसे मिलती है ? पेड़ को हिलाओ पैसे मिल जाएंगे ?इधर उधर भटकता रहूंगा ?
                मां ने जो अपने कान-फूल गिरवी रखकर बीस रुपए जुगाड़ किए थे, वे भी बेकार जाएंगे ? फर्गुसन साहब ने पूछा था, “नौकरी करोगे ? आगे पढ़ाई करोगे ?फर्स्ट क्लास तक पाया था। गरीबी की वजह से और पढाई नहीं कर पाया। बट आई नो इंगलिश वेरी वेल, सर। उस समय मैट्रिक या इलेवन्थ क्लास को सभी फर्स्ट क्लास ही कहते थे। मानो उस शब्द में एक अभिजात्य और सम्मान मिला हुआ हो।
                चलेगा। चलेगा। तुम तो इतने पाठ पढ़े हो। तुम हाजिरी बाबू बनोगे। जितने लोग खदान के अंदर जाएंगे, तुम सभी के नाम, पिता का नाम और पता लिखोगे। मुझे हर दिन शाम को वह लिस्ट दिखाओगे।
                ऐसी राजा नौकरी है यह। हरिशंकर तो कुली का काम करने के लिए भी तैयार था। इसी दौरान मां के द्वारा दिए गए बीस रुपयों में से खत्म होते होते एक रुपया बचा था। एक रुपए से तो घर लौटना भी संभव नहीं था।
                तुम्हें दिन के पचहत्तर पैसे (बारह आना) मिलेंगे। और महीने के तीस सेर चावल,चार बोतल केरोसीन भी तुम्हें मिलेगा कंपनी के गोदाम से। दिन के बारह आना, महीने के तीस सेर चावल, चार बोतल केरोसीन।कितना हो गया ? हरिशंकर अपने आप बिना किसी कारण के हंसने लगा। आजकल हरिशंकर को अढ़ाई हजार तनख्वाह मिलती है। जबकि उस समय उतनी ही तनख्वाह उसके सामने सुना मूंडा को मिलती थी, उसे अच्छी तरह याद था। वास्तव में उस जमाने में उतनी तनख्वाह आकर्षक थी, इसलिए हरिशंकर जैसे आदमी के पास फर्स्ट क्लास मैट्रिक वाला भी नहीं बैठ पाता था।
                माइक में गीत बजने से ध्यान भंग हो गया हरिशंकर का। और प्रकाश पेड़ के ऊपर साउंड बॉक्स फिट कर रहा था। पहले जगन्नाथ जी का भजन लगाया हुआ था, हरिशंकर को फिर याद आ गया रामधुनकी रिकार्ड बजाने के लिए। पुरानी सारी चीजें टूट गई थी  गायब हो गई थी। कितना जल्दी सबकुछ बदल गया। पारवाहार कोलियरी के पिटहेड पर खड़े हो कर पैंतीस साल पहले चौदह नंबर पिट की बात याद आने पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कल की ही तो बात हो। यह समय तो ! मानो कल या परसो हरिशंकर भी नहीं रहेगा। यह पिट भी नहीं रहेगा। जबकि लोग रहेगें, दुनिया रहेगी। वैसे ही  सुबह होगी। वैसे ही सूर्योदय होगा, घास पर ओस के कण जमेंगे। मगर उस नई दुनिया को देखने के लिए हरिशंकर नहीं होगा। कोई भी नहीं होगा। सोचने मात्र से उसे अस्थिर-अस्थिर सा लगने लगा। मन भारी हो गया।
                आज उसकी यूनियन का जन्मदिन है। इस समय इस तरह सनकी होना उचित था हरिशंकर कायूनियन हो या राजनीति हो- हर समय एक आशावादिता के साथ ही जीना पड़ता है। निराशा का वहाँ कोई स्थान नहीं है। हरिशंकर उन सभी यादों को भूलने का जोरदार प्रयास करने लगा।
                ओमप्रकाश ने कार्यक्रम के शुभारंभ की घोषणा की। कभी अपनी मातृभाषा हिन्दी में तो कभी टूटी-फूटी ओड़िया भाषा में बंधुगण ! आज सुबह आठ बजे पारबाहार कोलियरी के पिट हेड पर पारबाहार कोलियरी मजदूर संघकी ओर से एक साधारण सभा का आयोजन किया जा रहा है। सभा के मुख्य वक्ता के रूप में योग देंगे मजदूर संघ के महान नेता श्री हरिशंकर पटनायक। आप से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में पधारकर इस सभा को सफल बनावें।
