चतुर्दश परिच्छेद
चतुर्दश परिच्छेद
ट्रेक्शन देकर बैठी हुई थी अनीता। गर्दन में एक पट्टा लगा हुआ था, जिससे एक रस्सी खींची हुई थी ऊपर की तरफ। ऊपर छत से झूल रही कड़ी में लटकी हुई थी एक पुली।पट्टे से जाने वाली रस्सी पुली के
भीतर से होती हुई नीचे की ओर लगी हुई थी। नीचे दो ईंटें बंधी हुई थी। देशमुख अनीता
के गर्दन में ट्रेक्शन बांधकर घड़ी देखने लगा। आठ के ऊपर मिनट कांटा आने पर
ट्रेक्शन खोलना पड़ेगा। कुछ दिन पहले ही अनीता को स्पांडिलायटिस दर्द
की शिकायत हुई थी। अस्पताल में एक्स-रे कराया गया था। तरुण, उत्साही और ज्यादा प्रशंसा करने के कारण गदगद हुए डॉक्टर ने बहुत ही कम समय
में जांच कर ली, अनीता की। उसके बाद कहा था उसने, “सर्विकल रिब”।
“सर्विकल रिब” - इतनी टेक्नीकल बात समझ में नहीं आई थी देशमुख को। भले ही, डॉक्टर ने एक्स-रे प्लेट दिखाकर समझाना चाहा था उसे, यह देखिए, हमारे इस जगह पर छः हड्डियाँ रहनी चाहिए। और मैडम के हैं, और दो एक्स्ट्रा हड्डियां।
देशमुख ने उस समय नया-नया चार्ज लिया था मि. मिश्रा से। बहुत सारे काम बचे हुए
थे। बिलकुल भी फुर्सत नहीं थी उसे। इधर अनीता दर्द से पीड़ित। देशमुख नहीं जानना
चाहता था सर्विकल रिब क्या होती है। अनीता के बीमार होने का मतलब उसका घर, उसका संसार सारा अस्त-व्यस्त हो जाना। डॉक्टर ने कहा था, “आप बड़े डॉक्टर को दिखाइए। कटक में
डॉ.तेजराय हैं, भारत के जाने-माने डॉक्टर।”
“मैं डॉक्टर कुलकर्णी को दिखा सकता हूँ ? नागपुर का सुविख्यात आर्थोपेडिशियन। मुंबई, पुणे और नागपुर
में सप्ताह में दो बार क्लिनिक में आते हैं। हमारे महाराष्ट्र में उनका बहुत बड़ा
नाम है।
वह डॉक्टर, उसे डॉ. कुलकर्णी नहीं जानता था, फिर भी वह राजी हो
गया था। देशमुख अनीता को लेकर नागपुर चला गया। उसके लिए बुर्ला या कटक की तुलना
में नागपुर ज्यादा सुविधाजनक था। अवश्य, उस समय उसे छुट्टी
लेने में बहुत परेशानी हो रही थी और जी.एम. का चेहरा गंभीर हो गया था, उसके छुट्टी लेने की बात सुनकर। फिर भी बाध्य होकर नया-नया चार्ज लेते
ही सारी चीजों को नए तरीके से संभालते समय इस तरह छुट्टी लेकर वह डॉ. कुलकर्णी के
पास चला गया। डॉ. कुलकर्णी एक्स-रे की प्लेट देखकर आश्चर्य से कहने लगे, “किसने कहा सर्विकल रिब ?” डा.कुलकर्णी ने एक्स- देखते हुए कहा, “देखिए न, छः रिब तो हैं।” आपकी मिसेज का स्पांडिलायटिस है, जो सामान्य इंजेक्शन, टेबलेट के साथ
ट्रेक्शन लेने से ठीक हो जाएगा।
उस दिन से अनीता को पन्द्रह मिनट ट्रेक्शन देना
पड़ता था। पहले सात दिन एक ईंट रखी जाती थी, और फिर पांच दिन बाद सात
दिन के लिए दो ईंटें रखी जाएगी। डा. कुलकर्णी से मिलकर आने के बाद ही ध्रुव खटुआ
के दल ने स्ट्राइक का आह्वान किया था। माइन्स की स्ट्राइक और ट्रेक्शन देने का काम, दोनों एक साथ चल रहे थे। देशमुख टेंशन में रहता था उस समय और अनीता ट्रेक्शन
के कष्ट में।
ध्रुब खटुआ की स्ट्राइक के बाद आ गया था हरिशंकर का आमरण अनशन। आज तीन दिन हो
