द्वितीय परिच्छेद


द्वितीय परिच्छेद
दृश्य इस तरह:
तीन लोग मिट्टी खोद रहे थे। उनका शरीर पसीने से तर-बतर हो रहा था। पन्द्रह साल का मंझला लड़का पास में बैठकर काम देख रहा था. हरिशंकर दूर में एक कटे हुए पेड़ की परित्यक्त तना-विहीन जड़मूल के ऊपर बैठा हुआ था थका हारा, शून्य-शून्य आकाश को देखते हुए। उसके पांव के पास में हिरण के बछड़े की लाश पड़ी हुई थी।
समय कितना हुआ होगा? हरिशंकर कलाई घड़ी पहनना भूल गए थे। सुबह से ही आकाश गिद्ध और कोहरे से भरा हुआ था। तब अंदाज से हरिशंकर समझ गए थे, अपराह्न हो गई है। दो भी बज सकते हैं, चार भी। हिरण मरा तो दोपहर के समय ही क्यों । उसके बाद कुछ घंटे बीत गए।
हरिशंकर हाथ बढ़ाकर हिरण को सहलाने लगा। अभी भी पीठ कितनी कोमल और मृसण लग रही थी। मंझला पुत्र कह रहा था, खाल निकालकर रखने के लिए। हरिशंकर ने उसे डांट दिया था। हिरण की खाल, फिर पीछे से मरा हुआ हिरण, खाल उतारकर रखना भीषण नृशंस लग रहा था, जैसे अपने मरे पुत्र की चमड़ी उधेड़ रहे हो।
वैसे हरिशंकर बहुत ज्यादा इमोशनल और सेंटीमेटल नहीं था। उनके राजनैतिक गुरू हेमकांत बाबू उन्हें जवानी के समय से ही सिखाते आ रहे थे, पॉलिटिक्स में आने के बाद तुम्हें अपने सारे इमोशन और सेंटीमेंट छोड़ने पड़ेंगे। हर समय प्रेक्टिकल होना पड़ेगा और अपनी स्वार्थ की बात ही सोचनी पड़ेगी। स्वार्थ को छोड़ कर और कोई बड़ा आदर्श नहीं है राजनीति में।
हेमाकांत बाबू की ये बातें बहुत प्रेक्टिकल थी, यह बात हरिशंकर जानता था। इसके अलावा, अभी इस पचास साल की उम्र में हरिशंकर अनुभव कर सकता था, उसका अनुभूति बोध किस तरह कम होता जा रहा था। पहले छोटी-छोटी बातों में भी बहुत इमोशनल हो जाता था वह। अभी ऐसी  और घटनाएँ मन के अंदर प्रतिक्रिया पैदा नहीं कर पा रही थी ।मगर, आज इस छोटे हिरण की मृत्यु से कितनी खाली-खाली लग रही थी उसे यह दुनिया। जैसे कि कुछ था, अब नहीं है। इस वयस  में-छोटे-छोटे दुख और सुख भी अर्थहीन होने की अवस्था। मगर ऐसा क्यों नहीं हो रहा था?