                अगणी होता ने आकर कहा, आयोजन कैसा हो रहा है, नेताजी ? लोग आएंगे या नहीं ? लोग आएगें  या नहीं, उस पर हरिशंकर का कोई गुरुत्व नहीं था। पहले जनता, भीड़ इन सारी बातों पर बहुत महत्त्व देता था हरिशंकर। लोग क्या सोचेंगे ? उनके सामने अपनी इमेज खत्म हो जाएगी, या फिर शायद लोग समर्थन करने के लिए आगे आएंगे। मगर मंत्री बनने के बाद, एक बार हंसी हंसी में हेमबाबू ने हरिशंकर की वह धारणा चूर चूर कर दी। कहने लगे- मास? भीड़ ? जनता ? यह किसी की नहीं है हरिशंकर। तुम मास या जनता के लिए जो कुछ भी कर दो, वे तुम्हारी बात याद नहीं रेखेंगे। बहुत ही अनग्रेटफुल है तुम्हारी जनता। भारतीय वोटर कभी भी किसी भी प्रार्थी को वोट नहीं देती है। वह देते है एक पार्टी को, एक प्रतीक को, नहीं तो, राष्ट्रमुखी होने के लिए योग्य अपने प्रिय नेता के मनोनीत प्रार्थी को। तुम अगर रामा दामा श्यामा, किसी को भी खड़ा करोगे तो वह जीत जाएगा। कितने लोकसभा सदस्यों को वोटर जानते हैं। पहचानते हैं। बहुत सारे ऐसे एम.पी हैं, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में पूरी तरह घूम नहीं पाते, निर्वाचन प्रचार भी नहीं कर पाते, वे लोग जीत जाते हैं।  दूसरी बात, मास सबसे ज्यादा अनग्रेटफूल। तुम उनके लिए जितना भी कर लो अगर उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं तो हर आदमी तुम्हारा दुश्मन बन जाएगा। इसलिए मास को बांधकर रखने का उपाय है- लोगों की आवश्यकताएं पैदा करो और फिर उनकी पूर्ति करो, लोगों को हैरान करने की प्रक्रिया प्रारंभ करो और खुद मुक्ति कर्ता बनकर उनकी हैरानी खत्म करो।
                हरिशंकर शुरू- शुरू में इन बातों को नहीं मान रहा था। जितना अवक्षय, अवमूल्यन देखने पर भी  हरिशंकर के मन वही पुरानी आदर्शवादी चेतना अभी तक लुप्त नहीं हुई थी। इसलिए इन सारी बातों को मानने के लिए मन तुरंत तैयार नहीं होता था। मगर फिर सोचकर देखा था उसने यूनियन छोड़ने के बाद, ये बातें पूरी तरह गलत नहीं थी। कहीं न कहीं एक अप्रिय सत्य मिलकर रहता था उसके साथ।
                सात बजकर पैंतालीस मिनट पर लोग जुट गए थे मीटिंग के आस-पास। जो लोग बाहर आ रहे थे पिट हेड से, अगणी, प्रद्युम्न और ओमप्रकाश उनको बुला बुलाकर बैठाने की चेष्टा कर रहे थे. इसी दौरान अगणी ने आकर कहना शुरू किया- प्रोसेसन निकालेंगे क्या इन लोगों को लेकर ? प्रोजेक्ट ऑफिसर के ऑफिस के सामने  ले जाते हैं कुछ लोगों को नारा स्लोगन देने के लिए।
                नहीं रुक जा। हरिशंकर ने कहा। फर्स्ट शिफ्ट के लोग तो नहीं जा पाएंगे। वे लोग ड्यूटी में है। नाइट शिफ्ट के लोग थक गए हैं। उन्हें क्यों हैरान करेंगे।