गए थे, वे लोग जी.एम. ऑफिस के सामने टेंट लगाकर बैठे हुए थे। रात-दिन माइक पर गाने, भाषण, प्रचार और नारेबाजी हो रही थी।
सबसे ज्यादा देशमुख को बेचैन कर रहा था, हरिशंकर का यह अनशन।
ध्रुव खटुआ की स्ट्राइक से भी इतना टेंशन नहीं हुआ था। हर समय मन में यही आता था
कि कोई आदमी बिना खाए-पिए बैठा हुआ है। ऑफिस में काम करते समय, ऑफिसरों को अपनी दायित्वहीनता के लिए गाली देते समय, अंडरग्राउंड
इंसपेक्शन के लिए जाते समय या जी.एम. के साथ महत्त्वपूर्ण मीटिंग करते समय, न ही तो, किसी भी वी॰आई॰पी॰के साथ जी.एम. के आतिथ्य में आयोजित व्यक्तिगत रात्रिभोज में बैठते समय देशमुख
की नजरों में दिखाई
देने पड़ता था, हरिशंकर पटनायक। उसकी हिम्मत की दाद देनी
पड़ेगी। भीतर ही भीतर अपमानित और आहत अनुभव कर रहा था वह। जैसे कि जबरदस्ती अपना काम
निकालना चाहता था हरिशंकर पटनायक। जैसे कि ब्लैकमेल किया जा रहा हो देशमुख को। मगर
वह निरुपाय था।
जी.एम. को बार-बार हस्तक्षेप करने का अनुरोध करना देशमुख को खराब लग रहा था।
फिर भी सब कुछ जानकारी देनी पड़ रही थी। हर समय उनके पास जाते समय हीन भावना से टूट
जाता था वह। जी.एम की डिप्लोमेटिक हंसी के सामने उसे असहाय लगने लगता था। फिर यह
कैसा क्रीतदास वाला गर्व देशमुख का ! वह भारत सरकार की एक संस्था में उच्च पदस्थ
अधिकारियों मे एक था मगर उसके हाथ कितने लाचार थे। उसके गले में किसी ने लगा दिया
था एक अद्भुत साइलेंसर, जिससे उसे अपने
शब्द, वाक्य और अक्षरों के उच्चारण भी उसे अपरिचित प्रतीत होते थे। उसके मेरुदंड में
लग गई थी घुन और स्पांडिलायटिस।
अनीता का स्पांडिलायटिस। उसके कमर में दर्द की वजह से उसका हाथ भी नहीं उठ रहा
था, उसकी अव्यक्त गहरी पीड़ा के बावजूद भी वह उसे जी.एम. के सौजन्यतामूलक
रात्रि भोजन में ले गया था।वह डिनर था उस परिवार का। कामर्शियल टैक्स ऑफिसर को
सपरिवार बुलाया था जी.एम. ने। जिसका उद्देश्य था, ओड़िशा सरकार का
बकाया लाखों रुपयों का ऋण कम करवाने के लिए रिव्यू
करने का अनुरोध करना था। जी.एम. ने कहा था फाइनेंस मैनेजर को रात्रि-भोजन के आयोजन
के लिए। हम तो उन्हें रुपये नहीं दे सकते हैं, उत्कोच के रूप में। फिर भी अगर वह जो भी चाहते है, अन्य उपहारों के
रुप में दिया जा सकता है। अगर वह किसी अनुष्ठान हेतु चंदा मांगते हैं तो हम अपने
कान्ट्रेक्टर लोगों से चंदा वसूल कर दे सकते हैं। फिर भी इन सारी बातों के बारे
में सीधी बातें करना अनुचित है। पहले उन्हें बुलाया जाए रात्रि भोजन के लिए। और
फिर बातचीत के दौरान उन्हें परख लिया जाए। उसके बाद आप लोग तो अनुभवी हैं। आपके ऊपर
ही सब-कुछ निर्भर करता है, विभिन्न यूनिटों
के डिप्टी सी.एम.ई. लोगों को बुलाकर बातचीत कर ली जाए। सी.टी.ओ. को पूछा जाए-
वह और किसी के साथ मुलाकात करना चाहेंगे ? उन्हें भी बुला दिया जाए।
“तुम देख रहे हो मेरी यह पीड़ा। मैं एक पल के लिए स्थिर नहीं रह सकती मैं किसी
सी.टी.ओ. के लिए आयोजित डिनर में जाऊंगी ?”