हिरण आया था एक वर्ष पहले। रेढ़ाखोल के जंगल से एक आदमी पकड़ कर लाया था दो- तीन महीने के इस हिरण को केवल सौ रुपए में बेच दिया था हरिशंकर को। तब हिरण केवल दूध पीता था। दूब घास खाना सीखा, उसके बहुत बाद। स्वयं हरिशंकर ने उसे दूब घास खाना सिखाया था।
सुनहरी पृष्ठभूमि पर सफ़ेद काले धब्बों से भरा सारा देह। दोनों आंखें बहुत निरीह और देखने से लग रहा था कि वह हिरण पृथ्वी के सारे चराचर दृश्यों को अवाक होकर देख रहा था। हिरण पहले पहल बहुत फुर्तीला और कूद-फांद कर रहा था, जैसे कि पृथ्वी पर भूकंप आ रहा हो और वह अपने पांव जमीन पर रखने से गिर जाता हो। हिरण लोगों को देखने से बहुत चमक जाता था, कूद-फांद करने लगता था । मगर हरिशंकर को वह बहुत अच्छी तरह पहचान जाता था। निडर होकर वह सामने आ जाता था और इस तरीके से मुंह घिसने लगता था, जैसे कि बिन मां का बच्चा। पिता के पास आकर दुलार खोजने के इधर-उधर घूम रहा हो।
हरिशंकर राजनीति में आने के बाद, जैसे नशे के आदी आदमी की तरह जी रहे थे। प्रेम, स्नेह, आवेग ये सारी चीजें वह अनुभव नहीं कर पा रहा था वह। कोयला खदान के ट्रेड-यूनियन के साथ उनका दीर्घ पच्चीस साल का संबंध था। पहले-पहल वह ट्रेड यूनियन में जाते थे, श्रमिक लोगों की उन्नति के लिए। मालिकों के शोषण से उनको बचाने के लिए।
ट्रेड-यूनियन में घुसने के बाद वह समझ गया था, सर्वहारों की एकता, शोषण- इन सबका ट्रेड-यूनियन राजनीति से बिलकुल भी  तालमेल नहीं था। असल में, यूनियन का धंधा ही राजनीति। और राजनीति का मतलब-एक उत्तेजना, एक नशा।
तीन लोग मिट्टी खोदते जा रहे थे। कितना समय हो गया था उनका काम खत्म नहीं हो रहा था? कितनी मिट्टी खोदेंगे? एक हिरण को गाड़ने के लिए कितना गहरा गड्ढा लगेगा? हरिशंकर ने एक बार और हिरण को सहलाया। डेढ़-दो वर्ष का अबोध जंतु। किसी दूर जंगल में अपनी मां को छोड़ कर आया था। हरिशंकर के पास उसे क्या चाहिए था? सुरक्षा, और दिन में दो बार दो मुट्ठी दूबघास का निरापद सुख? कटोरा भर दूध की संपन्नता? मिला क्या?
हिरण भी नाराज हो रहा था। एक बार गाली देकर थप्पड़ लगाया था हरिशंकर ने, दो दिन तक वह पास नहीं आया। जंतुओं के अंदर भी आदमियों की तरह स्नेह, प्रेम, अभिमान और क्रोध होता हैयह आविष्कार कर सिहर उठा था हरिशंकर उस दिन। मझले पुत्र ने नाम दिया था हिरण का- 'जली''मांस के विलाप' (एक प्रसिद्ध ओड़िया उपन्यास का नाम)  के अनुसरण से, 'जली'। वह कहता था- और केवल एक कुत्ते की जरूरत, उसका नाम रखेगा डोरा। हरिशंकर ने मजाक- मजाक में कहा था- एक दिन एक मैनेजर साहिब आएगा और हिरण को मार कर खा जाएगा।
हरिशंकर जानता था, कोयले की खदान के किसी मैनेजर तो दूर की बात, डिप्टी सी॰एम॰ई॰ या जनरल मैनेजर भी साहस नहीं करेगा यूनियन के भूतपूर्व सेक्रेटरी के हिरण के बच्चे को मार कर खाने की। हरिशंकर अपने को हमेशा से एक इम्पोर्टेण्ट आदमी समझता आया था। यूनियन के सेक्रेटरी के समय भी अपने आप को इम्पोर्टेण्ट समझता था। मगर उससे भी कोई इम्पोर्टेण्ट है- वह है समय। गोरे साहब लोगों की तरह दुर्दांत प्रतापी समय। हरिशंकर के अचानक मन में आया, हिरण को मिट्टी में गाड़ने वाला दृश्य देखना उसके लिए मर्मान्तक होगा। उसका वहां न रहना ही उचित समझा और मझले पुत्र को बुलाकर कहा-"तुम लोग हिरण को गाड़ देना, मैं जा रहा हूँ।"
कह कर उठ कर चला गया। पहाड़ियां लम्बी होती जा रही थी नीचे की ओर। उसके नीचे उसका घर, खुद का घर। मझले पुत्र ने नाम दिया था शांति-कानन। मिट्टी और पत्थर की जुड़ाई से बनी दीवारों से बना तीन कमरों वाला खपरैल घर, आंगन, कुआँ- इन सभी से बना उसका घर, कोयला खदान के नजदीक, म्यूनिसिपालिटी एरिया से आरंभ होने वाले अंचल में। बड़ा बेटा, जो अब बैंक ऑफिसर है हैदराबाद में, ने पूछा- 'इस तरह सुनसान इलाके में घर क्यों बनाया है, पापा?"