                उसी समय ध्रुव खटुआ की मोटर साइकिल आते दिखाई पड़ी हरिशंकर को। उसके दोनों पांव कांपने लगे। ध्रुव खटुआ मोटर साइकिल स्टेंड पर खड़ी करके किसी एक को बुलाकर पूछने लगा। शायद मीटिंग के विषय में। हरिशंकर थोड़ा परेशान दिख रहा था। ध्रुव खटुआ के लिए नहीं, हेमबाबू के खिलाफ थी यह पहली सभा। हरिशंकर इतने दिनों तक हेमबाबू का गुणगान करता आ रहा था। आज किस तरह इस बात से मुकर जाएगा वह ? हेमबाबू को किस मुंह से गाली देगा। ध्रुव खटुआ को देखकर अगणी दौड़कर जाकर माइक के सामने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा- ध्रुव खटुआ-मुर्दाबाद।
                जनता भी एक साथ मिलकर चिल्लाने लगी- मुर्दाबाद।
                “कंपनी दलाल, मुर्दाबाद।
                “फिर एक बार उत्ताल स्वर : मुर्दाबाद।
                “शोषण शासन, गुंडा राज नहीं चलेगा।
                “नहीं चलेगा। नहीं चलेगा।
                “हेमबाबू, मुर्दाबाद।
                “मुर्दाबाद, मुर्दाबाद।
                इस उत्ताल जन समुद्र के बज्र निर्धोष नारों से पुलकित हो उठे हरिशंकर। उनके पीछे जन समर्थन है तभी तो ? इसलिए तो इतने लोग आकर खड़े हुए हैं, इनका समर्थन मिल जाने से तो हरिशंकर पृथ्वी को भी उलटा कर सकते हैं। कौन कहता है मास कुछ नहीं होता है ?
                हरिशंकर को याद आया, मास एक शक्ति है। नहीं तो, इन नारों से हरिशंकर का आत्मविश्वास इस तरह बढ़ जाता ?
                ध्रुव खटुआ जल्दी-जल्दी मैनेजर के डयूटी रुम की तरफ चला गया। ओमप्रकाश ने आकर कहा; “अगणी बाबू आपको बुला रहे हैं मीटिंग करेंगे, आइए।
                हरिशंकर के भाषण देने से पहले अगणी ने संक्षिप्त में एक सूचना दी : बंधुगण ! श्रमिक जाति आज कितने बड़े षड़यंत्र का शिकार होने जा रही है, इस विषय पर मैं आज आपको सूचित कर देता हूँ। हेमबाबू किस प्रकार मैनेजमेंट के साथ मिलकर श्रमिकों का शोषण कर रहे हैं और उनके विरोध में आवाज
उठाने के कारण आपके प्रिय नेता हरिशंकर बाबू को यूनियन से बाहर निकालकर हेमबाबू ने सोचा कि उन्होंने अपने रास्ते के काँटे को हटा दिया है। मगर हरिशंकर पटनायक नहीं मर सकता है। उनकी आवाज को कोई दबा नहीं सकता। हरिशंकर पटनायक केवल एक नाम नहीं है, एक स्वर,एक चेतना, श्रमिक जाति का दूसरा नाम है हरिशंकर पटनायक। आज हरिशंकर को मार दिया जाता है तो कल सौ सौ हरिशंकर पटनायक जन्म लेंगे। चारों तरफ फैल जाएंगे विद्रोह के स्वर। अत्याचार, अनीति, दुर्नीति के विरोध में सभी एक साथ खड़े होंगे ही होंगे। क्योंकि इस लड़ाई में हमें हराने की शृंखला को छोड़ कुछ भी नहीं। और पाने को है सारा संसार। तालियों की गूंज से भर गया सभा स्थल। पिट ऑफिस के बरामदे में अंडर मैनेजर, ओवरमेन एमटीके, लैंप केबिन के लोग और कुछ मजदूर खड़े होकर देख रहे थे। ध्रुव खटुआ कहाँ है ? हरिशंकर ने देखा, उसकी मोटर साइकिल भी गायब है। कब चला गया वह आदमी। उसके अनुचरों को जरुर निर्देश देकर गया होगा भाषण को टिपने के लिए।
                अगणी होता भाषण देकर चला गया  हम सभी को एकजुट होकर रहना पड़ेगा, भाइयों। हम अपना खून पसीना बहाकर प्रॉडक्शन  देतेहैं, जबकि उसका फल भोगते हैं मैनेजर लोग। उनका प्रोमोशन होगा। मजदूरों को क्या मिलता है ? थोड़े-बहुत पैसे, उसके सिवा और क्या ? हमें पहचान लेना होगा, बंधुगण, कौन हमारे दोस्त हैं, कौन हमारे शत्रु। कौन दुख में, शोक में हमारे पास खड़ा रहता है, और कौन डरा धमकाकर हमारा शोषण करता है। हमें आज से ही लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।