अनीता बहुत इगोस्टिक महिला थी। मगर कैसे समझाएगा देशमुख
अपनी असहायता ? कैसे समझाएगा उसे सी.टी.ओ
की पत्नी का साथ देने के लिए ? मिसेस
जी.एम. के नेतृत्व में विभिन्न डिप्टी सी.एम.ई. की पत्नियों की उपस्थिति कितनी आवश्यक होती है।
अनीता की अनुपस्थिति से मिसेस जी.एम. को केवल गुस्सा ही आएगा, ऐसा नहीं है, बल्कि मि. जी.एम. भी इसे प्रेस्टिज इशू बना लेंगी। देशमुख के इस
विपत्ति के समय में जी.एम. का आशीर्वाद कितना जरूरी है, कैसे समझा पाएगा ?
ऐसे भी मिसेस जी.एम. और अनीता का अच्छा संबंध है। अनीता ने फोन भी किया था, “मैडम, मुझे स्पांडिलायटिस का दर्द हो रहा है। डिनर में क्या आना मेरा एकदम जरूरी है ?”
उस तरफ से फोन पर मिसेज जी.एम. की आवाज सुन रहा था देशमुख, “तुम आओगी न अनीता ? नहीं आने पर कैसे
होगा ? दर्द के बारे में
कह रही हो ? दवाई खाकर आना। ईबुप्रोफेन की
टेबलेट लेने से बिल्कुल दर्द नहीं होगा। मुझे एक बार डॉक्टर ने दी थी, मेरे कमर-दर्द के
समय। बहुत अच्छी दवाई है। मैं खोजती हूं, मेरे पास एकाध
होगी।”
“बहुत दवाई ले चुकी हूं, मैडम। एक पल भी
बैठना मेरे लिए मुश्किल है।” मिसेज जी.एम. ने
उसकी बात को अनसुना करते हुए कहने लगी, “क्या-क्या आइटम
बनाएंगे, अनीता ? मछली-कटलेट, अंडा-करी, चिकन, एक रायता, आलू-कटहल की सब्जी, फ्राइड-राइस, फ्रूट सलाद के साथ कस्टर्ड। अच्छा बताओ, चपाती बनाना है या
पूरी या फिर चोले-भटूरे बनाना है ? चोले-भटूरे हमारे गेस्ट हाऊस का कुक नहीं बना पाएगा, कह रहा था। किंतु
मिसेस फाइनेंस मैनेजर कह रही थी कि वह एक अच्छे कुक को जानती है। उसे बुलवाकर
चोले-भटूरे बनवा सकते हैं।”
फोन को रख दिया था अनीता ने। आंसुओं से आंखें छलकने लगी थी। वह कहने लगी, “डेम योर सर्विस। आइ किक इट।”
स्पांडिलायटिस के दर्द से अनीता की आंखों में आंसू आ गए। उन आंसुओं में बह गया देशमुख का सारा
स्वाभिमान और पैदा हो गया उसमें जालना शहर के उसी पुराने जमाने के कोठी के अंधेरे कमरे के
प्रति घृणा, देशमुख का अनीता के प्रति मोहहीन विकर्षण।
डिनर-मीटिंग की सबसे उपयुक्त जगह है, जहां अनशन के बारे
में जी.एम. के साथ बातचीत की जा सकती है, यह देशमुख की
धारणा थी। इसी स्वार्थ के कारण देशमुख अनीता को जबरदस्ती वहां ले जाना चाहता था।