हरिशंकर ने कभी भी ऐसा प्लान और प्रोग्राम नहीं बनाया था घर के बारे में। हेम बाबू ने मन्त्री बनने के बाद, इस अनाबादी सरकारी जमीन तहसीलदार को कहकर हरिशंकर के नाम पर करवा दी थी, उनके मन्त्रीत्व के उपहार के रूप में। पांच हजार रुपए देते हुए कहा था- "घर बना लेना हरिशंकर। सारे जीवन तूने अपने लिए कुछ भी नहीं किया।"
उस दिन कृत-कृत्य हो गया था हरिशंकर। बड़ा बेटा, जिसे हेम बाबू बिलकुल पसंद नहीं आते थे, को हरिशंकर ने कहा- देखा तुमने, हेम बाबू मुझे कितना प्यार करते हैं?”
बड़े बेटे ने अवज्ञा से उत्तर दिया प्यार करते हैं?” उनके मन्त्री बनने के बाद उन्होंने बेंगलोर में एक स्टार होटल खरीदा है। एक टोयाटा कार खरीदी है। भुवनेश्वर में एक कोठी बनाई है। उनकी दूसरी पत्नी कहलाने वाली रखैल के लिए बहुत गहने गढ़वाए हैं, कितना बैंक बैलेन्स रखा, कितना काला धन किस किस विदेशी बैंकों में छुपाकर रखा है, वह बात छोड़ो। आपको दिया क्या? एक अनाबादी सरकारी जमीन और पांच हजार रुपए।
हरिशंकर तब तक यूनियन से किसी तरह नहीं निकाले गए थे। हेम बाबू के मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा थी। हेम बाबू ने कुछ खा लिया, अपनी कुछ सम्पत्ति बढ़ा ली, तो उसमें असंतुष्ट होने की क्या बात है, उसे समझ में नहीं आ रहा था। तब तक ऐसा लग रहा था, हेम बाबू अपने भाई  हैं। हेम बाबू की संपत्ति के ऊपर न जाने क्यों एक निजस्व अधिकार बोध महसूस हो रहा था।
हरिशंकर का ध्यान टूटा किसी के नमस्कार करने से । सिर ऊपर उठाकर देखा, तो नजर आया गिरधारी सामने खड़ा था, विनती की मुद्रा में। गिरधारी ने स्टेशन बाजार में एक होटल बनाया है। पहले जब वह इस जगह आया था, बहुत गरीब था। एक ठेले पर सब्जी बेचा करता था। बाद में, केबिन किराए पर लेकर पान की दुकान बनाई। उसके बाद एक होटल, अब बाज़ार में दुमंजिला मकान बना चुका है। वीडियो खरीद कर वह टिकट से फिल्म शो दिखा रहा है, उसमें उसे काफी अच्छी इनकम हो रही है, सुनने में आया है।गिरधारी ने पूछा-"सुना है आपका हिरण मर गया है? आह! बहुत अच्छा हिरण था।"
हरिशंकर ने कुछ नहीं कहा। गिरधारी का कुछ मतलब था अवश्य। नहीं तो एक हिरण की मृत्यु पर शोक जताने के लिए इतना दूर से नहीं आता वह। इसके अलावा, घर पहुंच कर, हरिशंकर को अनदेखा कर, इस पहाड़ी की तरफ पहले गया नहीं होता।
गिरधारी ने बहुत विनम्रता से पूछा- कैसे मर गया हिरण का बछड़ा? कुत्ते ने मार दिया?"