                फिर एक बार तालियों की गूंज से थर्रा उठा सभा स्थल। अगणी बहुत अच्छा भाषण दे सकता है। हेमबाबू ने भी कई बार उसके भाषण की तारीफ की है। मगर कुछ खास नहीं कहता था अगणी। हरिशंकर ने ध्यान दिया- अगणी के भाषण से मजदूर उत्तेजित हो जाते थे और तालियों की गड़गड़ाहट शुरु हो जाती थी। मगर अगणी कुछ भी सॉलिड बात नहीं कहता था। यही है आजकल के भाषणों की प्रक्रिया। भाषण में कुछ नहीं कहा जाता। जो कुछ कहा जाता है, वे है कुछ रटे रटाए  उत्तेजक वाक्यांश। वही एक प्रकार का फॉर्मूला भाषण सभी देते हैं।
                हरिशंकर भाषण देने उठते समय निश्चित नहीं कर पाए थे, क्या कहेंगे। अगणी की तरह उत्तेजक भाषण देना उन्हें नहीं आता था। हेमबाबू ने भी आगे एक बार कहा था- तुमसे भाषण देने का काम नहीं हो पाएगा हरिशंकर। भाषण नहीं देने पर तुम नेता कैसे बनोगे? गायक अगर हारमोनियम पकड़ना नहीं जानता हो तो वह कभी भी गायक नहीं बन सकता। तुम अगर भाषण देना नहीं जानते हो और तुम्हारा भाषण सुनकर सभास्थल में तालियों की गड़गडाहट सुनाई न दे, तब तुम्हें नेता कहकर कौन बुलाएगा?
                हरिशंकर ने शुरु किया :-
                “बंधुगण ! आज हम सभी यहां इकट्ठे हुए हैं। आप सभी जानते हैं, हम सभी ने निश्चय किया है एक नया यूनियन बनाने के लिए। अब प्रश्न उठ सकता है, नया यूनियन बनाने की क्या आवश्यकता है, जबकि पहले से ही एक यूनियन मौजूद है। यह प्रश्न बिलकुल वाजिब है। यह प्रश्न सभी को पूछना जरूरी है। केवल यूनियन बनाना ही हमारा लक्ष्य नहीं है, बंधुगण। हमारा लक्ष्य है....
                लक्ष्य ? थोड़ा अटक गया हरिशंकर। हमारा लक्ष्य ? लक्ष्य क्याहै नया यूनियन बनाने का ? थोड़ा सा मुस्कराते हुए कहने लगा हरिशंकर : -
                “हमारा उद्देश्य है, अपनी स्थिति बचाए रखने की। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में पैदा हुई थी श्रमिक श्रेणी के भीतर एक नूतन चेतना। उन्होंने अनुभव किया था कि एक श्रमिक अपने श्रमलब्ध उत्पादन के ऊपर मालिकाना हक खो देता है और अन्य एक तीसरा पक्ष उत्पादन के ऊपर व्यवसाय कर मुनाफा कमाता है। उस तीसरे आदमी की कोई भूमिका नहीं है उत्पादन के क्षेत्र में। बंधुगण, मालिकों के शोषण से श्रमिकों की रक्षा करने के लिए ही जन्म हुआ है यूनियन का। यहाँ बहुत सारे लोग सवाल करेंगे- राष्ट्रीयकृत प्रतिष्ठान में तो और प्राइवेट कंपनी नहीं है। इसकी मालिक तो खुद सरकार है।
                इसलिए समाजवादी आदर्शों को मानने वाले एक देश की सरकार को पूंजीवाद की ओर ठेलना उचित है ? राष्ट्रीयकृत संस्थानों मं पूंजीवादियों के हाथ में सौपना सही बात है। मगर जो प्रबंधन-तत्र इन राष्ट्रीय संस्थाओं को चलाते हैं, वे ऑफिसर अपने कथनी और करनी में उन्नीसवीं शताब्दी के किसी पूंजीपति से कम नहीं है। वे लोग भूल गए हैं राष्ट्रीय उद्योग-धंधों के लक्ष्य। श्रमिकों के कल्याण की अपेक्षा अपने लिए उत्पादन