पाट साड़ी पहन अच्छे मेकअप के साथ। अपनी जीप में बिठाकर ले जाते समय उसकी गर्दन में
इतना दर्द हो रहा था कि वह अपना सिर भी नहीं हिला सकती थी। देशमुख धीरे-धीरे खुद
गाड़ी चला रहा था, अनीता को कहते हुए, “प्लीज अनीता। थोड़ा
धीरज रखो। मेरी थोड़ी मदद करो।”
अनीता गुस्से में, क्षोभ में, पीड़ा में देशमुख
की ये सारी बातें नापसंद कर अपने होठों को दांतों से भीच लिया था। आंखें आंसुओं से
छलक रही थी। सब-कुछ जानने के बाद भी देशमुख चुपचाप खड़ा था निर्भयता से। ये बातें
कोई समझ नहीं पाएगा। किसी को कहा नहीं जा सकता है इन सारी असहायताओं को ? किस से कहा जाए, अनीता के स्पांडिलायटिस का दर्द होने के बावजूद ऐसी अर्थहीन डिनर की मीटिंग
एटेंड करने की यंत्रणा- जिसमें देशमुख और अनीता की उपस्थिति कोई माएने नहीं रखती
है। केवल एक बाध्यता। उस मीटिंग में सी.टी.ओ. बताएंगे
मुद्रास्फीति की बातें, राज्य और केन्द्र
की राजनीति, लोक-संस्कृति और आर्ट-फिल्मों की चर्चाएं और बाकी लोग मंत्रमुग्ध होकर उनकी
बातों में सम्मति जताएंगे। सी.टी.ओ. कहेगा, “यहाँ लकड़ी सस्ती मिलती है, है ना? कितनी मात्रा में जंगल काटे जा रहे हैं? कोलियरी के लिए तो
बहुत सारा जंगल साफ हो गया। दो साल पहले मैं यहां आया था। पहले जहाँ मैंने देखे थे
घने जंगल, वहाँ अब दिखाई दे रहे हैं खाली मैदानों की जमीन- जहाँ आपकी ओपन कास्ट खदान....”
जी.एम. कह रहा होगा, “... लेकिन हमने
वृक्षारोपण कार्यक्रम में सत्तर लाख पेड़ लगवाए थे गत वर्ष।”
सी.टी.ओ. कहेगा- “ये सारे सरकारी
पेड़ कभी बचे हैं। हमारे रेवन्यू विभाग वालों ने मुझे वृक्षारोपण कार्यक्रम अपने
हाथ में लेने के लिए कहा था। मैंने साफ मना कर दिया। ये सारा काम फोरेस्ट
डिपार्टमेंट का है।”
फाइनेंस मैनेजर कुछ बोलने का अवसर खोजते हुए कहेंगे, “मगर लकड़ी यहां
सस्ती नहीं है। फर्नीचर भी बहुत महंगा है।”
“सस्ता नहीं है ? सस्ता तो है ? हमारी तरफ से यहां
ज्यादा सस्ता।”
“यहां से दो सौ किलोमीटर दूर एक जगह है, सर, उस जंगल में फर्नीचर इतना सस्ता है कि आप सोच भी नहीं सकते।”
“दो सौ किलोमीटर तो बहुत दूर है, है न ? इतना दूर से
लाने-ले जाने का खर्च ?”
“कुछ नहीं, सर। ट्रक में आएगा।”
“आपके पास ट्रक है ? हमारे पास... ?”