आह! मुंह से चूं-चूं शब्द निकलने लगे गिरधारी के। ये सारे निरीह जन्तु केवल माया बढ़ाते हैं। मैंने देखा है कि हिरण या तोते, ये दोनों जीव हमेशा पालतू बन कर नहीं रह पाते हैं। मेरे दादाजी को हिरण पालने का शौक था। मगर एक भी हिरण जिंदा नहीं बचा। कूद-फांद करने से कहीं गिर गए, कहीं टकरा गए, कहीं कांटों की तारबंदी से कटकर मर गए।
हरिशंकर अपने घर के आंगन में लौट आए। माँ दीवार का सहारा लेकर बैठी थी, आकाश की तरफ देखते हुए हरिशंकर को देख कर कहने लगी, "हिरण को गाड़ दिया? पास वाली बस्ती के लड़के आए थे, हिरण को खरीदने के लिए। मरे हुए हिरण का मांस खाया जाता है क्या? मुझे तो नहीं मालूम। इसके अलावा कुत्ते ने काटा था, जहर फैल गया होगा शरीर में। लड़के हठ कर रहे थे उसका मांस बांटने के लिए। मैंने कहा- गाड़ने के लिए ले गए हैं। तेरा नाम सुनकर कोई आगे नहीं आया।"
हरिशंकर ने उस बात का कोई उत्तर नहीं दिया। छोटे बेटे को बुलाकर कहा,"जरा देखो, चाय होगी?"
गिरधारी ने विनम्रता से कहा- "चाय की क्या जरूरत है? मैं घर से चाय पीकर आया हूँ।" "ठीक है। थोड़ी सी चाय में क्या है?" हरिशंकर टिन के चेयर में बैठकर दूर की ओर देखने लगा। पहाड़ी के ऊपर तीन आदमी और रूना कोहरे में अस्पष्ट दिखाई दे रहे थे। क्या कर रहे हैं वे? गड्ढा खोदना अब तक पूरा नहीं हुआ? हिरण को गाड़ दिया उन लोगों ने?
गिरधारी ने आंगन की ओर देखते हुए कहा, "कुँआ कब खुदवाया है? सीमेंट की चांदनी करवाए या नंद लगाएंगे? कुछ कर दीजिए, नहीं तो बारिश के दिनों में पहाड़ी का पानी आकर कुएं को भर देगा।"
हिरण को अपने हाथ से गाड़ना उचित था हरिशंकर के लिए? हरिशंकर को लगा, जैसे हिरण न होकर, छोटे बेटे कुना के शव को गाड़ने के लिए चार आदमी पहाड़ी के ऊपर मिट्टी खोद रहे हैं। बाद में सचेतन हो गया हरिशंकर। छि:, छि:, घोर अमंगल बात है यह।
 गिरधारी ने कहा- "यह घर बनाया है, अच्छी कोठी बना लेते? आप इतने दिनों तक यूनियन सेक्रेटरी में रह कर कुछ नहीं कर पाए। अब देखिए, ध्रुव बाबू को। किस तरह एक मोटर साइकिल बना ली अपने लिए, केवल छः-सात महीने के सेक्रेटरीशिप के भीतर। आपने जब यूनियन छोड़ा था, बाइस हजार रुपए छोड़ कर आए थे। अब एक भी पैसा नहीं है। अठारह हजार रुपए सेंट्रल कमेटी को देना था। चंदा के लिए। इतना भी नहीं दिया जा रहा है- यहाँ रुपए खत्म।"
गिरधारी इन सारी बातों को कैसे जान गया? हरिशंकर को पता है, गिरधारी बहुत चालाक आदमी है। बारिश जिस तरफ, छाता उस तरफ करने वाला आदमी है। हेम बाबू एक बार चुनाव हार गए थे, उनकी पहली पत्नी ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। दूसरी पत्नी से शादी करने के औचित्य के संबंध में। उस समय जिला परिषद का सिस्टम था। उस जिला परिषद के चुनाव में भी हार गए थे हेम बाबू। चारों तरफ स्कैंडलाइजेशन हो रहा था हेम बाबू को लेकर। कोयला खदान का प्रबंधन भी हेम बाबू को गुरुत्व नहीं दे रहा