वृद्धि ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वह उत्पादन वृद्धि भी देश की इच्छित वृद्धि नहीं है। बंधुगण, उनकी नौकरी में प्रमोशन की दृष्टि से ही वह वृद्धि महत्त्वपूर्ण है। इसलिए वे येन केन प्रकारेण प्रॉडक्शन बढाकर टार्गेट छू लेना चाहते हैं और जिसका फल भोगना पड़ता है हमारे श्रमिकों को। सुरक्षा के सारे #ियमों को ताक पर रखकर उनका खुले-आम उल्लंघन करना पड़ता है। कम तनख्वाह में किस तरह ज्यादा से ज्यादा काम निकाला जाए- इसके लिए उन्हें उलटा-पुलटा करना पड़ता है। नियम कानूनों का सरे आम उल्लंघन कर केवल वे उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं।
                अगणी ने उठकर आकर कान में कहा- भाषण गरम होना जरूरी है, नेताजी। ये सारी निरामिष नीति कथा कहने से भीड़ जुटेगी ? आप थोड़ा बहुत गाली-गलौच कीजिए, प्रोजेक्ट फिसर, जी.एम और अन्य लोगों को। तभी तो लोगों का इस तरफ झुकाव बढ़ेगा।
                हरिशंकर ने देखा, मीटिंग से लोग उठकर जाने के लिए तैयार बैठे हैं। गले साफ करते हुए कहना जारी रखा- आप लोगों को पता चल जाएगा, पहले जो यूनियन था कंपनी के जमाने का यूनियन- उस यूनियन का एक लडाकू चेहरा था। उस समय कंपनी मैनेजमेंट के सारे अन्याय, प्रतिशोध का हम ठीक ठीक जवाब देते थे। मगर अब जो यूनियन है, वह यूनियन है मैनेजमेंट का दलाल। मैनेजमेंट के द्वारा गढ़ा हुआ यह यूनियन खाली मैनेजमेंट के स्वार्थ को छोड़कर और क्या कर सकता है ?
                हरिशंकर का ध्यान गया, उसके भाषण से फिर भी किसी में उत्तेजना नहीं आई। किसी ने भी ताली नहीं बजाई। उसके भाषण के बीच में से ही लोगों ने उछलकर जाना शुरू कर दिया था। भाषण खत्म होने तक बहुत ही कम लोग बचे थे। इतने कम लोग कि देखकर हरिशंकर कामन खराब हो गया था। बहुत ही दुख के साथ संक्षिप्त में भाषण समाप्त किया हरिशंकर ने। केवल घोषणा कर दी उसने, अगणी होता के प्रेसीडेन्टशिप में एक नया यूनियन बनाने की। अगणी ने उठकर घोषणा की, इस नए यूनियन के प्रेसीडेन्ट के हिसाब से मैं हरिशंकर पटनायक का नाम जनरल सेक्रेटरी के लिए प्रपोज करता हूँ- आप लोग समर्थन करेंगे या नहीं ?
                लगभग तीस चालीस श्रोता लोग होंगे। उनमें से हरिशंकर ने देखा, पन्द्रह बीस आदमी वही लोग होंगे, जो उनके यूनियन में बॉडी मेम्बर होने की आशा लेकर आए थे। उन तीस चालीस लोगों के हाथ उठाने का समर्थन पाकर ही हरिशंकर निर्वाचित हो गया। आनुष्ठानिक रुप में काम चलाऊ एक्जिक्यूटिव बॉडी मेम्बरों के नाम पढ़कर अगणी ने घोषणा कर दी कि यूनियन का आनुष्ठानिक निर्वाचन दो तीन महीने के भीतर कर दिया जाएगा, मेंबरों की तालिका इकट्ठा करने के बाद। भाषण समाप्त होने के बाद अगणी ने विरक्त होकर कहा- आपने नेताजी, आज की मीटिंग को फ्लॉप कर दी। ऐसा कोई भाषण होता है? हरिशंकर हंसने लगा एक अप्रतिभ हंसी।
                शाम को सुनने को मिला हरिशंकर को। रिएक्शन शुरु हो गया था, सुबह की मीटिंग से। ध्रुव खटुआ दल के लोगों ने मारपीट शुरू कर दी थी। ओम प्रकाश का हाथ टूट गया था।
 







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