मछली को कांटे में फंसता देख उत्साह के साथ फाइनेंस मैनेजर कहता होगा, “ हमारी कोलियरी का ट्रक प्रायः उस रास्ते से आया-जाया करता है। आपकी जरूरत पड़ने
पर बताइएगा, सर, किसी भी समय उस ट्रक में ले आएंगे।”
देशमुख के लिए इन सारी बातों का कोई अर्थ नहीं था, उसकी कोई भूमिका
नहीं थी उसमें। डिनर मीटिंग में हर समय परेशान कर रहा था उसे, हरिशंकर का अनशन और अनीता की स्पांडिलायटिस का दर्द।
अंधेरी रात में एक आदमी बैठा हुआ है, इतना आस्पर्द्ध।
उसने अनशन पर बैठकर जैसे देशमुख की शांति छीन ली हो। हरिशंकर अगर मर गया तो ? सच में क्या कोई
मर जाता है ? देशमुख ने खबर ली
थी, कि वह वास्तव में सीरियसली अनशन कर रहा है। चोरी-छुपे भी कुछ नहीं खा रहा है
आधी रात में। जिस दिन से हरिशंकर अनशन पर बैठा है, उस दिन से पानी तक
नहीं छुआ है। हॉस्पिटल के डॉक्टर हर दिन उसका ब्लड-प्रेशर मापने के लिए जाते हैं।
ब्लड-प्रेशर कम होता जा रहा है। शरीर में पानी का अंश कम होता जा रहा है। डॉक्टर बता
रहे थे अभी तो ऐसा कोई खतरा नहीं है, सर, फिर भी अगर अनशन इसी तरह चालू रहा तो अवस्था सांघातिक हो जाएगी।
हरिशंकर बाबू की अनशन समस्या का समाधान होने के बाद देशमुख फिर से अनीता को
नागपुर लेकर जाएगा। अब तक गर्दन सीधा नहीं कर पा रही है अनीता। डॉ. कुलकर्णी ने
ठीक से डायगोनोसिस किया है तो ? हो सकता है, स्पांडिलायटिस न होकर ‘सर्विकल रिब’ हुई होगी ? डा. कुलकर्णी ने
तो कहा था, दवाई खाने, एक्सरसाइज करने और ट्रेक्शन लेने से जल्दी छूट जाएगा अनीता का दर्द। मगर
बिलकुल भी कम नहीं हो रहा है ? अनीता देशमुख कि लिए बहुत ही पीड़ादायक थी वह डिनर पार्टी। पास के कमरे में, महिला मंडल की मीटिंग में अनीता कोला कैसे बनाया जाता है ? महाराष्ट्र में
रोटी और चावल एक साथ कैसे खाए जाते हैं, उसकी आवाज देशमुख
दूसरे कमरे में रहते हुए भी सुन पा रहा था, दर्द से होंठ चबा
रही होगी, अनीता, मुट्ठियां भींच रही होगी।
बिलकुल भी मौका नहीं मिला था देशमुख को जी.एम. के साथ बात करने का। मगर
हरिशंकर को अनशन के बारे में उनसे परामर्श लेना पड़ेगा। सी.टी.ओ और उनके परिवार
को कार में बैठाकर विदा करने के बाद जी.एम. अपनी कार में बैठने चले गए, देशमुख और कोई उपाय न देख दौड़कर जी.एम. को कहने लगा, “सर, एक बात थी।”
“क्या बात ?”