था। गिरधारी उस समय होटल में यूनियन के नाम का उधार खाता चलाता था। मार्केट में यूनियन के लोगों का अड्डा जमाते समय आवश्यक चाय-नाश्ते की सप्लाई करता था वह। हेम बाबू भी अपने नजदीक गांव के घर भी नहीं जाते थे। वह घर था पहली पत्नी के मालिकाना हक में। दूसरी पत्नी से भी उस समय मुलाकात नहीं हो रही थी। दूसरी पत्नी उस समय ब्रह्मपुर में लेक्चरर थी और हेम बाबू की एक लड़की पैदा होने के बाद उसे पता चला कि उनके पहली पत्नी भी है, जो हर समय संपत्ति की अधिकारी है और यह बात इतने दिनों तक हेम बाबू ने छिपाकर रखी थी। हेम बाबू के उन दुर्दिनों में गिरधारी ने एक दिन हरिशंकर को बुलाकर कहा था- "और नहीं हो पाएगा, हरिशंकर बाबू। जितना भी हो, मैं बिजनेस कर रहा हूँ। महीने-महीने बाकी रखने से मेरा होटल कैसे चलेगा? उसके अलावा, अपने यूनियन बिल की बात मत पूछो। हेम बाबू जैसे चरित्रहीन लोग मेरी होटल में उठना बैठना करते हैं, उससे मेरी ओर मेरे होटल की कितनी बदनामी हो रही है, जानते हो? अच्छे लोगों ने मेरी होटल में आना छोड़ दिया है। नहीं हरिशंकर बाबू, आप कहीं और अड्डा जमाइए, मुझे मुक्त कर दीजिए।"
उस दिन से गिरधारी के प्रति कभी भी श्रद्धा नहीं रख पाया हरिशंकर। वही गिरधारी अब उसके सामने बैठकर कह रहा है--मैं भुवनेश्वर गया था, वहां हेम बाबू के साथ मुलाकात हुई। बिना किसी उद्देश्य से गिरधारी वहां नहीं आया था, हरिशंकर ने पहले से ही अनुमान कर लिया था। हेम बाबू का प्रसंग उठाने का अर्थ ही उसकी भूमिका अदा करना था। किन्तु क्या उद्देश्य हो सकता है गिरधारी का? किस तरह का स्वार्थ? हरिशंकर ने अंदाज लगाने की कोशिश की, मगर नहीं कर पाया।
हेम बाबू ने कहा, हरि बहुत स्वार्थी है। यूनियन को मजबूत बनाने के लिए मैंने ध्रुव को सेक्रेटरी बनाया या नहीं, हरिशंकर पूरी तरह हाथ धोकर विरोधी बन गया। विरोधी बन गया? मैंने तो हेम बाबू के विरोध में कुछ भी नहीं किया गिरधारी बाबू।
आः, मैं नहीं जानता क्या है यह बात। फिर भी हेम बाबू, जो कहते हैं, अपने स्वार्थ के सिवा कुछ नहीं जानते। कह रहे थे, हरिशंकर मुझे टक्कर देगा तो ठीक नहीं होगा। मैंने पूछा, ठीक नहीं होगा मतलब? आप क्या कर लेंगे? आपको पता नहीं है क्या आप जिस मन्त्री पद के गुंबज पर खड़े हैं, उसकी नींव की ईंट हरि बाबू हैं? कल जब आप वोट के लिए आओगे अपनी निर्वाचन मण्डली को, हरिशंकर बाबू का मोरल सपोर्ट नहीं होने से जीत पाओगे क्या? हरिशंकर जानता था, गिरधारी की ये सारी बातें एकदम मिथ्या है। उसने हेम बाबू के पास ये सारी बातें कभी भी कही नहीं होगी। बल्कि हेम बाबू के पास वह कृत-कृत्य होकर द्रवीभूत हो गया होगा और जरूरत पड़ी होगी तो हरिशंकर की बुराई भी कर ली होगी। उन्होंने कुछ भी नहीं कहा होगा, सिवाय अवज्ञा की हंसी के। हेम बाबू ने कहा था, हरिशंकर के लिए मैंने क्या नहीं किया और आखिर में उसने क्या किया? सामान्य सेक्रेटरीशिप नहीं देने से