“हरिशंकर के अनशन के बारे में।”
जी.एम. ने चारों तरफ देखा। जैसे सतर्क हो गया हो। कहने लगा वह, “कह चुका हूँ, वह तो तुम्हारा जूरीडिक्शन है। वे सब
तुम्हें काबू करना है, तुम्हें देखना है।”
देशमुख ने और नम्र भाव से कहा, “आपकी राय जानना
चाहता था, सर।”
जी.एम. कार में बैठते-बैठते रुक गया। देशमुख की पीठ थपथपाते हुए कहने लगा, “मेरी राय है, हरिशंकर का अनशन तुड़वाओ। मगर, कैसे? वह तुम्हारा काम है। उसका परिणाम, जो भी निकले, अच्छा या बुरा, तुम्हारी जिम्मेदारी है। मेरी नहीं। फिर तुम अपने अधीनस्थ
अधिकारियों की सहायता क्यों नहीं ले रहे हो। उनके भीतर भी काम वाले लोग हैं। उनकी
मदद लो। चिंता बिलकुल मत करो। दुनिया में असंभव कुछ नहीं है।”
जी.एम. चला गया देशमुख को अकेले छोड़। छोड़ गया साथ में उसकी पत्नी का स्पांडिलायटिस
और हरिशंकर का अनशन। देशमुख अनुभव कर रहा था, दूसरी यूनिटों के
डिप्टी सी.एम.ई. भी किसी तरह उससे पीछा छुड़ाकर भाग रहे थे। इतने समय पास में बैठने
के बाद भी, किसी ने एक बार भी नहीं पूछा पारबाहार कोयला खदान के श्रमिकों के अशांति के बारे में। किसी ने नहीं
पूछा था, देशमुख किस तरह इससे मुकाबला कर रहा है। वरन उनके चेहरे पर झलक रही थी चतुर
नीरवता की हंसी। जैसे उन्हें खूब मजा आ रहा हो देशमुख की अवस्था देखकर।
यह कल की बात थी। कल रात को नींद नहीं आई थी देशमुख को। बिस्तर पर छटपटा रहा
था वह। किसकी-किसकी राय लेगा, कौन राय देगा-
चिंता उसे खाए जा रही थी। सुबह-सुबह पर्सनल ऑफिसर को बुलाकर सलाह-मशविरा किया था
देशमुख ने।
पर्सनल अफिसर ने कहा था, “मेरी राय है, सर, अब जो अवस्था हो गई, हरिशंकर बाबू के
साथ हमें रफा-दफा कर लेना चाहिए। उनकी मांगें हमें मान लेनी चाहिए।”
“आप सब-कुछ जानने के बाद भी कह रहे हैं ?”
कुछ दिन पहले हरिशंकर बाबू को चंदा-संग्रह करने की अनुमति देने के बाद, देखा नहीं कितनी बड़ी स्ट्राइक हो गई थी। आप तो जानते हैं कि ध्रुव खटुआ में
नैतिकता की नींव नहीं होने पर भी वह बहुत पारंगत व्यक्ति है। उसका भी कुछ प्रभाव
है। और हरिशंकर बाबू, उसके यूनियन का जन-समर्थन क्या है?
पर्सनल ऑफिसर ने थोड़ा मुस्कराते हुए विनम्र भाव से कहने लगा, “सर, आप जैसा निर्देश देंगे, हम मानेंगे। मगर
मेरी इस लाइन में चौदह पन्द्रह साल का अनुभव है। जनता और यूनियन को मैं प्रायः
देखता आ रहा हूं। असल में क्या जानते हैं सर, सेंटीमेंट क्या
चीज होती है और उसका किस तरीके से व्यवहार किया जाता है, कहा नहीं जा सकता
है। मान लीजिए, अगर हरिशंकर बाबू को खुदा न खास्ता कुछ हो गया तो आपको न तो सरकार छोड़ेगी और न
ही जनता। क्योंकि वे आपके ऑफिस के सामने अनशन कर रहे हैं।”
“यह तो सरासर ब्लैक-मेलिंग है ?”