वह दूर हो गया, इतना स्वार्थी है वह? सामान्य स्वार्थ? मन ही मन उत्तेजित हो गया था हरिशंकर। उसके सामने मानो गिरधारी नहीं बैठा हो, बैठे हो खुद हेम बाबू। सामान्य स्वार्थ इस सेक्रेटरीशिप से निकाल लेगा? कौन था उस सेक्रेटरीशिप के पीछे? सेक्रेटरीशिप को बेच कर मैं किसी म्यूनिसिपालिटी का चेयरमैन बना नहीं, शासक दल के जिला या प्रदेश स्तरीय कौन-सा संपादक या एक्जिक्यूटिव मेंबर बना नहीं। सेक्रेटरीशिप के बल पर अपने लोगों को कोलियरी में भर्ती करवाया नहीं। अपना बैंक बैलेंस कोठी बनाई नहीं। मगर ये सारी चीजें मेरे पास सामान्य बातें थीं। मैं कर सकता था। करने का रास्ता जैसे मुझे मालूम नहीं था। तथापि कुछ नहीं किया क्यों? क्योंकि यूनियन में मेरे पास... न था। ऊपर उठने की सीढ़ी नहीं थी। था मेरा सपना। मेरी साधना। पच्चीस साल से उस यूनियन को मैंने सींचा था अपना यौवन देकर, खून-पसीने से। पता नहीं था, मेरी पत्नी पागल है? मगर वह पागल क्यों हुई? यूनियन के नशे में मैं इतना व्यस्त रहता था, उसे मिलने वाला गृहस्थी प्रेम और साहचर्य नहीं दे पाया। मेरे बड़े पुत्र को छोड़ कर बाकी सभी निकम्मे हो गए। क्योंकि बड़ा बेटा मौसी के पास पढ़ता था, इसलिए मनुष्य बन गया। बाकी बेटों पर मैं सही ध्यान नहीं दे पाया। पिता के हिसाब से उन पर ध्यान नहीं दिया। यूनियन के लिए मैंने अपने स्त्री, बच्चे, परिवार, धन-दौलत सब छोड़ दिया था। क्योंकि बहुत ही दुर्दिन देखे थे यूनियन बनाने में। बहुत संघर्ष किया था उसके लिए। नेशनलाइजेशन के पहले कोयला खदानों के मालिक हमें पूरी तरह से शत्रु समझते थे। नेशनलाइजेशन के बाद अवस्था बदल गई। यूनियन के लीडरों को कोयला खदान के प्रबंधन से सम्मान मिलने लगा। हमने प्राइवेट जमाने में जिस संग्राम भूमिका में काम किया था वह बदल गई। हम विद्रोही से राजा बन गए। राजा होने के बाद हम अपने सपने, साधना, सार्थकता का स्तम्भ यूनियन को तोड़-फोड़ कर खाना शुरू किया और उस स्वार्थ की खींचतान में मैं हार गया था। मुझसे यूनियन छुडवा लिया गया। न अन्य कोई दूसरा यूनियन आकर हमारे यूनियन पर कब्जा करने लगे। हमारे यूनियन के भीतर अशांति पैदा होने लगी, और हेम बाबू, आप पधार कर विचारक की भूमिका में कह कर चले गए, हरिशंकर से सेक्रेटरीशिप छुड़वाकर ध्रुव खटुया जैसे आदमी के हाथ में दी जाए, जिसकी आज तक यूनियन में किसी भी तरह की सिन्सयरिटी नहीं थी। जिसकी सुविधावादी भूमिका को छोड़कर कोई भी करेक्टर आंखों के सामने नहीं आ रहा था। हेम बाबू, आपने यह राय पहले से क्यों नहीं दीपच्चीस साल पहले? उसी दिन यह निष्पत्ति सुना दी होती तो मेरी पत्नी पागल नहीं होती, मेरे बच्चे बालुंगा(निकम्मे) नहीं होते। एक साधारण गृहस्थ की भूमिका में अपने आपको बहुत ज्यादा सुखी इंसान बना देता, हेम बाबू।
हरिशंकर का ध्यान भंग हुआ। उसके सामने हेम बाबू नहीं थे, था गिरधारी। कह रहा थाआपने उस समय तक हेम बाबू को नहीं पहचाना था, मगर मैं उन्हें पहले से जानता था। वह किसी के नहीं हैं। जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद भी कर देते हैं। छोड़िए हरिशंकर बाबू, अभी आपको गर्व के साथ खड़ा होना पड़ेगा। हेम बाबू को दिखाना पड़ेगा, आप कौन हैं, आपकी कैपेबिलिटी क्या है? मैंने भुवनेश्वर में सुना था, हेम बाबू चाहते हैं आगामी म्यूनिसिपालिटी चुनाव में द्विवेदी को  चेयरमैन करना। कहिए, उस बिहारी साले की योग्यता क्या है? खाली एक दारू की दुकान के सिवाय उसके पास और क्या है? सेक्रिफाइस? सिन्सियरिटी? खाली मन्त्री के चाहने से क्या रामा दामा श्यामा को चेयरमैन बना देंगे? मैंने सोचा है कि मैं स्वयं चेयरमैन के लिए खड़ा होऊंगा। आप मुझे सहायता नहीं करेंगे? मैं अवश्य आपका आशीर्वाद लेने के बाद ही प्रतियोगिता में उतरूंगा।
हरिशंकर अब समझ गया गिरधारी के अकस्मात आने का कारण, विनम्र होकर कृत-कृत्य होकर बातें करने का मूल कारण। कहने लगा- नहीं गिरधारी बाबू, मैं अब और राजनीति में नहीं हूँऔर मुझे उसमें मत खींचिए।
क्या कह रहें हैं आप? आप राजनीति छोड़ देंगे? हेम बाबू से डर कर राजनीति छोड़ देंगे? आप नहीं जानतेआपके अंदर कितनी शक्ति है? आपके पीछे कितने लोग हैं? आप एक बार सीना- तान कर आगे चल कर तो देखिए, हेम बाबू के शरीर से नेतृत्व की राज-पोशाक खिसक जाएगी।
मैं बहुत ही साधारण आदमी हूं गिरधारी बाबू। मुझमें कोई कैपेबिलिटी नहीं है, मुझे पता है मैं राजनीति के लिए पूरी तरह से अनफिट हूँ। यदि राजनीति के लिए तैयार होता तो मैं कब से हेम बाबू को छोड़ कर खुद बहुत ऊपर उठ जाता। क्योंकि मेरे सामने हेम बाबू बहुत बार ऊपर उठे हैं और नीचे भी गिरे हैं। राजनीति अगर करनी होती तो मैं खुद उनके ऊपर चढ़ जाता। असल में, मैंने एक सपना देखा था, पच्चीस साल के सपनों को लेकर। पच्चीस साल के सपने के टूटने के बाद मैंने देखा कि मैं एक साधारण इंसान हूँ। कोयला खदान के जनरल मैनेजर कार्यालय के स्टॉक  वेरीफायर को छोड़ कर और कुछ नहीं हूँ।
कुना ने आकर दो कप चाय दी। खूब स्वादिष्ट चाय। चीनी कम थी। हरिशंकर को याद आ गया, घर में चीनी नहीं थी, माँ ने पहले से ही दो तीन बार उसको कहा था। कहाँ से उसने चीनी जुगाड़ की? पड़ोसी घर से?
गिरधारी कहने लगा- आप सोच कर देखिए, इतनी जल्दी टूटने का कोई अर्थ नहीं है। पॉलिटिक्स एक कुश्ती का खेल है, दाँव-पेच इधर-उधर होने से नीचे चित्त पर होना पड़ेगा।
हरिशंकर दूर की ओर देखने लगे। पहाड़ी के ऊपर चार आदमी अब तक क्या कर रहे हैं? कितनी मिट्टी खोद रहे हैं? कब्र खोदी है या नहीं? हिरण को गाड़ते समय क्या हरिशंकर बाबू की अनुपस्थिति हिरण की आत्मा को नाराज कर रही है? जिसे एक बार थप्पड़ मारने से वह नाराज हो गया था। हरिशंकर देख रहा है, कोहरे के अंदर चार काली छाया। क्या कर रहे हैं वे अब तक? समय कितना हुआ होगा?
 

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