पर्सनल ऑफिसर फिर एक बार हंसने लगा, “ध्रुव खटुआ की
स्ट्राइक क्या ब्लैकमेलिंग नहीं थी ? आप ट्रेड यूनियन की गति और प्रकृति देख लीजिए, उनकी पूरी राजनीति
ही तो ब्लैकमेलिंग है। मैनेजमेंट की भी यह प्रवृत्ति होनी चाहिए, कि उन्हें भी वह ब्लैकमेल करें।”
देशमुख को बहुत विचित्र लग रही थी यह दुनिया। आज तक उनकी वह दुनिया और उसका
परिवेश पूरी तरह अलग था। दुनिया में उसकी जानकारी में राजनीति थी, कूजी नेता और टाऊटर भी थे।
वह जानता था, हमारी वर्तमान राजनीति जाति-प्रथा से किस तरह प्रभावित है। वह जानता था किस
तरह सामंतवादी विचारधारा आच्छादित थी हमारे राजनैतिक नेताओं की पृष्ठभूमि में।
सबसे ज्यादा घृणित-फासीवाद के संबंध में उसे पता नहीं था, ऐसी बात नहीं थी।
मगर आज तक उसकी धारणा स्वच्छ थी। दो से दो जोड़ने पर चार होता है। उसका पूर्व अनुभव
इस तरह कभी आकारहीन, किंभूत किमाकार राजनीति से नहीं हुआ था। यहां तो दो में दो
जोड़ने से पांच, छ, सात, आठ, कुछ भी हो सकता है।
देशमुख जिस समय माइनिंग इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, उस समय उसने सोचा भी न था कि इस तरह की आदर्शहीन किंभूत किमाकार यूनियन
राजनीति भी उसे संभालनी पडेगी। उस समय मार्क्सवादी देशमुख क्या
वास्तव में पहचान पाया था, इस देश की जनता और
उनका उद्धार करने वालों को।
पर्सनल ऑफिसर कहने लगा सर, “आप जिस चेयर पर
बैठे हैं, वह केवल चेयर नहीं है। रणभूमि का वह रथ है। आपको अपने पूरी नौकरी के समय लड़ाई
करनी पड़ेगी- अधीनस्थ व उपरिस्थों के साथ। श्रमिकों के साथ,अफसरों के साथ।
आपको सब तरफ देखकर कदम रखने पड़ेंगे। आपके किसी भी गलत कदम के कारण आपका दुर्ग गिर
सकता है, आपको हार माननी पड़ सकती है। फिर भी, आप कैसे लड़ सकते
हैं, वह आपके ऊपर निर्भर करता है, सर। आप परीक्षा
करके देख सकते हैं। हरिशंकर की जितनी भी डिमांडें हैं, उनमें प्रमुख है-
उनके यूनियन को आथराइज करना। उस डिमांड को छोड़कर बाकी डिमांडें पहले पूरी की जा
सकती है। उनकी पहली डिमांड को मैनेजमेंट भविष्य में महत्त्व देने के साथ-साथ उस पर
विचार करने का आश्वासन देने से ही मेरा ख्याल है वे लोग हमारी बात मान जाएंगे। उनके दल में
अगणी होता मुख्य किरदार है। अगर हम उसे संतुष्ट कर देंगे, मैं सोचता हूं कि
हरिशंकर बाबू को वह अनशन तोड़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। अगणी का एक भतीजा है, सर। ब्राह्मण लड़का है, मगर समारु खड़िया
के नाम से भर्ती हुआ है, इमपर्सनेशन केस। अगर हम उसे अपना मूल नाम लौटा देंगे, अगणी शायद हमारी बात मान जाएगा।”
“मगर, यदि हम उन्हें कहेंगे कि उनकी मांगों पर हम भविष्य में विचार करेंगे, वे लोग तो फिर चंदा-संग्रह करना चाहेंगे काउंटर के पास तो फिर से ध्रुव खटुआ
के दल का विरोध।”
“ऐसा नहीं करेंगे सर। इस बार वे लोग बिलकुल ऐसा नहीं करेंगे।”
पर्सनल ऑफिसर कितने साहस के साथ यह बात कह पा रहा था ? देशमुख सीधे उनके
चेहरे की तरफ देखने लगा। उसके चेहरे पर एक
जानने योग्य हंसी- “ध्रुव खटुआ जानता है उनकी ताकत। हम सात दिन तनख्वाह काटने वाले
फैसले को वापस लेते हैं, मगर जिन तीन दिन
स्ट्राइक हुई थी, उन दिनों के लिए “नो वर्क, नो पे” नियम के आधार पर श्रमिकों को नहीं दी जाएगी। इस बार और स्ट्राइक बुलाने पर
श्रमिकों का सहयोग उसे नहीं मिलेगा, वह इस बात से
अनजान नहीं है। हाँ, ध्रुव खटुआ दल के आदमी हल्ला-गुल्ला अवश्य करेंगे। उनको भी
चुप करने का भी एक तरीका है। ध्रुव खटुआ के दो
तीन नजदीकी आदमी इसी दौरान चोरी के अभियोग में सस्पेंड हुए हैं। उनकी माफिया लोगों
के साथ साठ-गांठ है। अगर उनका संस्पेशन ऑर्डर उठाकर काम दिया जाता है, मैं सोचता हूँ कि ध्रुव खटुआ भी हमारी मुट्ठी में आ जाएगा।”
देशमुख के साथ पर्सनल ऑफिसर ने ये सारी बातें की थी आज सुबह और देशमुख समझ गया
था उसे एक रिस्क लेनी पडेगी और पर्सनल अफसर की बातें मानने के सिवाय और कोई उपाय
नहीं था। अंत में, देशमुख ने ‘हाँ’ कह दिया था।
ट्रेक्शन लेती अनीता की पुकार सुनकर देशमुख का ध्यान-भंग हो गया। पंद्रह मिनट
की जगह बाइस मिनट हो गए थे। ट्रेक्शन खोलने की बारी थी। बेल्ट की
गांठ खोलते हुए कहने लगा देशमुख- “दर्द कम हुआ ? गर्दन हिला पा रही
हो ?”
अस्पष्ट आवाज करने लगी अनीता। देशमुख ने उसे पकड़कर उठाया- “तुम सो जाओ। हम
जल्दी ही नागपुर जाएंगे, डॉक्टर को दिखाने।”
“कैसे जाएंगे ? तुम्हारे माइन्स
में तो श्रमिक-अशांति चल रही है ?” अनीता ने पूछा।
“आजकल के अंदर शायद हरिशंकर पटनायक का अनशन टूट जाएगा। आज रात को कोई न कोई
सुराग मिल जाएगा।”
इस बीच नौकर ने आकर खबर दी, “पर्सनल मैनेजर आए
हैं।”
“साथ में और कौन आए हैं ?”
“और कोई दो आदमी साथ में हैं।”
“उन लोगों को ड्राइंग-रुम में बिठाओ। मैं आ रहा हूँ।”
देशमुख जल्दबाजी में अपने कपड़े बदलने की बात भी सोच नहीं पाया था। वह
जल्दी-जल्दी चला गया, अनीता को खाट पर सुलाकर। पर्सनल ऑफिसर के साथ में अगणी और
एक तरुण लड़का था। उन दोनों ने नमस्कार किया। देशमुख ने उन्हें बैठने का अनुरोध
किया।
पर्सनल ऑफिसर ने कहना शुरु किया, “मैंने प्रारंभिक
बातें कर ली है, सर। हमारी शर्त पर वे लोग लगभग राजी हैं। फिर भी आपके साथ फाइनल बातचीत करना
जरुरी है।”
शांति से सांस छोड़ी देशमुख ने। सिर के ऊपर का वजन जैसे उतर गया हो। उसे खूब
हल्का-हल्का लगने लगा। खुशी-खुशी उसने हाथ बढ़ा दिया अगणी की ओर। अगणी से हाथ
मिलाते समय संकोच हो रहा था उसे। इसी आदमी को उस दिन ऑफिस से अपमानित कर बाहर
निकाला था। आज अपने ड्राइंग-रुम में उसी आदमी से हाथ मिला रहा हूं, सम्मान पूर्वक। देशमुख का व्यक्तित्व जैसे बर्फ की तरह पिघल रहा हो। अन्ततः
अगणी जान गया होगा कि देशमुख साहब जिस तरह का अफसर दिखाई देता है, वह उनका मुखौटा है, चेहरा नहीं है।
अन्ततः पर्सनल ऑफिसर भी समझ गया होगा देशमुख साहब असल में कितना डरपोक है। बहुत
अपमानित अनुभव कर रहा था वह। वह सिर उठाकर देख नहीं पा रहा था उनकी तरफ। कहने लगा
वह, “बैठिए, बैठिए, आप लोग खड़े क्यों हैं ?”
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